बॉलीवुड एक्टर और मध्य प्रदेश पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर पंकज त्रिपाठी भोपाल में हैं। जहां उन्होंने कहा कि अभिनय सबसे मुश्किल काम है। पर्दे पर जितना आसान लगता है वह उतना होता नहीं है। यह बहुत कठिन काम है। एक्टर दुनिया में इकलौते ऐसे मजदूर हैं जो इमोशन पर काम करते हैं। बाकी सभी पेशे में शारीरिक या फिर मानसिक यानी दिमाग या शरीर का काम होता है। एक्टर इकलौते हैं जो इमोशन पर मजदूरी करते हैं।
एक्टर पंकज त्रिपाठी ने कहा-
यह पीड़ा हमारी नहीं है। ना ही यह दुख हमारा है। फिर भी हम उस दुख को भी रीक्रिएट करते हैं। इसे रीक्रिएट करने में हम दिमाग से एक झूठी सूचना अपने शरीर को देते हैं और यही एक एक्टर की अच्छी ट्रेनिंग होती है।
उन्होंने कहा- इसमें बहुत पीड़ा होती है। यही वजह है कि एक्टर बहुत जल्दी चिढ़ सकता है या वो बहुत जल्दी गुस्सा हो सकता है। लेकिन बहुत से ऐसे एक्टर भी है जिनको इतनी गहराई में जाने की जरूरत नहीं होती है। हमारे जैसे थिएटर वाले एक्टर चाहते हैं कि हम सच्चे दिखे। इसी वजह से अपने किरदारों के दुख, वेदना और पीड़ा लेकर हम अपने घर आ जाते हैं। कई बार वह हमारी जिंदगी में भी आ जाती है और हमारी जिंदगी की खुशी हम किरदारों को दे आते हैं।
कालीन भैया नहीं मोटिवेशनल स्पीकर की तरह बात करुंगा
एक्टर पंकज त्रिपाठी माखन लाल राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कार्यक्रम 'एक्सपर्ट्स शॉट्स' में शामिल हुए। इस दौरान प्रसिद्ध वॉयस ओवर आर्टिस्ट विजय विक्रम सिंह ने पंकज त्रिपाठी से कई रोचक सवाल किए। जहां उन्होंने अपने फिल्मी संघर्ष और सफर के बारे में विस्तार से बताया।
इस दौरान वे एक बार भावुक भी हुए। उन्होंने छात्रों से कहा कि आज मैं कालीन भैया नहीं बल्कि एक मोटिवेशनल स्पीकर की तरह बातें करूंगा। मेरी कोशिश रहेगी कि जब आप इस कमरे से बाहर निकलो तो इतना मोटिवेट हो कि आप कमरे से निकालकर चले नहीं बल्कि उड़ने लगे।
जरूरी नहीं सिर्फ मोबाइल में ही स्मृतियां बने
पंकज त्रिपाठी ने कहा कि आज हम ऐसे आधुनिक युग में जी रहे हैं जहां सबके हाथ में स्मार्टफोन हैं। यहां हर कोई फोटो लेना चाहता है। लेकिन, मैं कहता हूं कि दुनिया की सबसे बड़ी मेगापिक्सल का लेंस हमारी दोनों आंखें हैं। वहीं दिमाग से बड़ा कोई मेमोरी कार्ड नहीं है। किसी चीज को अपनी आंखों से रिकॉर्ड करके दिमाग रूपी मेमोरी कार्ड में डाल दो। यह भी एक तरह की स्मृतियां ही है। जरूरी नहीं है सिर्फ मोबाइल में ही स्मृतियां बनाई जाएं। आजकल हर कोई मोबाइल में स्मृतियां बनाने लगा है।
यहीं वजह है कि हम धीरे-धीरे आखें और दिमाग की स्मृतियों को खो रहे हैं। आज हर कोई मेरी सेल्फी लेना चाहता है लेकिन आज से 10 साल पहले इसी भोपाल के औबेदुल्लागंज रेलवे स्टेशन पर उतरा था। तब अपना बैग लेकर भारत भवन चला गया और नाटक करने लगा। उस समय मुश्किल से 150 लोग आए थे। आज से फिर औबेदुल्लागंज पहुंचूंगा और वापस सिर्फ डेढ़ सौ लोग ही आएंगे।