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रविवार पूजा

Updated on 30-05-2021 01:09 PM

रविवार का दिन सप्ताह के दिनों में खास अहमियत रखता है। सूर्य देवता जो जीवन में ऊर्जा का संचार करते हैं। सूरज की हर पहली किरण को उम्मीद की नई किरण के रूप में देखा जाता है। इन्हीं सूर्य देव का एक नाम रवि भी है। रविवार, इतवार या कहें संडे सूर्य देवता का दिन है। मान्यता है कि रविवार के दिन नियमित रूप से सूर्यदेव के नाम का उपवास कर उनकी आराधना की जाये उपासक की सारी द्ररिद्रता दूर हो जाती है। तो आइये जानते हैं रविवार के व्रत की कथा व पूजा विधि के बारे में।

रविवार व्रत की पौराणिक कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक बुढ़िया हर रविवार प्रात:काल उठकर नहा धोकर अपने घर आंगन को गाय के गोबर से लीपती फिर सूर्य देव की पूजा करती और उन्हें भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती। बुढ़िया के पास गाय नहीं इसलिये पड़ोसियों के यहां से गाय का गोबर उसे लाना पड़ता। इस प्रकार सूर्य देव की नियमित रूप से आराधना करने पर बुढ़िया का घर धन धान्य से संपन्न रहने लगा। बुढ़िया के दिन फिरते देख पड़ोसन जलने लगी। अब वो क्या करती कि रविवार के दिन उसने अपनी गाय को अंदर बांधना शुरु कर दिया जिससे बुढ़िया को गोबर नहीं मिला और घर की लिपाई भी नहीं हुई। लिपाई न होने के कारण बुढ़िया ने कुछ नहीं खाया। इस प्रकार वह निराहार रही और भूखी ही सो गई। उसे सपने में सूर्य देव ने दर्शन दिये और पूछा कि आज आपने मुझे भोग क्यों नहीं लगाया। बुढ़िया ने बताया कि उसके पास गाय नहीं है और वह पड़ोसन की गाय का गोबर लाकर लिपाई करती थी। पड़ोसन ने अपनी गाय अंदर बांध जिस कारण वह घर की लिपाई नहीं कर सकी और लिपाई न होने के कारण ही वह भोजन नहीं बना पाई। तब सूर्य देव ने कहा हे माता मैं आपकी श्रद्धा व भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। आपको मैं एक ऐसी गाय देता हूं जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। सुबह जब बुढ़िया की आंख खुली तो उसने अपने आंगन में एक बहुत ही सुंदर गाय व बछड़े को पाया। उसने उन्हें बांध लिया और बड़ी श्रद्धा के साथ गाय की सेवा करने लगी। जब पड़ोसन ने उसके यहां गाय देखी तो वह और भी जलने भुनने लगी। उस समय तो पड़ोसन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि गाय सोने का गोबर कर रही है। बुढिया उस समय वहां पर नहीं थी। पड़ोसन ने इसका फायदा उठाते हुए अपनी गाय का गोबर वहां रख दिया और सोने के गोबर को उठा ले गई। गाय हर रोज सूरज उगने से पहले गोबर करती और पड़ोसन उठा ले जाती बुढ़िया को यह पता ही नहीं चला कि उसकी गाय सोने का गोबर करती है। पड़ोसन रातों रात अमीर होती गई। अब सूर्य देव ने सोचा कि उन्हें ही कुछ करना पड़ेगा। उन्होंने शाम को तेज आंधी चलवा दी, आंधी के कारण बुढिया ने गाय को अंदर बांध दिया सुबह उसने देखा कि गाय तो सोने का गोबर करती है। फिर वह हर रोज गाय को अंदर बांधने लगी। अब पड़ोसन से यह सहन न हुआ और उसने राजा को बता दिया कि एक बुढ़िया के पास सोने का गोबर करने वाली गाय है। पहले तो वे हैरान हुए लेकिन बुढ़िया को चेतावनी दी कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं। उन्होंने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया के यहां से गाय लाने का हुक्म दिया। सैनिक गाय ले आये। अब देखते ही देखते गोबर से सारा महल भर गया, हर और बदबू फैल गई। राजा को सपने में सूर्य देव दिखाई दिये और कहा कि हे मूर्ख यह गाय उस वृद्दा के लिये ही है। वह हर रविवार नियम पूर्वक व्रत रखती है। इस गाय को वापस लौटाने में ही तुम्हारी भलाई। राजा को तुरंत जाग आ गई और उसने बुढ़िया को बुलाकर बहुत सारा धन दिया और क्षमा मांगते हुए सम्मान पूर्वक वापस भेजा। पड़ोसन को राजा ने दंडित किया और साथ ही पूरे राज्य में घोषणा करवाई की आज से सारी प्रजा रविवार के दिन उपवास रखेगी व सूर्य देव की पूजा करेगी। रविवार के व्रत से उसका राज्य भी धन्य धान्य से संपन्न हुआ और प्रजा में सुख शांति रहने लगी।

रविवार व्रत व पूजा की विधि

पौराणिक ग्रंथों में रविवार के व्रत को समस्त पापों का नाश करने वाला माना गया है। अच्छे स्वास्थ्य व घर में समृद्धि की कामना के लिये भी रविवार का व्रत किया जाता है। इस व्रत के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। पूजा के बाद भगवान सूर्यदेव को याद करते हुए ही तेल रहित भोजन करना चाहिये। एक वर्ष तक नियमित रूप से उपवास रखने के पश्चात व्रत का उद्यापन करना चाहिये। मान्यता है कि इस उपवास को करने से उपासक जीवन पर्यंत तमाम सुखों को भोगता है व मृत्यु पश्चात सूर्यलोक में गमन कर मोक्ष को पाता है।


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