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राहु ग्रह के दुष्प्रभाव (भाग 1)

Updated on 01-01-2021 01:45 PM
तार्किक शक्ति एवं आलोचना का ग्रह राहु
भारतीय ज्योतिष में राहु एक संसारिक ग्रह है। जबकि गुरू को परलौकिक ग्रह माना गया है। गुरू ग्रह का ऐसा मानना है कि जो कुछ हो रहा है वह सब कुछ सर्वशक्तिमान अर्थात् ग्रह (भगवान) की देन है जैसे सुख-दुख जीवन का अभिन्न अंग है । सुख का पता उसी को चलता है जिसने दुख देखा हो। जिसने दुख नहीं देखा है वह सुख भी नहीं महसूस करेगा। जैसे अगर किसी इन्सान को पूड़ी सब्जी और आचार रोज खाने को दिया जाये तो एक दिन उसका मन इससे भी भर जायेगा । फिर वह पूड़ी न खाकर कुछ और खाना चाहेगी। श्री कृष्ण भगवान भी गीता में कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को कोई चीज आसानी से मिल जाती है तो उसकी कीमत नहीं समझता है। जितना उसे मुश्किल से प्राप्त होगा, बहुत मेहनत करने से प्राप्त होगा उतना उसकी कीमत को समझेगा।
कोई व्यक्ति बस से जा रहा था। चालक ने ध्यान से चलाया लेकिन बस फिर भी पेड़ से टकरा गई और व्यक्ति का हाथ पैर टूट गया या व्यक्ति मर गये। कुछ लोग इस पर तर्क करेंगे कि ड्राइवर ठीक से नहीं चला रहा था जबकि जिसके कुण्डली में गुरू प्रधान है वह तर्क नहीं करेंगे वह बोलेंगे कि दुख लिखा था इस कारण बहाना बनकर आया। राहु एक तार्किक ग्रह है इसी कारण जातक तर्क वितर्क करके सभी पहलू पर ध्यान देकर एक-दूसरे पर दोष लगाकर भी काम करेगा।
राहु को आलोचना करना बहुत पसन्द है। दूसरों की कमी निकालकर बुराई करके अपना अच्छा बनने की कोशिश करेंगे। बात थोड़ी-सी होगी तब भी दूसरे के ऊपर सारा दोष लगा देंगे। आज राजनीति में राहु आया हुआ है। इसी कारण राजनीतिक पार्टियां अपना अच्छा काम न करके बल्कि एक-दूसरे पर दोष-रोपण करके अपना लाभ उठाना चाहती हैं। यही बात परिवार में भी देखा गया कि सास और बहु एक दूसरे पर दोषारोपण करती है और पति/पत्नी में भी तू-तू मैं-मैं होती रहती है जवकि दोनों को ऐसा चाहिए। सास बहु को अपनी बेटी समझे और बहु सास को अपनी माता समझे । इससे गुरू और चन्द्र का प्रभाव बढ़ जायेगा और सुख शान्ति बढ़नी शुरू हो जायेगी। पति-पत्नी में तू-तू मैं-मैं नहीं होनी चाहिए बल्कि एक ने गलती की दूसरे ने की बल्कि दोनों को मिलकर यह कहना चाहिए कि अगर कोई गलती हुई है तो हमने की है इससे दोनों के अभिमान और अंह में कमी आकर जीवन अच्छा चलेगा। हर इन्सान का चेहरा परमात्मा ने अलग-अलग किस्म का बनाया है जो आपके लिए अच्छा है वह दूसरे के लिए खराब हो सकता है। इसी कारण सबके विचार सबसे नहीं मिलते हैं अगर किसी की आलोचना-बुराई कर रहे हैं वह आपके निगाह में खराब हो सकता है लेकिन दूसरे के नजर में हो सकता है वह बुरा न हो बल्कि सामान्य घटनायें हो।
राहु के बारह भावो में शुभाशुभ फल
राहु लग्न में- स्थित हो तो जातक दुष्ट स्वभाव का, शिरो-रोगी, विवादी, मिथ्याचारी, वात रोगी, अस्थिर मति तथा त्वचा रोग से पीड़ित होगा। राहु का योग होने पर वह उन्मादी होगा।
राहु द्वितीय भाव- में हो तो जातक अप्रिय बोलने वाला, धन नाशक, व्यर्थ भ्रमण करने वाला, मुख रोग से पीड़ित तथा वित्तीय अस्थिरता से युक्त होगा। परिवार में मतभेद रहेंगे।
राहु तृतीय भाव-  में हो तो जातक यशस्वी, शत्रुओं का दमन करने वाला, अरिष्टों से रहित, धनी, दीर्घायु एवं साहसी होगा परंतु भातृ कष्ट से पीड़ित रहेगा।
राहु चतुर्थ भाव - में हो तो जातक भ्रमणकारी, कपटी, माता व मित्र सुख से रहित, कुसंगी तथा हृदय में चिन्ता से युक्त होगा।
