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स्वयं का परिष्करण ही गोवर्धन पूजा का सार...

Updated on 06-11-2021 03:25 AM
सनातन संस्कृति में सभीको पूजन योग्य माना गया है, विशेष रूप से प्रकृति के हर हिस्से हर प्रकार और हर रूप के को पूजने वाला भारत विश्व में एकमात्र देश है। एक ओर हमारे यहां नदियों और गायों को मां का स्थान दिया गया है, वहीं दूसरी ओर गोवर्धन पूजा जैसे पर्वों से प्रकृति की ओर आम व्यक्ति का भी रुझान बढ़ता है। हमारे लिए गोवर्धन पूजा कोई नया शब्द या विधि नहीं है, हर जगह गोवर्धन पूजा के अपने मायने और अपने तरीके हैं। इस पर्व को देश मे विशेषकर उत्तर भारत मे बहुत शानदार तरीके से मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा न सिर्फ़ इसलिये रोचक पर्व है क्योंकि गोवर्धन लीला के माध्यम से ही भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र के अहंकार को तहस-नहस किया था, बल्कि ये कृष्ण के बदलाव की अल्प अवधि की यात्रा भी है।
हालांकि सरल भाषा मे गोवर्धन लीला को इंद्र के घमंडी और क्रोधित होकर मथुरावासियों पर अतिवृष्टि और तूफान जैसे प्रयोग करने व कृष्ण द्वारा पर्वत धारण कर लोगों सहित पशुधन की रक्षा करने तक कि कथा है। लेकिन इस कथा के प्रारंभ में ही कृष्ण द्वारा इंद्र को भोग अर्पण न कर प्रकृति को पूजने का संदेश दिया जाता है । इस बात को अपना अपमान समझ देवराज इंद्र ने आमजनों पर शक्ति प्रयोग किया, दरअसल इंद्र के इसी हठ के चलते कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया। इंद्र के क्रोध और कृष्ण की सौम्यता के बीच वो पथ बना जिसने मुरलीधर कृष्ण को न सिर्फ गिरधर कृष्ण के रूप में स्थापित किया बल्कि गोवर्धन को भी पूज्य बनाकर सदा के लिए प्रासंगिक बना दिया। यहां प्रश्न यह भी है कि इंद्र के अहंकार को श्री कृष्ण देवलोक जाकर भी खंड खंड कर सकते थे, ऐसी स्थिति में गोवर्धन लीला की आवश्यकता ही क्या थी? किंतु इंद्र से भयभीत आम जनों के सामने ही इंद्र का अहंकार तोड़ना कृष्ण के लिए आवश्यक था। क्योंकि इस प्रसंग की शुरूआत ही कृष्ण से हुई है जहां उन्होंने मथुरावासियों से इंद्र से पहले उस गोवर्धन पर्वत को पूजने की अपील की जो वहां के निवासियों और पशुधन की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहा है, यही तथ्य गोवर्धन लीला का आधार बना और कृष्ण का परिष्करण इस लीला की पूर्णता है।
कृष्ण की सारी लीलाओं में प्रकृति का अनुपम समावेश देखने को मिलता है, महारास हो या नाग नाथ लीला, अथवा बंसी की मधुर स्वरलहरियों की गवाह प्रकृति आज भी है। प्रकृति को पूजने और श्री कृष्ण के अल्प समय में ही स्वयं को परिष्कृत कर लेने की लीला (गोवर्धन पूजा) से हमें भी, अन्याय के विरुद्ध सभी को संगठित कर उनका अगुआ बनने और उन पर विपत्ति के समय सबसे पहले उस विपत्ति से जूझने हेतु तत्पर रहने की शिक्षा लेनी चाहिए I

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