कुदरती हीरे धरती के गर्भ में लाखों साल की प्रोसेस में बनते हैं। इन्हें माइनिंग के जरिए निकाला जाता है। वहीं लैब ग्रोन डायमंड को प्रयोगशालाओं में बनाया जाता है। देखने में ये भी असली डायमंड्स जैसे दिखते हैं। दोनों का केमिकल कंपोजिशन भी एक ही जैसा होता है। लेकिन लैब में हीरे एक से चार हफ्तों में तैयार हो जाते हैं। इन्हें भी सर्टिफिकेट के साथ बेचा जाता है।
कुदरती हीरा कार्बन से बना होता है। यह जमीन के अंदर भारी दबाव और बहुत ऊंचे तापमान में लाखों वर्षों में तैयार होता है। लैब में हाई प्रेशर और हाई टेंप्रेचर के साथ आर्टिफिशल हीरा बनाया जाता है। इसके लिए कार्बन सीड की जरूरत होती है। उसे माइक्रोवेव चैंबर में रखकर डिवेलप किया जाता है। तेज तापमान में गरम करके उससे चमकने वाली प्लाज़्मा बॉल बनाई जाती है। इस प्रोसेस में ऐसे कण बनते हैं जो कुछ हफ्तों बाद डायमंड में बदल जाते हैं। फिर उनकी कुदरती हीरों जैसे कटिंग और पॉलिशिंग होती है।
विदेशों में लैब में बने डायमंड की रीसेल वैल्यू 60-70% तक भी है, क्योंकि वहां डिमांड ज्यादा है। जानकारों का कहना है कि भारत में भी देश में भी डिमांड आएगी तो इसका बड़ा मार्केट होगा और रीसेल वैल्यू बढ़ेगी। बाजार बिक रहे डायमंड में लैब ग्रोन डायमंड का शेयर 30 पर्सेंट के आसपास है।