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नवरात्रि का दूसरा दिन- मां ब्रह्मचारिणी की होती है पूजा

Updated on 08-10-2021 01:03 PM
हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व बहुत ही पवित्र माना गया है. 7 अक्टूबर 2021 से नवरात्रि का पावन पर्व आरंभ हो चुका है. 8 अक्टूबर 2021, शुक्रवार को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी I

मां ब्रह्मचारिणी 
शास्त्रों में मां ब्रह्मचारिणी को मां दुर्गा का विशेष स्वरूप माना गया है I नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है I मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से तप, शक्ति ,त्याग ,सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है और शत्रुओं को पराजित कर उन पर विजय प्रदान करती हैं. नवरात्रि के द्वितीय दिवस पर विधि पूर्वक पूजा करने से मां ब्रह्मचारिणी सभी मनाकोमनाओं को पूर्ण कर जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर करती हैं I


मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
पौराणिक कथाओं में मां ब्रह्मचारिणी को महत्वपूर्ण देवी के रूप में माना गया है. मां ब्रह्मचारिणी नाम का अर्थ तपस्या और चारिणी यानि आचरण से है. मां ब्रह्मचारिणी को तप का आचरण करने वाली देवी माना गया है I


मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में तप की माला और बांए हाथ में कमण्डल है. धार्मिक मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में तप त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम प्राप्त होता है.मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है. जीवन की सफलता में आत्मविश्वास का अहम योगदान माना गया है. मां ब्रह्मचारिणी की कृपा प्राप्त होने से व्यक्ति संकट आने पर घबराता नहीं है I


 नवरात्रि का दूसरा दिन और पूजा की विधि 
शुक्रवार को प्रात: उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल पर विराजें. मां दुर्गा के इस स्वरूप मां ब्रह्माचिरणी की पूजा करें. उन्हें अक्षत, फूल, रोली, चंदन आदि अर्पित करें. मां को दूध, दही, घृत, मधु और शक्कर से स्नान कराएं. मां ब्रह्मचारिणी को पान, सुपारी, लौंग भी चढ़ाएं. इसके बाद मंत्रों का उच्चारण करें. हवनकुंड में हवन करें साथ ही इस मंत्र का जाप करते रहें -  ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नम:
इसके उपरांत स्थापित कलश, नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता और ग्राम देवता की पूजा करनी चाहिए I

मां ब्रह्मचारिणी की कथा
एक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी की पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं I भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां ब्रह्मचारिणी ने कठोर तप किया , इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया I पौराणिक कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया I  इसके बाद मां ने  कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं I टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं I भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया. मां ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई. इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया I




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