अब सियासी अखाड़े में दिखाई देंगे चौंकाने वाले दांव-पेंच
Updated on
03-09-2023 07:08 AM
नये बने गठबंधन आईएनडीआईए यानी इंडिया ने एक साथ मिलकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के खिलाफ देश की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली मुम्बई से हुंकार भरते हुए ऐलान कर दिया है कि अधिकांश लोकसभा सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों के विरुद्ध इंडिया का एक ही उम्मीदवार होगा और इसके साथ ही इस बार देश में इस गठबंधन की सरकार बनेगी। गठबंधन ने साथ ही विभिन्न समितियों का गठन कर दिया है। वहीं दूसरी ओर जी-20 की बैठक से निपटते ही नरेंद्र मोदी अपनी चिरपरिचित स्टाइल में लोगों को चौंकाते हुए लोकसभा के विशेष सत्र में कोई बड़ा धमाका कर सकते हैं। एक देश एक चुनाव, से नरेंद्र मोदी के नाम एक बड़ी उपलब्धि जोड़ने की कवायद भी प्रारंभ हो गई है।चन्द्रयान की सफल लैंडिंग के बाद वैश्विक परिवेश में प्रधानमंत्री मोदी का जो कद बढ़ा है उसे और व्यापक करने की हरसंभव कोशिश की जायेगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां सभी दल अभी से अपनी-अपनी तैयारियों में लग गये हैं वही देश में एक राष्ट्र एक चुनाव की जो कवायद आरंभ हुई उसने इन संभावनाओं को भी राजनीतिक फलक पर उभार दिया है कि लोकसभा के चुनाव इन विधानसभा चुनाव के साथ ही होंगे या इन विधानसभा का कुछ कार्यकाल बढ़ाकर अधिक से अधिक राज्यों के चुनाव एक साथ कराने के प्रयास होंगे। इस प्रकार से आगामी कुछ माह राजनीति में पक्ष-विपक्ष के टकराव को सघन करने वाले हो सकते हैं।
सबसे बड़े दल कांग्रेस ने यह कहते हुए इंडिया की बैठक में भाग लेने वाले सभी दलों के बीच एकजुटता को और मजबूत दिखाने की कोशिश की है कि हम इसके लिए कुछ भी त्याग कर सकते हैं, इसके बाद अधिकांश नेताओं के स्वर भी वैसे ही थे। यहां तक कि रायपुर में सबसे अलग बात करने वाले अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि हम सब साथ लड़ेंगे और इसके लिए जो बन सकेगा वह करेंगे। पांच समितियों का गठन भी किया गया और जो तीन प्रस्ताव पास किए गए उनमें एक साथ चुनाव लड़ने का संकल्प, वातानुकूलित कमरों से बाहर निकल कर जनता के बीच जाने और उनके बीच समस्याओं और महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद करना शामिल हैं। इसी माह से जनता के बीच एक साथ जाने का अभियान चालू किया जायेगा तथा अब हर प्रदेश की राजधानी में सभी नेता एक साथ पहुंच कर अपनी बात जनता के सामने रखेंगे और रणनीति को आकार देते जायेंगे। विभिन्न नेताओं के विरोधाभासी बयान न हों और उनमें एकरुपता आये इसलिए अलग से मीडिया विभाग भी तैयार कर लिया गया है और इसे ही अधिकृत माना जायेगा। विभिन्न समितियों में सभी दलों को समान प्रतिनिधित्व दिया गया है ताकि ऐसा आभास न हो कि बड़ा दल होने के नाते कांग्रेस गठबंधन में हावी है, कांग्रेस ने कहा है कि हम अपना नुकसान उठाकर भी ‘इंडिया‘ को जीत दिलायेंगे। इस गठबंधन का प्रयास है कि 30. सितम्बर तक सीट बंटवारे पर सहमति बनाकर यह स्पष्ट किया जाये कि कौन दल कहां से लड़ेगा। राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविन्द केजरीवाल सहित अन्य नेताओं ने भी सीट बंटवारे को जल्द से जल्द पूरा करने पर जोर दिया ताकि उसके बाद एक समन्वित प्रचार अभियान चलाया जा सके।
एक देश एक चुनाव की दिशा में बढ़ते कदम
