कुछ दिनों पहले अखबार में हिंदी को लेकर एक आर्टिकल पढ़ा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर देना चाहिए। अनायास ही मेरे मुँह से निकला- वाह! यदि ऐसा होना चाहिए, तो जिस भारत की परम्परा विविध सभ्यताओं और भाषाओं वाली है, उसका क्या? किसी विशेष क्षेत्र की भाषा, रीति-रिवाज को अन्य क्षेत्रों की भाषा या रीति-रिवाजों से केंद्र द्वारा अधिक महत्व देना, देश की एकता पर आघात करने जैसा है। भारत अनेकताओं में एकता वाला देश है। हमारे संविधान में कहीं भी राष्ट्रभाषा का जिक्र तक नहीं है। अक्सर लोग ऐसे विचार भावनात्मक या फिर राजनैतिक आधार पर रखते हैं। पर उसके परिणाम के विषय में तनिक भी नहीं सोचते।
राष्ट्रभाषा बनाने से अधिक महत्वपूर्ण है हिंदी भाषियों द्वारा हिंदी का प्रयोग। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि किसी भी हिंदी भाषी से आप पूछेंगे कि क्रिकेट को हिंदी में क्या बोलते हैं? तो वह 'गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन प्रतियोगिता' नहीं बता पाएगा। इतनी हिंदी, हिंदी भाषी को पता होगी? और मोटरसाइकिल को हिंदी में क्या कहेंगे? 'यंत्र चालक द्वीपथ गामिनी' और पंप को वायु ठूसक यंत्र, अलमारी, रेल इत्यादि। ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएँगे, जो शब्द हिंदी नहीं हैं, लेकिन हम इन्हें आम बोलचाल में उपयोग करते आ रहे हैं।
ऐसी परिस्थिति में जब हिंदी भाषियों ने हिंदी पढ़ना या लिखना बंद कर दिया है, और इसके बाद आता है समझना, तो समझ तो हम इतने अच्छे से रहे हैं कि बेकार में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग करके देश को तोड़ने का कार्य भी बड़ी कुशलता से कर रहे हैं। हम स्वयं तो हिंदी पढ़ेंगे या लिखेंगे नहीं, लेकिन दूसरों को अवश्य पढ़वाएँगे। हिंदी प्रदेशों में कोर्ट कचहरी, बैंक, मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई, अखबार, सरकारी अनुबंध इत्यादि के काम अंग्रेजी में हो रहे हैं। नौकरी अंग्रेजी से मिल रही है। तो हमारा संघर्ष अंग्रेजी से होना चाहिए भारतीय भाषाओं से नहीं। मराठी, दक्षिणी भाषी या बंगाली को हिंदी का राष्ट्रभाषा बनना कतई स्वीकार्य नहीं होगा और इसकी आवश्यकता भी क्यों है? मेरे हिसाब से तो यह फालतू के मुद्दें हैं, जिन्हें उठाना ही नहीं चाहिए।
#2030 के भारत के रूप में अगर हम हिंदी को बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, तो हमें हिंदी विशेषज्ञों को बैठाकर आसान और उच्च स्तर के शब्द ईजाद करने होंगे। जब तक हम आसान शब्दकोश नहीं लाएँगे, तब तक हिंदी को विस्तृत नहीं कर पाएँगे। हिंदी को कई भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात कि पहले हिंदी राज्यों में ठीक से हिंदी का प्रयोग हो। हमारे अपने जीवन में हिन्दी का प्रयोग हो, फिर राष्ट्रभाषा क्या, विश्वभाषा की सोचिए।
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
लोकसभा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं।अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 की 29 …
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां…
भाजपा के राष्ट्रव्यापी संगठन पर्व सदस्यता अभियान में सदस्य संख्या दस करोड़ से अधिक हो गई है।पूर्व की 18 करोड़ की सदस्य संख्या में दस करोड़ नए सदस्य जोड़ने का…
छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…