2- गाय का घी, कर्पूर, दीपक, घी की आहुति के लिये लंबा लकड़ी अथवा स्टील का चम्मच, हवन सामग्री मिलाने के लिये बड़ा पात्र, गंगाजल, लोटा या आचमनी, अनारदाना, पान के पत्ते, फूल माला, फल, भोग के लिये मिष्ठान, खीर आदि।
हवन आरम्भ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र हो सके तो लाल रंग के धारण कर लें। इसके बाद ऊपर बताई १ नंबर हवन सामग्री को पात्र में डालकर मिला लें। या बाजार में मिली सामग्री भी प्रयोग कर सकते है।
इसके बाद हवन के लिये वेदी सुविधा अनुसार खुली जगह पर बनाए अथवा बाजार में मिलने वाली हवान वेदी का प्रयोग करें हवन वेदी को इस प्रकार स्थापित करे जिसमे हवन करने वाले का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में आये।
इसके बाद अपने ऊपर गंगा जल छिड़के इसके बाद हवन पूजन सामग्री को भी गंगा जल से पवित्र कर लें। इसके बाद एक मिट्टी का अथवा जो भी उपलब्ध हो दिया प्रज्वलित करें दीपक को सुरक्षित स्थान पर अक्षत डाल कर स्थापित करे हवन के दौरान बुझे ना इसका ध्यान रखे। इसके बाद आम की लकड़ियों को हवन कुंड में रखे और कर्पूर की सहायता से जलाये। इसके बाद हाथ अथवा आचमनी से हवन कुंड के ऊपर से 3 बार जल को घुमा कर अग्नि देव को प्रणाम करें। अग्नि देव का यथा उपलब्ध सामग्री से पूजन करे मिष्ठान का भोग लगाएं, पुष्प माला हवन कुंड पर चढ़ाए ना कि अग्नि में डाले, तदोपरांत अग्नि देव से मानसिक प्रार्थना करे है अग्नि देव में जिन देवी देवताओं के निमित्त हवन कर रहा हूँ उनका भाग उनतक पहुचाने का कष्ट करें।
इसके बाद सर्वप्रथम पंच देवो की आहुति निम्न प्रकार मंत्र बोलते हुए दे मंत्र के बाद स्वाहा अवश्य लगाए स्वाहा के साथ ही आहुति भी अग्नि में अर्पण करते जाए।
ॐ गं गणपतये स्वाहा
ॐ रुद्राय स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्वाहा
ॐ सूर्याय स्वाहा
ॐ अग्निदेवाय स्वाहा
निम्न मंत्रो से केवल घी की आहुती दे तथा आहुति से शेष बचा घी एक कटोरी में जल भर कर रखे उसमे डालते जाए।
इसके बाद निम्न मंत्रो से भी घी की आहुति दें तथा शेष घी की कटोरी के जल में डालते रहे।
ॐ दुर्गा देवी नमः स्वाहा
ॐ शैलपुत्री देवी नमः स्वाहा
ॐ ब्रह्मचारिणी देवी नमः स्वाहा
ॐ चंद्र घंटा देवी नमः स्वाहा
ॐ कुष्मांडा देवी नमः स्वाहा
ॐ स्कन्द देवी नमः स्वाहा
ॐ कात्यायनी देवी नमः स्वाहा
ॐ कालरात्रि देवी नमः स्वाहा
ॐ महागौरी देवी नमः स्वाहा
ॐ सिद्धिदात्री देवी नमः स्वाहा
इन आहुतियों के बाद कम से कम 1 माला नवार्ण मंत्र से आहुति डाले
नवार्ण मंत्र
'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे नमः स्वाहा'
नवार्ण मंत्र से आहुति के बाद साधक गण जिन्हें सप्तशती मंत्रो से हवन नही करना वे बची हुई हवन सामग्री को पान के पत्ते पर रखकर साथ मे अनार दाना और ऊपर बताई नंबर 2 सामग्री लेकर अग्नि में घी की धार बना कर छोड़ दे तथा हाथ मे जल लेकर हवन कुंड के चारो तरफ घुमाकर जमीन पर छोड़ दे इसके बाद माता की आरती कर क्षमा प्रार्थना करले इसके बाद कटोरी वाले जल को पूरे घर मे छिड़क दें।
सप्तशती पाठ करने वाले लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।
दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री को पहले ही एकत्रित कर रखें
(एक बार ये भी करके देखे और खुद महसुस करे चमत्कारो को)
प्रथम अध्याय👉 एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।
द्वितीय अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष।
तृतीय अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद।
चतुर्थ अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष।
चतुर्थ अध्याय के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।
पंचम अध्ययाय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।
षष्टम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।
सप्तम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।
अष्टम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।
नवम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।
दशम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।
एकादश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।
द्वादश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल
त्रयोदश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।
नोट👉 ऊपर दिए गए मंत्र संख्या अनुसार हवन करें शेष मंत्रो में सामान्य हवन सामग्री का ही प्रयोग करे हवन के आरंभ एवं अंत मे यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र से आहुति डाले घी से दी गई आहुति को पात्र के जल में छोड़ते रहना है। नवार्ण आहुति के बाद पूर्ण आहुति के लिये एक सूखा नारियल (गोला) में सामग्री भर कर अग्नि में डाले तथा शेष बची सामग्री को नारियल पर घी की धार बांधते हुए उसी के ऊपर छोड़ दें आहुतियों के बाद अंत मे माता से प्रार्थना कर हाथ मे जल लेकर हवन कुंड के चारो तरफ घुमाकर जमीन पर छोड़ दे इसके बाद माता की आरती कर क्षमा प्रार्थना कर अग्नि से भस्मी निकालकर घर के सभी सदस्यों के तिलक करें पात्र के घी मिश्रित जल को घर मे छिड़क देंने से नकारत्मक शक्तियां खत्म हो जाती है। हवन के उपरांत यथा सामर्थ्य कन्याओं को भोजन करा दक्षिणा दे तदोपरान्त स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः . न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् .. १
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् . तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. २
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः . मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. ३
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया . तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. ४
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभववाञ्छापि च न मे न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः . अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः .. ८
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः . श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव .. ९