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गुलाम मानसिकता और देशभक्ति के बीच उलझा समाज

Updated on 15-08-2023 07:59 PM
इतिहास गवाह है कि गुलामी का जीवन जी रहे एक परतंत्र देश के नागरिकों के मन में देशभक्ति की भावना अपने चरम पर होती है। गुलामी के उस दौर में सभी नागरिकों का एकमात्र लक्ष्य अपने देश को स्वतंत्र करवाना होता है और स्वतंत्रता के उस संघर्ष में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना यहाँ तक कि प्राणों का उत्सर्ग कर देना भी गौरव की बात मानी जाती है। लेकिन स्वतन्त्रता मिल जाने के बाद संघर्ष के आदी हो चुके उन्हीं देशभक्त नागरिकों के समक्ष यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि एक स्वतंत्र देश के नागरिक के रूप में किससे संघर्ष करना है। वो समझ नहीं पाते कि अब उनके लिए देशभक्ति के मायने क्या है। यह सच है कि देशभक्ति की भावना कभी मरती नही है लेकिन उचित मार्गदर्शन या स्पष्ट उद्देश्य के अभाव में वह सुप्तावस्था में चली जाती है।
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र होने की खुशियाँ तो बहुत मनाई गई लेकिन तत्कालीन नेतृत्व या किसी और ने यह नहीं सोचा कि अब क्या। आज हम पाते हैं कि परतंत्र से स्वतंत्र होने पर सत्ता का सिर्फ नाम बदला है। वो राजतन्त्र से लोकतंत्र तो हो गया, लेकिन व्यवस्था नहीं बदली। वो तो वही बनी हुई है कि एक राजा होता है, उसका मंत्रीमंडल होता है, कुछ सलाहकार होते हैं, कुछ चाटुकार होते हैं और होते हैं सत्ता के मद में अंधे कारिंदे जो जनता पर अत्याचार करना अपना अधिकार समझते हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि राजा से लेकर अंतिम स्तर के कारिंदे तक सब हमारे अपने ही लोग होते हैं जो कल तक हमारी ही तरह एक आम आदमी हुआ करते थे। लेकिन कुर्सी पर आसीन होते ही वो स्वयं को अलग समझने लगते हैं। सोचने की बात यह है कि ऐसा क्यों हो जाता है, गड़बड़ कहाँ है। कुछ तो ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिये था, व्यवस्था बदलनी चाहिए थी, लोगों की मानसिकता को सही दिशा देने का काम होना चाहिए था जो नहीं हुआ या हुआ भी तो पूरी तरह से नहीं हुआ। 
राष्ट्र निर्माण में एक आम नागरिक के योगदान के बारे में किसी स्पष्ट उद्देश्य और दिशा निर्देश के अभाव में एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में देश भक्ति के बारे में हमारा रवैया कर्म से परे जाकर दिखावटी रूप में पाकिस्तान को क्रिकेट में हराने, चीनी सामान का बहिष्कार करने, इंग्लैंड से हमारा पुराना सामान वापस लाने, पाकिस्तान युद्ध पर बनी फिल्म देखकर तालियां बजाने,  राष्ट्रगीत या राष्ट्रगान गाते समय खड़े होने तक ही सिमट कर रह गया। एक आम नागरिक इससे या इसी तरह की अन्य बातों से परे जाकर देशभक्ति के बारे में और अधिक चिंतन और मनन नहीं कर पाता है ।
इस सब के बावजूद भी एक बात तो है जो हमें महान बनाती है कि जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, भौगोलिक स्थिति, राजनीतिक झुकाव, आदि अनेकों प्रकार के विभिन्न छोटे-छोटे हिस्सो में बंटे हम भारतीय जब भी देशभक्ति की बात आती है तो ना जाने कैसे हम सब एक हो जाते है। सारे मतभेद और मानभेद भुलाकर बस “भारतीय” हो जाते हैं। यह चमत्कार कैसे होता है यह कोई नही जानता। यह एक अद्भुत बात है कि देश का प्रत्येक नागरिक देशभक्त कहलाना पसंद करता है और देशद्रोही कहलाने की बजाय जीवन त्याग करना पसन्द करता है । 
आज जरूरत है देशभक्ति की इसी प्रबल भावना को एक सही दिशा देने की। जरूरत है लोगों को यह शिक्षा देने की और समझाने की  एक सच्चा देशभक्त नागरिक अपने देश को एक महान देश बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है। वो देश के प्रति समर्पित, साहसी और मजबूत इरादों वाला होता है । प्रत्येक नागरिक निरंतर राष्ट्र निर्माण की भावना को स्थायी रूप से अपनाए यह एक मजबूत और एकीकृत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए आवश्यक है। हमें यह अनुभूति होनी चाहिए कि “मैं ही राष्ट्र निर्माण के लिए उपयुक्त व्यक्ति हूं”। मेरे द्वारा सम्पन्न किया गया प्रत्येक कार्य राष्ट्र निर्माण में सहयोगी होना चाहिए। 
नेतृत्व को देशवासियों के मन में यह भाव भरने का कार्य करना होगा कि केवल सेना या पोलिस में या अन्य सुरक्षा एजेंसियों में काम करते देश के दुश्मनों से संघर्ष करते हुए शहीद हो जाना ही देशभक्ति नहीं है। देशप्रेम प्रकट करने के लिए सैनिक बनना ही एकमात्र उपाय नही है। हर कोई सैनिक नही बन नही सकता लेकिन प्रत्येक नागरिक देशभक्त बन सकता है।  एक आजाद और सशक्त देश के नागरिकों के लिए देशभक्ति के मायने क्या होना चाहिए इसके लिए एक विस्तृत सोच विचार की आवश्यकता है। 
वस्तुत: नागरिकों का एक दूसरे के प्रति सदव्यवहार भी देशभक्ति है, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं सांप्रदायिक सौहार्द का भाव रखना भी देशभक्ति है। उन्नत नागरिक ही उन्नत देश का निर्माण करते हैं और नागरिकों का उत्थान ही देश का उत्थान है अतः एक दूसरे के उत्थान में मदद करना भी देशभक्ति है। देश का हर नागरिक वो जहां भी हो, जो भी दायित्व उसके पास हो वो अपना अपना कार्य पूर्ण सामर्थ्य और ईमानदारी से अन्य नागरिकों की बेहतरी का भाव रखकर करे यह भी देशभक्ति है । हम हर वो कार्य करें जिससे देश की उन्नति हो यह देशभक्ति है।
देश के अंदरूनी विवाद व देश के नागरिकों का आपस में लड़ना, गृह कलह आदि देश के विकास में बाधा खड़ी करते हैं, देश को कमजोर करते हैं। किसी देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए उस देश की एकता और अखंडता अति महत्वपूर्ण है। कोई भी देश तभी उन्नति कर पाता है जब उस देश के नागरिक एकजुट होकर एक सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हों। एकता के सूत्र में बंधे ऐसे मजबूत देश को सम्पूर्ण विश्व सम्मान की दृष्टि से देखता है। हमें अपने कर्मों और व्यवहार से और उच्च स्तरीय नागरिक बोध से भारत को विश्व का सिरमौर बनाकर दुनिया के शीर्ष पर स्थापित करना है। जय भारत । 
  
- राजकुमार जैन 
स्वतंत्र विचारक और ख्यात लेखक

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