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सऊदी विदेश मंत्री बोले- हूती विद्रोहियों पर हमलों से टेंशन बढ़ा समुद्री रास्ते सभी के लिए खुले हों

Updated on 22-01-2024 03:01 PM

मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव से सऊदी अरब भी परेशान है। इसके विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान ने कहा है कि हूती विद्रोहियों पर हमले और उसका अमेरिका-ब्रिटेन से टकराव हालात और बिगाड़ सकता है।

CNN को दिए इंटरव्यू में फैसल ने कहा- समुद्री रास्ते सभी के लिए खुले होने चाहिए और यहां हर किसी को बेरोकटोक सफर की आजादी होनी चाहिए। हम इसके लिए आवाज पहले भी उठाते रहे हैं।

सऊदी डिप्लोमैसी पर दबाव

प्रिंस फैसल ने भले ही यमन के हूती विद्रोहियों पर खुलकर कुछ नहीं कहा हो, लेकिन ये माना जा रहा है कि उनकी सरकार हूती विद्रोहियों से दोबारा टकराव नहीं चाहती, क्योंकि पूर्व में दोनों के बीच टकराव का नुकसान सऊदी अरब को ही हुआ था। दूसरी तरफ, अमेरिका और ब्रिटेन को भी सऊदी अरब नाराज नहीं कर सकता, क्योंकि वो हूती विद्रोहियों से समंदर को बचाना चाहते हैं। ये विद्रोही कार्गों और पैंसेजर शिप्स को हाईजैक करने के बाद फिरौती मांगते हैं।

फैसल ने कहा- पश्चिम एशिया और खाड़ी में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, वो बेहद खतरनाक हैं। इससे हर हाल में जल्द से जल्द निपटना होगा और कोई तरीका ऐसा खोजना होगा, जिससे जहाजों को भी खतरा न हो। यही वजह है कि हम हर दिन इस तनाव को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

एक सवाल के जवाब में फैसल ने कहा- कौन नहीं चाहता कि समुद्र में फ्री नेविगेशन होना चाहिए। समुद्री रास्तों पर किसी का अधिकार कैसे हो सकता है। लेकिन, इसके लिए तरीके बहुत समझदारी से खोजने होंगे।

फैसल ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि अमेरिका और ब्रिटेन को हूती विद्रोहियों पर हमले करने चाहिए या नहीं। वो इस सवाल को टाल गए।

इजराइल को टारगेट करना चाहते हैं हूती विद्रोही

पिछले महीने हूती विद्रोहियों ने लाल सागर और उसके आसपास 100 से ज्यादा हमले किए हैं। करीब एक महीने पहले हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में एक कार्गो शिप गैलेक्सी लीडर को हाईजैक कर लिया था। यह जहाज तुर्किये से भारत आ रहा था। हूती विद्रोहियों ने इसे इजराइली जहाज समझ कर हाईजैक किया था।

वारदात से पहले हूती समूह ने इजराइली जहाजों पर हमले की चेतावनी दी थी। हूती विद्रोहियों के एक स्पोक्सपर्सन ने कहा था कि इजराइल की तरफ से चलने वाले सभी जहाजों को निशाना बनाया जाएगा।

कौन हैं हूती विद्रोही

साल 2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हुआ। इसकी जड़ शिया-सुन्नी विवाद है। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरुआत से गृह युद्ध में बदल गया। 2014 में शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। हादी देश में बदलाव के बीच स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।

अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का।

देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।

चीन ने कराया था समझौता

यमन में 9 सालों से चल रही जंग को जारी रखने में सऊदी अरब और ईरान दो महत्वपूर्ण ताकतें हैं। यमन की सरकार को जहां सऊदी का समर्थन है वहीं हूती विद्रोहियों को ईरान का। ऐसे में अगर ईरान और सऊदी के बीच बातचीत होती है और उनके रिश्ते सुधरते हैं तो यकीनन इसका असर यमन की जंग पर पड़ना तय माना जा रहा था।

11 मार्च को चीन की राजधानी बीजिंग में ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। जो चीन ने करवाया। 2016 के बाद दोनों ने एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए थे। इससे दोनों देशों के बीच सात साल से जारी टकराव कम हुआ। दरअसल, सात साल पहले सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी। ये सभी जेल में हैं।

इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग स्मगलिंग के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। दोनों देश जंग की कगार पर पहुंच गए। इस दौरान अमेरिका सऊदी की मदद के लिए आया।

 अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल में यमन के गृह युद्द को बंद करवाने का वादा किया था। जिसे चीन ने पूरा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियार सप्लाई करने की पॉलिसी पर चलने के कारण अमेरिका की मिडल ईस्ट में ऐसी छवि नहीं रह गई थी कि उसे शांति स्थापित करवाने के लायक समझा जा सके। जिसका चीन ने फायदा उठाया है। सऊदी और ईरान के बीच समझौता करवा कर चीन ने यमन में जंग खत्म करने के लिए रास्ता खोल दिया।



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