बांग्लादेश की मौजूदा पीएम शेख हसीना (76) लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने जा रही हैं। रविवार 7 जनवरी को हुए आम चुनाव में हसीना की पार्टी अवामी लीग ने संसद की 300 में से 204 सीटें जीत लीं। इस बार 299 सीटों पर वोटिंग हुई थी।
वहीं, हसीना ने लगातार आठवीं बार चुनाव जीता। गोपालगंज-3 सीट से उन्होंने बांग्लादेश सुप्रीम पार्टी के कैंडिडेट एम निजामुद्दीन लश्कर को 2.49 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया। हसीना को 2 लाख 49 हजार 965 तो निजामुद्दीन को महज 469 वोट मिले। हसीना पहली बार 1986 में चुनाव जीती थीं।
बांग्लादेश चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार चुनाव में 40% वोट पड़े। यह आंकड़ा बदल सकता है। 2018 के चुनाव में 80% मतदान हुआ था। देश में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) समेत विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था।
हसीना का ये 5वां टर्म
शेख हसीना पांचवीं बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं। वे 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री थीं। इसके बाद 2009 में फिर प्रधानमंत्री बनीं। तब से अब तक सत्ता पर काबिज हैं।
बांग्लादेश में विपक्ष ने 6 जनवरी को 48 घंटे की हड़ताल का ऐलान किया था। इसके बाद विपक्ष की गैरमौजूदगी में बैलट पेपर पर अवामी लीग, उसकी सहयोगी पार्टी और निर्दलीय कैंडिडेट्स के नाम ही लिखे गए। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग की जीत को औपचारिकता ही माना गया था।
हिंदुओं ने हसीना को वोट दिया
बांग्लादेश में 10% आबादी वाले हिंदुओं के वोट एकमुश्त अवामी लीग को गए और शेख हसीना की कुल 107 सीटों पर जीत पक्की हो गई। इसमें कई सीटें तो ऐसी हैं, जहां हिंदू वोटर 20-40% तक हैं। हिंदू-बौद्ध-ईसाई ओइक्या परिषद के संस्थापकों में से एक राणा दासगुप्ता ने कहा- इन सीटों पर हिंदू आबादी खतरे में है, इसलिए हिंदुओं ने हसीना को वोट दिया।
BNP का कल से प्रदर्शन का ऐलान
पूर्व प्रधानमंत्री और BNP प्रमुख खालिदा जिया ने कहा, 'मंगलवार (9 जनवरी) से देश में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू करने की योजना है। ये चुनाव फेक है।' BNP ने 2014 में भी चुनाव का बहिष्कार किया था, लेकिन 2018 में हिस्सा लिया। इस बार भी खालिदा की पार्टी समेत 16 दल चुनाव से दूर रहे।
हसीना का आदेश- जीत का जश्न न मनाएं कार्यकर्ता
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी पार्टी अवामी लीग के नेता और कार्यकर्ताओं को आदेश दिया है कि वो जीत का जश्न न मनाएं और न ही कोई रैली या जुलूस निकालें। हसीना के सेक्रेटरी सायम खान ने रविवार रात इस बारे में प्रधानमंत्री के हवाले से बयान जारी किया। उन्होंने कहा- नतीजे आने के बाद किसी तरह की हिंस नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे देश को नुकसान होता है।
वोट डालने के बाद हसीना ने कहा था- ‘हम भाग्यशाली हैं कि हमारा भारत जैसा विश्वसनीय दोस्त है। 1975 के बाद जब हमारा परिवार खत्म हो गया तो उन्होंने हमें शरण दी। इसलिए भारतीयों के लिए हमारी शुभकामनाएं हैं। मैं सुनिश्चित करना चाहती हूं कि बांग्लादेश में लोकतंत्र जारी रहे।’
2018 में शेख हसीना की पार्टी ने सबसे ज्यादा सीट जीती थीं
बांग्लादेश की संसद में कुल 350 सीटें हैं। इनमें से 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों पर चुनाव नहीं होता, जबकि 300 सीटों के लिए हर पांच साल में आम चुनाव होते हैं।
बांग्लादेश में 3 मुख्य राजनीतिक दल हैं- बांग्लादेश अवामी लीग, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जातीयो पार्टी। 2018 के आम चुनाव में 300 सीटों में से 290 सीटें पर इन्हीं तीनों दलों के उम्मीदवारों ने चुनाव जीता था। इनमें से 257 पर शेख हसीना की अवामी लीग, 26 सीटों पर जातीयो पार्टी जबकि 7 पर खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी को जीत मिली थी।
इस बार यानी 2024 में 27 राजनीतिक दलों के 1,500 से ज्यादा उम्मीदवारों के अलावा 436 स्वतंत्र उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे। इन उम्मीदवारों में से करीब 200 शेख हसीना के समर्थक हैं।
चुनाव जीतने के बाद क्या शेख हसीना पांच साल सरकार चला पाएंगीं?
