रूस में आज से राष्ट्रपति पद के चुनाव शुरू गए हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है जब रूस में एक दिन की जगह तीन दिन तक चुनाव चलेंगे। 18 साल से ज्यादा की उम्र वाला ऐसा रूसी नागरिक जो किसी क्रिमिनल केस में जेल की सजा न काट रहा हो, वो मतदान कर सकता है। चुनाव के नतीजे मॉस्को के समय के मुताबिक, 17 मार्च की रात तक जारी हो सकते हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, चुनाव से पहले ही पुतिन को फिर से राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा है। दरअसल, पुतिन पिछले 24 साल से रूसी की सत्ता पर काबिज हैं। पुतिन के ज्यादातर विरोधी इस वक्त या तो जेल में है या फिर चुनाव आयोग ने उन्हें इलेक्शन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है।
2036 तक रूस के राष्ट्रपति रह सकते हैं पुतिन
इसके अलावा पुतिन ने साल 2021 में ऐसा कानून बनाया था जिसके तहत वो 2036 तक रूस के राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। दरअसल, साल 2018 के चुनावों तक रूस में कोई भी राष्ट्रपति लगातार 2 कार्यकाल से ज्यादा समय तक राष्ट्रपति नहीं रह सकता था। इसी वजह से साल 2000 से 2008 तक राष्ट्रपति रहने के बाद पुतिन ने 2008 में राष्ट्रपति पद का चुनाव नहीं लड़ा था।
इसके बाद वो 2012 में फिर से रूस की सत्ता में लौटे थे। हालांकि, 2008-12 तक पुतिन रूस के प्रधानमंत्री थे। नए कानून के मुताबिक लगातार 2 बार राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा करने के बाद भी पुतिन चुनाव लड़ सकते हैं।
रूस में पहली बार होगी ऑनलाइन वोटिंग
रूस के चुनाव आयोग के मुताबिक देश में 11.23 करोड़ मतदाता हैं। इन वो लोग भी शामिल हैं जो रूसी कब्जे वाले यूक्रेनी क्षेत्र के नागरिक भी शामिल हैं। इसके अलावा करीब 19 लाख वोटर देश से बाहर रहते हैं। इस बार रूस में ऑनलाइन वोटिंग की भी सुविधा रहेगी। यह सुविधा रूस के 27 क्षेत्रों और क्रीमिया में होगी। क्रीमिया यूक्रेन का वही क्षेत्र है, जिस पर रूस ने साल 2014 में कब्जा कर लिया था।
रूस के अलावा यूक्रेन के डोनेट्स्क, लुहांस्क, जपोरीजिया और खेरसॉन जैसे क्षेत्रों में वोटिंग हो रही है। ये वही जगहे हैं, जहां 2022 में यूक्रेन के खिलाफ जंग की शुरुआत के बाद रूस ने कब्जा कर लिया था। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये क्षेत्र पूरी तरह से रूस के कंट्रोल में नहीं हैं। यूक्रेन और पश्चिमी देशों ने यहां मतदान कराने की निंदा की है। कुछ क्षेत्रों में शुरुआती वोटिंग पहले से ही शुरू हो चुकी है।
पुतिन के अलावा चुनाव में 3 और उम्मीदवार
रूस के चुनाव आयोग के दस्तावेजों में पुतिन निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके अलावा बैलट पेपर पर कम्यूनिस्ट पार्टी के निकोलई खरितोनोव, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के लियोनिड स्लट्स्की और न्यू पीपुल पार्टी के व्लादीस्लाव दावानकोव का नाम है।
तीनों ही राजनीतिक दलों को क्रेमलिन-समर्थित पार्टी माना जाता है। ये पुतिन की नीतियों और यूक्रेन के खिलाफ जंग के समर्थक हैं। लियोनिड अमेरिका विरोधी हैं और इन पर यौन शोषण के आरोप हैं। वहीं व्लादीस्लाव ने अपनी पार्टी का गठन 2020 में ही किया है, और यह उनका पहला चुनाव है। 2018 के चुनाव में पुतिन को 76.7% वोट मिले थे, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी को 11.8% वोट हासिल हुए थे।
चुनाव से 1 महीने पहले पुतिन के सबसे बड़े विरोधी नवलनी की संदिग्ध मौत
रूस में पुतिन के सबसे बड़े विरोधी और प्रतिद्वंदि माने जाने वाले नेता अलेक्सी नवलनी की 16 फरवरी को संदिग्ध हालात में जेल में मौत हो गई थी। चुनाव से पहले वो जेल से लगातार पुतिन के खिलाफ बयान दे रहे थे। नवलनी को 2021 में 19 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। खास बात यह है कि पश्चिमी देशों की तरफ से लगातार दबाव के बावजूद अब तक नवलनी की मौत की वजह साफ नहीं हो पाई है।
साल 2011-12 में रूस की कुछ सबसे बड़ी विपक्षी रैलियां संसदीय और राष्ट्रपति चुनावों के बाद हुई थीं। इस दौरान चुनाव में धांधली के आरोप लगाए गए थे। इसके बाद क्रेमलिन ने रूस के विपक्षी नेताओं के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी। इस बार रूस यूक्रेन के उन इलाकों में भी चुनाव करवा रहा है, जहां उसने कब्जा कर रखा है। ऐसे में चुनाव के खिलाफ प्रदर्शन होने की आशंका बढ़ गई है।
इसके अलावा यूक्रेन लगातार रूस के कब्जे से अपने क्षेत्रों को छुड़ाने की कोशिश कर रहा है। चुनाव के बाद राजनीतिक स्तर पर भी इन इलाकों में पुतिन की पकड़ मजबूत हो सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐसे में चुनाव में रोड़ा डालने के लिए यूक्रेन इन इलाकों में हमला भी कर सकता है।
पुतिन के लिए रूस के चुनाव अहम क्यों?
पुतिन के लिए ये चुनाव रूस की राजनीति पर उनकी पकड़ मजबूत करने का काम करेंगे। इसके अलावा चुनाव इस बात की भी पुष्टि करेंगे कि रूसी नागरिक अब भी देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिहाज से पुतिन पर भरोसा करते हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यूक्रेन जंग का मकसद कीव में मौजूद सरकार को जल्द से जल्द गिराना था। हालांकि, रूस ऐसा नहीं कर सका और रूसी हमला एक संघर्ष में बदल गया। इस दौरान सैकड़ों लोगों ने इसका खामियाजा भुगता। यूक्रेन जंग के दौरान जहां एक तरफ रूस ने अपने सैनिक खोए, तो वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से भी रूस की जनता को दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
रूस के राजनीतिक विशेषज्ञ निकोलय पेत्रोव के मुताबिक, जंग के तीसरे साल की शुरुआत के साथ ही अब क्रेमलिन का मकसद यह दिखाना है कि जंग के बाद पुतिन के लिए जनता का विश्वास और मजूबत हुआ है।
कैस है रूस का पॉलिटिकल सिस्टम
रूस की संसद जिसे फेडरल असेंबली कहते हैं, इसके भी भारत की तरह 2 हिस्से हैं। ऊपरी सदन को काउंसिल ऑफ फेडरेशन कहा जाता है और निचला सदन स्टेट डुमा। रूस में राष्ट्रपति का पद सबसे पावरफुल होता है।
भारत में प्रधानमंत्री का जो रोल है रूस में वो पावर राष्ट्रपति के पास होती है। पावर के नाम पर दूसरा नंबर आता है प्रधानमंत्री का, तीसरा सबसे शक्तिशाली शख्स होता है फेडरल काउंसिल (ऊपरी सदन) का अध्यक्ष।