हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है, ज्वाला देवी मंदिर। इसे जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं। इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था,उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया। बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।
अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा ?
ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं। अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा ? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। यदि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं करेंगी तो मै भी अपना सिर काटकर आपके चरणों मे अर्पित कर दूंगा। क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है। जब कोई उत्तर न मिला इसके पश्चात भक्त ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया। उसी समय साक्षात ज्वाला मां प्रकट हुई ध्यानू का सिर धड़ से जुड़ गया। भक्त जीवित हो गया। माता ने भगत से कहा कि ध्यानु मेरे प्यारे बच्चे,दिल्ली मे घोड़े का सिर भी धड़ से जुड़ गया है, चिंता छोड़कर दिल्ली पहुंचो। ध्यानु भगत ने माता के चरणों मे शीश झुका कर प्रणाम कर निवदेन किया कि जगदम्बे! आप सर्व शक्तिशाली हैं, हम मनुष्य अज्ञानी हैं भक्ति की विधि भी नहीं जानते, फिर भी विनती करता हूं कि जगमाता आप अपने भक्तों की इनती कठिन परीक्षा न लिया करें ।
कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया। यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई। उसने अपनी सेना से मां की ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर नहर बनवाया लेकिन मां के चमत्कार से ज्योतियां नहीं बुझ पाईं।
इसके बाद अकबर मां के चरणों में पहुंचा, लेकिन उसको अहंकार हुआ था, कि उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छत्र हिंदू मंदिर में चढ़ाया है। इसलिये ज्वाला माता ने वह छतर कबूल नहीं किया, इसे लोहे का बना (खंडित) कर दिया था।
आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं जब माँ ने अकबर का घम्मंड दूर कर दिया था और अकबर भी माँ का सेवक बन गया था,तब अकबर ने भी माँ के भगतो के लिए वहाँ सराय बनवाए।
पृथ्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकलना, वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती 'ऊर्जा' का इस्तेमाल किया जाए। कुछ वर्ष पहले ONGC ने भी Gas Resources ढूंढे, लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस 'ऊर्जा' के श्रोत को नहीं ढूंढ पाए। वही अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।
अंधविश्वास ठहराने वालों को जबाब
अगर घोड़े का सर नही जुड़ा होता तो, अकबर जैसा कट्टर मुसलमान दिल्ली से हिमाचल प्रदेश क्यों जायेगा छत्र चढ़ाने ? गया भी तो दुबारा ज्वाला माँ का परीक्षा लेने ही ! अगर आप कहते हैं की अकबर बड़ा धार्मिक था तो वो आगरा से करीब वाराणसी मे कभी भोलेनाथ को जल चढ़ने क्यों नही गया ? इतनी दूर ज्वाला मंदिर ही क्यों गया ?
अकबर दो बार ज्वाला माता का परीक्षा लिया अपने समर्थ्या भर उसने उन्हे हराने की कोशिस भी की जब उसका बस नही चला तो हार मान, माता की शरण मे छात्र चढ़ाने गया ! इसमे माता की महिमा है और अकबर की नीचता !