राहु पंचम भाव- में हो तो जातक उदर रोगी, पुत्रों से कष्ट उठाने वाला, विद्या में बाधा से युक्त तथा दूसरों के द्वारा गलत समझा जाने वाला होगा। यदि राहु शुभ राशि में शुभयुक्त एवं शुभ दृष्ट हो तो वह तीक्ष्ण बुद्धि से युक्त, उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला और औषधि ज्ञान रखने वाला होगा। सर्प दोष के कारण पुत्र प्राप्ति में बाधा होगी।
राहु षष्ठम भाव- में हो तो जातक शत्रुरहित होगा। उसकी आंतों में कीड़े होंगे तथा कमर में दर्द रहेगा। वह धनी एवं दीर्घायु होगा। राहु पापयुत या पापदृष्ट हो तो होंठों पर व्रण होगा।
राहु सप्तम भाव-  में हो तो जातक के विवाह में विलम्ब होगा पत्नी गर्भाशय रोग से पीड़ित होगी यदि राहु पापी ग्रह से योग करे तो पत्नी चिड़चिड़े स्वभाव की होगी। वह मूत्र संबंधी रोग से पीड़ित रहेगा।
राहु अष्टम भाव- में हो तो जातक बवासीर एवं वात विकार से पीड़ित, अल्पायु, अशुद्ध कर्म करने वाला, चरित्रहीन, कपटी, मानसिक रोगी तथा झगड़ालु प्रकृति का होगा।
राहु नवम भाव- में हो तो जातक प्रतिकूल वचन बोलने वाला अनैतिक, ईश्वर एवं धर्म का निन्दक, मिथ्या वचन करने वाला भाग्यहीन तथा दुराचारी होगा। यदि राहु शुभ राशि में शुभ ग्रहों से संबंध करे तो ऐसा व्यक्ति भाग्यवान तथा मां दुर्गा का भक्त होगा।
राहु दशम भाव - में हो तो जातक पितृ सुख से रहित, दूसरों के कार्य में रत, सत्कर्महीन तथा विख्यात होगा। शुभ ग्रहों से योग करने पर राहु शुभ फल तथा यश देने वाला होगा।
राहु एकादश भाव-में सदैव शुभ फल देगा एवं अरिष्ट नाशक होगा। ऐसे जातक को राज-सम्मान, समस्त भोग्य पदार्थ तथा धन-सम्पत्ति प्राप्त होगी। आयु दीर्घ होगी और कान में रोग रहेगा।
राहु द्वादश भाव-में हो तो जातक छिपकर पाप करने वाला, अशान्त, अनैतिक, दुष्टों से स्नेह करने वाला, नेत्र रोगी, व्यर्थ का व्यय करने वाला तथा पांवों में पीड़ा से युक्त होता है।
राहु को शुभ बनाने के अन्य उपाय
अपनी शक्ति के अनुसार संध्या को काले-नीले फूल, गोमेद, नारियल, मूली, सरसों, नीलम, कोयले, खोटे सिक्के, नीला वस्त्र किसी कोढ़ी को दान में देना चाहिए। राहु की शांति के लिए लोहे के हथियार, नीला वस्त्र, कम्बल, लोहे की चादर, तिल, सरसों तेल, विद्युत उपकरण, नारियल एवं मूली दान करना चाहिए. सफाई कर्मियों को लाल अनाज देने से भी राहु की शांति होती है।राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है।
मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल और मांसहार करायें।राहु की दशा होने पर कुष्ट से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए।राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौ रखकर सोयें और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी। ऐसे व्यक्ति को चांदी का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।चांदी की चेन गले में पहने ।दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए।
यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
झुठी कसम नही खानी चाहिए।राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
क्या न करें 
मदिरा और तम्बाकू के सेवन से राहु की दशा में विपरीत परिणाम मिलता है अत: इनसे दूरी बनाये रखना चाहिए. आप राहु की दशा से परेशान हैं तो संयुक्त परिवार से अलग होकर अपना जीवन यापन करें।

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