विदेश मामलों के जानकार प्रोफेसर राजन कुमार की मानें तो बांग्लादेश में आगामी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी या नहीं, ये दो बातों पर निर्भर करता है…
1. पड़ोसी देशों से संबंध : बांग्लादेश जैसे छोटे देशों में राजनीतिक अस्थिरता तब देखी जाती है जब आसपास के मजबूत पड़ोसी देश, सत्ताधारी दल की जगह विपक्षी पार्टियों के समर्थन में खड़े हो जाएं। ऐसे में यदि भारत, चीन और अमेरिका जैसे देश अवामी लीग का विरोध करने लगते हैं तो शेख हसीना सरकार मुश्किल में पड़ सकती है।
लेकिन मौजूदा दौर में इस ऐसी उम्मीद कम ही नजर आती है। अवामी लीग को भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों का समर्थन मिला है। वहीं, बीएनपी और जापा के लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर नजर नहीं आता है।
2. इकोनॉमी : यदि शेख हसीना की आगामी सरकार में देश की आर्थिक हालत कमजोर होती है तो विपक्षी पार्टियों को विरोध करने का मौका मिल सकता है। ऐसे में अवामी लीग की सरकार खतरे में पड़ सकती है। जो कि पिछले कुछ सालों में श्रीलंका जैसे देशों में देखा गया है, लेकिन कोविड के बाद से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में लगातार ग्रोथ देखी जा रही है, जो जल्द ही कमजोर पड़ता नजर नहीं आ रहा है।
नॉर्थ-ईस्ट राज्यों से कनेक्शन के लिए बांग्लादेश भारत के लिए जरूरी
बांग्लादेश के साथ भारत सड़क, नदी और रेल मार्ग से जुड़ा है। इनका इस्तेमाल बांग्लादेश से व्यापार के साथ-साथ नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में जरूरी सामान पहुंचाने के लिए भी किया जाता है। ये 20 किलोमीटर चौड़ा एक कॉरिडोर है जो नेपाल, बांग्लादेश और भूटान के पास से होकर गुजरता है। इसे सिलगुड़ी कॉरिडोर या चिकेन्स नेक कहते हैं।
1996 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद से अवामी पार्टी की नेता शेख हसीना ने भारत से करीबी रिश्ते रखे हैं। 2001 में बांग्लादेश में BNP पार्टी ने चुनाव जीते। BNP लीडर खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं। इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ने यूं तो चुनावों को निष्पक्ष बताया था, लेकिन अल-जजीरा के मुताबिक इस दौरान हुई हिंसा में हिंदू समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया था।
BNP की सरकार में भारत-बांग्लादेश के रिश्ते बिगड़े
खालिदा की लीडरशिप में 2001 में ही सीमा पर झड़प के दौरान बांग्लादेश की पैरामिलिट्री के सैनिकों ने BSF के 16 जवानों की हत्या कर दी थी। इसके बाद उनके शवों को भी बुरी तरह से बिगाड़ दिया गया था। बांग्लादेश में भारत के राजदूत रहे पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने BBC को बताया- उन्होंने वहां कई जिहादी समूहों को जन्म दिया, जिनका इस्तेमाल अलग-अलग कामों को पूरा करने के लिए किया गया।
इनमें 2004 में शेख हसीना की हत्या की कोशिश और पाकिस्तान से आए हथियारों से भरे ट्रकों को पकड़ना शामिल था। 2009 में शेख हसीना की सत्ता में वापसी के साथ बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में सुधार आया। हसीना की सरकार ने उत्तर-पूर्वी इलाकों में एक्टिव नस्ली विद्रोही गुटों के खिलाफ कार्रवाई की, जो बांग्लादेश में रहते हुए भारत में हिंसा फैला रहे थे।
चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत नॉर्थ-ईस्ट में भारत के कई क्षेत्रों पर अपना दावा करता है। ऐसे में बांग्लादेश इन क्षेत्रों में भारत के लिए प्रतिरोध का काम करता है। बांग्लादेश के साथ भारत दुनिया की 5वीं सबसे लंबी सीमा साझा करता है। किसी भी स्थित में नॉर्थ-ईस्ट राज्यों तक मानवीय और सैन्य मदद पहुंचाने के लिए भारत बहुत हद तक बांग्लादेश पर निर्भर रहेगा।