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दस महाविद्या के शाबर मन्त्र साधना (नाथ सम्प्रदाय से) -1

Updated on 20-04-2021 02:00 PM
साधना विधि
साधक स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। इस समय निम्न मंत्रों को बोलें-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें।
शापोद्धार मंत्र का एक माला जाप करे-
।। ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा ।।
अब उत्कीलन मंत्र का एक माला जाप करे-
।। ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं मंत्र चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।।
ध्यान मंत्र:-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दसगुणात्मिकायै चामुंडायै प्रसीद प्रसीद दुर्गादेव्यै नमः॥
जब ध्यान हो जाये तब दस महाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र का नित्य 11 माला जाप 9 दिन रात्रिकालीन समय मे उत्तर मुखी बैठकर करे,आसन वस्त्र लाल रंग के हो।फोटो मे दुर्गा सप्तशती मंत्र दे रहा हु उसका कॉपी बनवाकर यंत्र को स्थापित करे और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से कर सकते हैं।इससे साधना के बाद नवार्ण मंत्र और दस महाविद्या मंत्रो मे पुर्ण सफलता प्राप्त होता है।साथ मे काली तंत्र का एक विधान दे रहा हु जिसे आप इस साधना को करने के बाद करे तो महाकाली जी का आशिर्वाद विषेश रुप से प्राप्त होता है। 
बाईस अक्षर का श्री दक्षिण काली मंत्र -
।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं स्वाहा ।। 
विनियोग-
अस्य श्री दक्षिण मंत्रस्य भैरव ऋषी: |उस्णिक छंद : |
दक्षिण कलिका देवता |क्रीं बीजं |ह्रुं शक्ति : |क्रीं कीलकम |ममाभिस्ट सिध्यथर्ये जपे विनियोग : |
ऋषयादी न्यास -
ॐ भैरव ऋषये नमः शिरसी ||१ ||
उष्णिक छंद्से नमः मुखे ||२||
दक्षिण कलिका देवताये नमः ह्रदि ||३||
क्रीं बीजाय नमः गृहे ||४||
ह्रूं शक्तये नमः पादयो ||५||
क्रीं किलकाय नमः नाभौ ||६||
विनियोगाय नमः सर्वांगे ||७||
करन्यास -
ॐ क्राम आन्गुष्ठाभ्याम नमः ||१||
ॐ क्रीं तर्जनिभ्याम नमः ||२||
ॐ क्रूं मध्यमाभ्याम नमः ||३||
ॐ क्रें अनामिकभ्याम नमः ||४||
ॐ क्रों कनिष्ठकाभ्याम नमः ||५||
ॐ क्र: करतल कर्पुश्थाभ्याम नमः ||६||
ह्रद्यादी षडंग न्यास -
ॐ क्राम ह्रदयाय नमः ||१||
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ||२||
ॐ क्रुम शिखाये वष्ट ||३||
ॐ क्रेह कवचाय ह्रुं ||४||
ॐ क्रों नेत्रत्रयाय वौष्ट ||५||
ॐ क्र: अस्त्राय फट ||६||
वर्णमाला न्यास -
ॐ अं अँ ईं ऊं ऊं त्र लृम लृम नामोह्रदी ||१||
ॐ अं अई ओ औ अं अ: कं खं गे धं दक्षभुजे ||२||
ॐ दं चं छं जं झं गं थं ठं ड ढ नमो वामभूजे ||३||
ॐ ण तं थं दं धं नं पं फं लं भं नमो दक्ष पादे ||४||
ॐ मं यं रं लं वं शं षम सं हं क्षम नमो वामपादे ||५||
इस न्यास के बाद निचे दिए गए न्यास करे-
ॐ क्रीं नमः भ्रमरन्ध्रे ||१||
ॐ क्रीं नमः भ्रूमध्ये ||२||
ॐ क्रीं नमः ललाटे ||३||
ॐ ह्रीं नमः नाभो ||४||
ॐ ह्रीं नमः गृह्ये ||५||
ॐ ह्रुं नमः वक्ते ||६||
ॐ ह्रुं नमः गुवर्गे ||७||
ध्यान मंत्र -
।। ॐ स्धशीचछन्नसिर: कृपणंभयं हस्तेवरम बिभ्रती धोरास्याम सिर्शाम स्त्रजा सुरुचिरामुन्मुक्त केशावलिम || स्रुकास्रुक प्रव्हाम स्मशान निल्याम श्रुतयो: रावालंकृति श्रुतयो: सवालंकृतिम श्यामांगी कृतमेख्लाम शवकरेदेवीभजे कालिकाम ।। 
इस तरह से ध्यान करके नीचे कर्म से दिये 10 महाविद्याओं के किसी एक मंत्र सिद्धि के लिए 9 दिन रात्रि काल मे नियमित 11 माला जाप करे।
सोरठा
ॐ सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया । गगण मण्डल में अनहद बाजा। 
वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा। 
यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या, यही ध्यान विष्णु की माया। 
ॐ कैलाश गिरि से आई पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठे गोरक्ष योगी 
देवी ने जब किया आदेश । नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश । 
सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही, 
नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई। 
राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई । 
कहो शिव-शंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा । 
यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार । 
हम नहीं जानत, अपनी करणी आप ही जानी । गोरख देखे सत्य की दृष्टि । 
दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया । 
हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई । 
कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई। 
तब सती ने शक्ति की खेल दिखाई, दश महाविध्या की प्रगटली ज्योति।


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