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श्री सूर्य-कवच ( आरोग्य एवम् विजय प्राप्त्यर्थ )

Updated on 02-05-2021 01:42 PM
अथ् विनियोग :-
ॐ अस्य श्री सूर्य-कवचस्य ब्रह्मा ऋषि: , अनुष्टप् छन्दः , श्री सूर्यो देवता: । आरोग्य च विजय प्राप्त्यर्थं , अहम्  , पुत्रो श्री , पौत्रो श्री   ,गोत्रे जन्मौ , श्रीसूर्य-कवच-पाठे विनियोगः।

अर्थ एवं विधान : 

(अपने शुद्ध दाएँ हाथ में आचमनी में जल भरकर लें , बाएँ हाथ से दायीं भुजा को स्पर्श करते हुए निम्न प्रकार से विनियोग करें )

"इस श्री सूर्य कवच के ऋषि ब्रह्मा हैं, छन्द अनुष्टुप् है एवं श्री सूर्य देवता हैं । आरोग्य एवम् विजय की प्राप्ति हेतु मैं - पुत्र श्री - पौत्र श्री   --गोत्र में जन्मा हुआ~ श्री सूर्य -कवच के पाठ के निमित्त स्वयं को नियोजित करता हूँ " 

ऐसा कहकर आचमनी के जल को~ हाथ को सीधा अर्थात् ऊपर की ओर रखते हुए ही~तीन बार थोड़ा-थोड़ा करके पृथ्वी पर छोड़ दें । उसके बाद निम्नलिखित श्री सूर्य कवच का अपने अभीष्ट अंगों को स्पर्श करते हुए जाप करें ।)

 अथ् श्री सूर्य-कवचं :

(१)  प्रणवो मे शिरं पातु , घृणि: मे पातु भालकं ।।
     सूर्योsव्यान नयनद्वन्दम् , आदित्य कर्णयुग्मकं ।।

अर्थ : 
मैं प्रणव को अपने शिर , घृणि को मस्तक , अव्यय सूर्य को दोनों नेत्रों एवम् आदित्य को दोनों कानों में धारण (प्रतिष्ठित) करता हूँ ।

(२) ह्रीं बीजम् मे मुखम् पातु , हृदयम् भुवनेश्वरी ।।
      चंद्रबिम्बं विंशदाद्यम् पातु मे गुह्यदेशकम् ।।
      शीर्षादि पादपर्यन्तम् सदा पातु वैवस्वतमनुत्तमः।।

अर्थ :
मेरे मुख में ह्रीं बीज , हृदय में भुवनेश्वरी , कँ खँ गँ घँ चँ छँ जँ झँ टँ ठँ डँ  ढँ तँ थँ दँ धँ पँ फँ बँ भँ आदि मेरे गुह्यदेश में ~ और शिर से पैरों तक मनुश्रेष्ठ श्री वैवस्वत जी सदैव विराजमान रहें ।

 विशेष :

शुद्ध सूती अथवा ऊनी आसन पर पूर्वाभिमुख होकर ~प्रातःकाल इस कवच का प्रतिदिन कम से कम एक बार जाप अवश्य करना चाहिए ।

।।ॐ नमामिःश्रीकृष्णादित्त्याय,परात्परब्रह्मणे च सद्गुरुदेवाय।।

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