कोलंबो। श्रीलंका में 20वें संविधान संशोधन की राह आसान नहीं दिख रही है। संविधान संशोधन का मसौदा दो सितंबर को राजपत्र में प्रकाशित हो चुका है। इसे लेकर सत्तारूढ़ एसएलपीपी संसदीय दल में ही विरोध शुरू हो गया है। यह 2015 में हुए 19वें संविधान संशोधन की जगह लेगा। इस संशोधन में राष्ट्रपति को प्राप्त अधिकारों को कम करके संसद को ज्यादा शक्तिशाली बनाया गया था। श्रीलंका की शासन व्यवस्था 1978 में पूरी तरह राष्ट्रपति प्रणाली के तहत आ गई थी। इसके बाद से संविधान संशोधन 19ए को सबसे प्रगतिशील लोकतंत्र समर्थक सुधार माना जा रहा था। इसके जरिये न्यायपालिका, लोकसेवा और चुनाव आयोग जैसे लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करके प्रशासन तंत्र को राजनीति से मुक्त करने का प्रावधान किया गया था। 19ए में राष्ट्रपति के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई के प्रावधान किए गए थे, लेकिन 20वें संशोधन में इसे हटाकर राष्ट्रपति को पूरी कानूनी छूट बहाल करने का प्रस्ताव है।
प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि 20ए के मौजूदा स्वरूप की समीक्षा के लिए नौ सदस्यीय मंत्रिसमूह का गठन किया गया है। अगर जरूरी हुआ तो नए सिरे से राजपत्र का प्रकाशन किया जाएगा। इसकी रिपोर्ट 15 सितंबर तक आने की उम्मीद है। 20ए में कई अहम बदलाव के प्रस्ताव हैं। जैसे कि संवैधानिक परिषद की जगह संसदीय परिषद का गठन किया जाएगा। इसमें सिविल सोसाइटी के लोगों के लिए कोई जगह नहीं होगी। केवल सांसद ही इसके सदस्य होंगे। इसके अलावा चुनाव आयोग समेत तीन स्वतंत्र आयोग भंग कर दिए जाएंगे। आयोग में अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे। 19ए में इन सभी नियुक्तियों का जिम्मा संवैधानिक परिषद पर था।