श्रीलंका के कैबिनेट मिनिस्टर केहेलिया रामबुकावेला को करप्शन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है। प्रेसिडेंट रानिल विक्रमसिंघे के कहने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। रामबुकावेला पर आरोप है कि उन्होंने हेल्थ मिनिस्टर रहते हुए कैंसर की नकली दवाइयां खरीद को मंजूरी दी, जबकि वो इस मामले की तमाम हकीकत को जानते थे।
श्रीलंकाई मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक- रामबुकावेला ने यह जानलेवा करप्शन उस दौर में किया, जब श्रीलंका दिवालिया हो चुका था और देश में एक बार फिर सिविल वॉर के हालात नजर आ रहे थे।
15 फरवरी तक पूरी होगी जांच
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- रामबुकावेला को पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे का दायां हाथ माना जाता है। यही वजह है कि उनके खिलाफ एक्शन लेने से सरकार कतरा रही थी। हालांकि, इस स्कैंडल के उजागर होने के बाद लोगों में काफी गुस्सा था और इसी वजह से न सिर्फ रामबुकावेला को गिरफ्तार किया गया बल्कि प्रेसिडेंट ने उनसे इस्तीफा भी ले लिया।
रामबुकावेला फिलहाल एनवॉयर्नमेंट मिनिस्ट्री संभाल रहे थे। वो कैबिनेट मिनिस्टर थे। रामबुकावेला को लेकर सरकार इतनी हिचकिचा रही थी कि उनकी गिरफ्तारी पिछले हफ्ते शुक्रवार को हुई, लेकिन इसकी जानकारी मंगलवार शाम तब दी गई जब उनके इस्तीफे की खबर कन्फर्म हो गई।
रिपोर्ट्स के मुताबिक- रामबुकावेला ने हेल्थ मिनिस्टर रहते हुए कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नकली दवाइयों की खरीद को मंजूरी दी। उस वक्त श्रीलंका ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था और सिर्फ जरूरी चीजों के इम्पोर्ट की मंजूरी दी गई थी। इस मामले की जांच चल रही है और माना जा रहा है कि 15 फरवरी तक यह पूरी हो जाएगी।
दबाव में फैसला
इस मामले के सामने आने के बाद न सिर्फ विपक्ष बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग भी सड़कों पर आ गए थे। इनकी मांग थी कि रामबुकावेला को कैबिनेट से बर्खास्त किया जाए और इसके फौरन बाद उनकी गिरफ्तारी हो। बहरहाल, सरकार ने चुपचाप इस्तीफा लिया और गिरफ्तारी भी दिखाई। इस घोटाले में रामबुकावेला का साथ देने वाले हेल्थ मिनिस्ट्री के पांच सीनियर अफसर भी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इसके अलावा जांच एजेंसियों ने इन दवाओं की सप्लाई करने वाले मेन सप्लायर को भी जेल भेज दिया है।
आरोप है कि रामबुकावेला और अफसरों ने न सिर्फ नकली दवाओं की खरीद को मंजूरी दी, बल्कि इसके लिए भी नियमों के तहत टेंडर जारी नहीं किए। सिर्फ कैंसर ही नहीं, बल्कि कुछ और बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के नकली होने का आरोप है।
इस मामले में एक खास यह भी है कि ये पूरी खरीद सिर्फ एक सप्लायर की फर्म से की गई। आरोप है कि यह सप्लायर भी हेल्थ मिनिस्ट्री के एक बड़े अफसर का भाई है। रामबुकावेला अक्टूबर 2023 तक हेल्थ मिनिस्टर थे। इसी दौरान यह मामला उठा और दबाव में उनका मंत्रालय बदल दिया गया।
मदद जारी रखेगा भारत
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था- श्रीलंका में चल रहे संकट के बीच भारत उसकी हर तरफ से मदद करना जारी रखेगा। हम भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए हर क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
इस दौरान श्रीलंका में भारत के एंबैसडर गोपाल बागले ने कहा कि दोनों देशों के बीच फूड सिक्योरिटी, एनर्जी सिक्योरिटी, करेंसी सपोर्ट और लॉन्ग-टर्म इंवेस्टमेंट के क्षेत्रों में साझेदारी और बढ़ेगी। सांसदों ने पिछले साल श्रीलंका के आर्थिक संकट के समय भारत की तरफ से की गई मदद को याद किया।
इसके पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा था कि उनके देश का इस्तेमाल कभी भारत के खिलाफ नहीं किया जा सकेगा। रानिल के मुताबिक- इस बात में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि हम चीन से कभी मिलिट्री एग्रीमेंट नहीं करेंगे।
चीन और श्रीलंका के रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन हम ये भी साफ कर देना चाहते हैं कि हमारे देश में चीन का कोई मिलिट्री बेस नहीं हैं और न होगा। हम एक न्यूट्रल देश हैं।
भारत ने 2022 में श्रीलंका को 4 बिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक सहायता दी थी। इसमें जरूरी चीजों और फ्यूल का निर्यात शामिल है। श्रीलंका में आर्थिक संकट का प्रमुख कारण फॉरेक्स रिजर्व की कमी का होना था। इसके कारण श्रीलंका की जनता पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ सड़कों पर उतर गई थी। आखिर में उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा था।
2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स में कटौती का लोकलुभावन दांव खेला, लेकिन इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। एक अनुमान के मुताबिक, इससे श्रीलंका की टैक्स से कमाई में 30% तक कमी आई, यानी सरकारी खजाना खाली होने लगा।
1990 में श्रीलंका की GDP में टैक्स से कमाई का हिस्सा 20% था, जो 2020 में घटकर महज 10% रह गया। टैक्स में कटौती के राजपक्षे के फैसले से 2019 के मुकाबले 2020 में टैक्स कलेक्शन में भारी गिरावट आई।
कर्ज की वजह से बिगड़े आर्थिक हालात
पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने खूब कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत जैसे देशों से लिए हैं।
2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की।
इसके अलावा उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है। 2019 में एशियन डेवलेपमेंट बैंक ने श्रीलंका को एक 'जुड़वा घाटे वाली अर्थव्यवस्था' कहा था। जुड़वा घाटे का मतलब है कि राष्ट्रीय खर्च राष्ट्रीय आमदनी से अधिक होना।
श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर का रहा है। श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए पूरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है।