एक तरफ जहां एनडीए और इंडिया के बीच तकरार बढ़ रही है तो वहीं दूसरी ओर एक देश एक चुनाव की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कदम बढ़ाकर एक नई बहस की शुरुआत कर दी है और चुनावी मुद्दे तथा बहस अब साथ-साथ चलने का रास्ता खुल गया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जा रही है जो इस दिशा में देश कैसे आगे बढ़े इस पर अपने सुझाव देगी। एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर सुझाव देने के लिए गठित होने वाली समिति के सदस्यों की अधिसूचना जल्द जारी की जायेगी। 18 से 22 सितम्बर तक संसद का विशेष सत्र आहूत करने के एक दिन बाद ही एक देश एक चुनाव के अपने एजेंडे पर आगे बढ़ने का संकेत सरकार ने दे दिया है। इसके साथ ही एक नई बहस की शुरुआत हो गई है कि संसद के विशेष सत्र के दौरान एक विधेयक लाया जा सकता है। लेकिन इतनी जल्दी यह सब हो पायेगा यह आसान नहीं है क्योंकि इस प्रक्रिया में अधिक समय लगने की संभावना है। इस पर पक्ष और विपक्ष के बीच चर्चा सरगर्म हो गई है। संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी का कहना है कि अभी तो कमेटी बनाई गई है उसके गठन के बाद जब रिपोर्ट आयेगी उस रिपोर्ट पर सार्वजनिक रुप से चर्चा कराई जायेगी। उस पर संसद में भी चर्चा कराई जायेगी। ऐसे में इसको लेकर घबराने की क्या बात है, लोकतंत्र के विकास में जो मुद्दे सामने आते हैं उन पर चर्चा होनी चाहिये। अभी तो समिति बनाई गई है इसका अर्थ यह नहीं है कि लोकसभा व विधानसभा के चुनाव कल से ही एक साथ हो जायेंगे। उल्लेखनीय है कि देश में 1967 तक ये चुनाव एक साथ होते थे लेकिन उसके बाद दलबदल के चलते अलग-अलग राज्यों में विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने लगे। इसके साथ ही कानून में संशोधन करना जरुरी होगा और बिना इसके किए सब चुनाव एक साथ कराना संभव नहीं होगा, इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा जिसकी प्रक्रिया कुछ अधिक जटिल है। संविधान के अनुच्छेद 83 में संसद के दोनों सदनों की अवधि का उल्लेख है, अनुच्छेद 85 में राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा के विघटन का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 172 में राज्य विधानसभाओं की अवधि और अनुच्छेद 174 में राज्य विधानसभाओं के विघटन का उल्लेख है, लेकिन एक अनुच्छेद 356 है जिसके तहत राज्यों में राष्ट्रपति लागू करने का प्रावधान है। इस प्रावधान का कई बार उपयोग भी हो चुका है जिसके चलते ही देश में विधानसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
और यह भी
विषेषज्ञों के अनुसार एक देश एक चुनाव से जुड़े विधेयक को संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत के साथ ही आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदन प्रस्ताव पास कराना होगा, इसके बाद ही राज्यों की सहमति के आधार पर इसे लागू किया जा सकेगा। इसके लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहमति भी जरुरी होगी। फिलहाल 10 राज्यों की विधानसभायें ऐसी हैं जिनका कार्यकाल 2024 में आमचुनाव के साथ कराने के लिए निर्धारित समय से पहले या उसके आसपास समाप्त हो जायेगा। इनमें से पांच राज्यों का कार्यकाल इस साल के अन्त में समाप्त हो रहा है। पूर्व निर्वाचन आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति का कहना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना वांछनीय है क्योंकि इससे खर्च में कमी के साथ ही अनेक फायदे हैं। लेकिन इसे लागू करने में कई व्यावहारिक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत का कहना है कि इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा। देखने वाली बात यही होगी कि मोदी सरकार ने इस दिशा में जो कदम बढ़ाये हैं वह धरातल पर कब उतरते हैं।
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