क्या है लोको पायलटों की मांग
लोको पायलट चाहते हैं कि मेल/एक्सप्रेस गाड़ियों में छह घंटे और मालगाड़ी में आठ घंटे की ड्यूटी का रोस्टर हो। उनका कहना है कि 19वीं सदी में, जब औद्योगिक क्रांति आई थी, आठ घंटे काम, आठ घंटे विश्राम और आठ घंटे परिवार के लिए पूरी दुनिया की बुनियादी श्रम मांगें थीं। यह बिल्कुल भयावह है कि आजादी के 77 साल बाद भी सरकार के अधीन केंद्रीय सरकारी संस्थान में 8 घंटे के काम के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
रोगी बन जाते हैं ट्रेन ड्राइवर
एक लोको पायलट कहते हैं कि इस बारे में कई स्टडीज हो चुकी है। लगातार 85 डेसिबल से ऊपर की ध्वनि सुनने से सुनने की शक्ति पर गंभीर असर पड़ सकता है, लेकिन उनमें से हर किसी को 95 डेसिबल से ऊपर की ध्वनि में 10 और 15 घंटे काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जब वह ट्रेन लेकर कई स्टेशनों और सिगनलों से 100 और 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरते हैं तो लोको में भीषण कंपन होता है। इससे शरीर में जो दर्द होता है उसकी तुलना किसी कार्यालय में आठ घंटे काम करने वाले व्यक्ति से कैसे की जा सकती है। इसी वजह से अधिकतर लोको पायलट हाई ब्लड प्रेशर और शुगर के मरीज बन जाते हैं।
रेलवे में 20 हजार लोको पायलट के पद खाली
भगत बताते हैं कि इस समय देश भर में लोको पायलट की करीब 20,000 रिक्तियां हैं। इसलिए काम में छुट्टी नहीं देना एक आम विचारधारा बन गई है। वह कहते हैं कि किसी व्यक्ति की काम के प्रति जिम्मेदारी के अलावा, उसकी अपने परिवार और समाज के प्रति भी जिम्मेदारी है। लेकिन पर्याप्त छुट्टी नहीं मिलने से उनका यह काम भी नहीं हो पाता है। अधिकतर लोको पायलटों का सामाजिक जीवन रेल इंजन तक ही सीमित हो जाता है।