वसुदेव कुटुम्बकम की परिकल्पना साकार होती जा रही है,बस अंतर इतना है कि, इसका अंग्रेज़ी रूपांतरण हो गया है,जिसे आज "ग्लोबल विलेज" के नाम से जाना जाता है। इसे आप विरोधाभास की चरम सीमा भी कह सकते हैं। "गुमनाम है कोई,अंजान है कोई" विदेश से चल कर महीनों बाद पहुंचने वाला एक एरोग्राम नामक पत्र,वर्तमान वीडियो कॉल से अधिक सुख देता था। अगर कहीं ट्रंकाल लग जाए तो मानो बे वक्त ईद,और दिवाली जैसा माहौल बन जाया करता था। यहां तक कि,दूसरे शहर में निवास करने वाले अपने परिजन के आने की ख़ुशी भी एक उत्सव से कम नहीं हुआ करती थी। "वो आ रहे हैं,आते हैं,आ रहे होंगे,शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी मैंने"। अब हम आधुनिक विज्ञान की दुनिया में निवास करते हैं,जहां हर व्यक्ति रोबोट में तब्दील हो चुका है। सुविधाएं सब हैं,पर सुख विज्ञान के पास गिरवी हो गया। हाथ वाला पंखा,गर्मी में गीली चादरें,कपड़े पीटने वाली मोगरी,और सिल बट्टे के अधिकारों पर फ्रिज,कूलर,वाशिंग मशीन ,मिक्सी ने अपना कब्ज़ा बना लिया है। लेहाज़ा मोटापा,जोड़ों के दर्द,रक्तचाप,शुगर हमें इनाम स्वरूप प्राप्त हुए। ज़िंदगी राजशाही वाली हो तो बीमारी भी राज रोग जैसी ही होना चाहिए। कभी दोपहर-रात में पड़ोस की महिलाएं किसी एक घर पर इकट्ठा हो, चुग़लख़ोरी कर अपना मन हल्का करने के साथ ही मनोरंजन कर लिया करती थीं,और पुरुष चौपड़,शतरंज से एक दूसरे को शिकस्त देने का आनंद उठाते थे। पहले टीवी ने महिलाओं की बे वजह घर निकासी पर अंकुश लगाने का काम किया, यानी चुगली करने का घरेलू विश्वविद्यालय घर पर ही मुहैय्या हो गया । घरों में आग लगाने के अत्याधुनिक नुस्खे मनोरंजन के साथ फ्री में बोनस के रूप में उपलब्ध होने लगे। बात यहां रुक जाती तो फिर भी ग़नीमत थी, पर विकास भी तो ज़रूरी है,सो मोबाइल ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। कमाल है कि,एक कमरे में घर के चार लोग मौजूद हैं,पर एक दूसरे से अंजान! बात करना तो दूर,देखना भी गवारा नहीं । वैसे महिलाओं को इस खिलौने ने बड़ी राहत प्रदान की है,बच्चे को संभालना,उसको गोद में ले टहलने की क्या ज़रूरत,एक अदद मोबाइल पकड़ा,सुकून से अपने मोबाइल पर नाटक/फ़िल्म देखती रहो। ये 8X4 का खिलौना भी बड़ा क्रांतिकारी है। घरों के भीतर की चक चक को ही समाप्त कर दिया। यहां ज़ुबाँ का कोई काम नहीं,बस पलख झपकती आंखें,और हरकत करती उंगलियां। कंपनी ने विज्ञापन के लिए स्लोगन क्या जारी किया,लोगों ने,"कर लो दुनिया मुट्ठी में" पर अमल करना शुरू कर दिया।
जब कभी इस अत्याधुनिक खिलौने से फुर्सत मिली,तो गाना याद आ गया,"न तुम हमें जानो,न हम तुम्हें जाने,मगर लगता है कुछ ऐसा मेरा हमदम मिल गया।
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