पिछले छब्बीस सालों में यह पहली बार था, जब भारतीय प्रधानमंत्री मिस्र की यात्रा पर गए। पिछले साल गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी को आमंत्रित किया गया था। यह भी पहली बार था, जब भारत ने मिस्र के किसी राष्ट्र प्रमुख को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया।
तभी राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और प्रतिरक्षा आदि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर दोनों देशों के बीच व्यापक समझौते हुए थे। इस बार प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद दोनों देशों ने इसे रणनीतिक साझेदारी तक ले जाने का संकल्प लिया है। हालांकि मिस्र और भारत के संबंध सदियों पुराने हैं, मगर आज जिस तरह से दुनिया बदल रही है, उसमें रणनीतिक साझेदारी बहुत अहम हो गई है।
पिछले छब्बीस सालों में यह पहली बार था, जब भारतीय प्रधानमंत्री मिस्र की यात्रा पर गए। पिछले साल गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी को आमंत्रित किया गया था। यह भी पहली बार था, जब भारत ने मिस्र के किसी राष्ट्र प्रमुख को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया।
तभी राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और प्रतिरक्षा आदि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर दोनों देशों के बीच व्यापक समझौते हुए थे। इस बार प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद दोनों देशों ने इसे रणनीतिक साझेदारी तक ले जाने का संकल्प लिया है। हालांकि मिस्र और भारत के संबंध सदियों पुराने हैं, मगर आज जिस तरह से दुनिया बदल रही है, उसमें रणनीतिक साझेदारी बहुत अहम हो गई है।
भारत मिस्र को इस्लामिक सहयोग संगठन के महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है। इस तरह मिस्र के साथ संबंध प्रगाढ़ होने से इस्लामिक देशों के साथ भी भारत के रिश्ते मजबूत होंगे। इस वक्त भारत के लिए बड़ी चुनौती पड़ोसी देश से आतंकवादी प्रश्रय को खत्म करने की है। अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए भी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर उस पर नकेल कसने की जरूरत पर बल दिया।
मिस्र में भी उन्होंने इसे रेखांकित किया। अगर मिस्र गंभीरता दिखाए, तो पाकिस्तान से भारत को मिल रही आतंकी चुनौतियों को कम करने में काफी मदद मिल सकती है। प्रधानमंत्री की मिस्र यात्रा के बाद भारतीय व्यापार संगठनों ने सुझाव दिया है कि भारत को मिस्र के साथ मुक्त व्यापार शुरू करना चाहिए, इस तरह मिस्र की व्यापारिक संभावनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सकता है।
इस पर भारत सरकार क्या कदम उठाती है, देखने की बात है। मगर व्यापारिक दृष्टि से मिस्र अब भी भारत के लिए बड़ा बाजार है। करीब पचास भारतीय कंपनियों ने वहां लगभग साढ़े तीन अरब डालर निवेश किया हुआ है। भारत अपने निर्यात का बड़ा हिस्सा मिस्र को भेजता है। फिर स्वेज नहर के जरिए अफ्रीका और यूरोप तक भारत की पहुंच आसान हो सकती है।
मगर मिस्र में भी भारत के लिए बड़ी अड़चन चीन है। मिस्र से चीन का कारोबार भारत से करीब दो गुना अधिक है। फिर, कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जिस तरह मिस्र की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है, वह चीन की तरफ नजरें टिकाए रहता है। पिछले नौ सालों में मिस्र के राष्ट्रपति करीब आठ बार चीन की यात्रा कर चुके हैं।
ऐसे में जिस तरह भारत की अमेरिका से नजदीकी बढ़ रही है, उसमें चीन किसी भी रूप में मिस्र को उसकी तरफ झुकने नहीं देना चाहेगा। ऐसी स्थिति में भारत को मिस्र में चीन से अधिक निवेश पर जोर देना होगा। फिर स्वेज नहर के जरिए भारत की व्यापारिक गतिविधियां तेज होना भी इसलिए आसान नहीं कि उसके लिए विभिन्न देशों के साथ मिस्र के पहले से समझौते हैं। इन सबके बावजूद मिस्र का रुख भारत के प्रति अधिक भरोसे का नजर आता है।