नॉर्वे की संसद (स्टॉर्टिंग) ने बुधवार को डीप सी माइनिंग को मंजूरी दे दी है। इसके तहत मोबाइल-लैपटॉप जैसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने के लिए अब समुद्र तल से कोबाल्ट, कॉपर और जिंक जैसी धातुएं और खनिज निकाले जाएंगे।
संसद के इस फैसले के बाद एनवायरनमेंट रिसर्चर्स और साइंटिस्ट्स की परेशानियां बढ़ गई हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक डीप सी कमर्शियल माइनिंग से मरीन लाइफ, बायोडायवर्सिटी (जैव विविधता) और इकोसिस्टम (पारिस्थितिक तंत्र) को गंभीर खतरा है।
डीप सी माइनिंग को मंजूरी देने वाला पहला देश होगा नॉर्वे
द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक माइनिंग शुरू होते ही नॉर्वे दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा जिसने समुद्र से महंगी धातुएं निकालने की इजाजत दी। इस मंजूरी के बाद अब कंपनियां डीप सी माइनिंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकती हैं। लाइसेंस मिलने के बाद माइनिंग शुरू की जा सकेगी।
UN से जुड़ी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) ने अब तक सिर्फ रिसर्च के लिए 14 देशों को डीप सी को एक्सप्लोर करने की मंजूरी दी है।
इन देशों में भारत, चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फ्रांस, पोलैंड, ब्राजील, जापान, जमैका, नाउरू, टोंगा, किरिबाती और बेल्जियम शामिल हैं। भारत सरकार ने 2021 में 'डीप ओशन मिशन' को मंजूरी दी। इसका उद्देश्य समुद्री संसाधनों का पता लगाना और गहरे समंदर में काम करने की तकनीक विकसित करना है।
संसद की मंजूरी 2023 की रिपोर्ट पर आधारित
नॉर्वे संसद की यह मंजूरी 2023 की एक रिपोर्ट के आधार पर दी गई है। नॉर्वे ऑफशोर डायरेक्टोरेट की रिपोर्ट में कहा गया कि नॉर्वे की समुद्री सीमा में धातुओं और खनिजों का भंडार है। इन्हें निकालने की मंजूरी दी जाए तो नॉर्वे वेस्टर्न यूरोप में ऑयल-गैस प्रोड्यूसर होने के साथ बड़ा मिनरल्स प्रोड्यूसर भी बन सकता है।
आर्किट ओशिन में होगी माइनिंग
द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक माइनिंग सिर्फ नॉर्वे की समुद्री सीमा में ही होगी। नॉर्व इंटरनेशनल वॉटर में माइनिंग नहीं कर सकता। नॉर्वे की माइनिंग कंपनी आने वाले समय में आर्कटिक ओशन में नॉर्वे की समुद्री सीमा में आने वाले 2 लाख 80 हजार स्क्वायर किलोमीटर के इलाके में ही माइनिंग कर सकता है।
डीप सी माइनिंग के समर्थक बोले- ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में मदद मिलेगी
डीप सी कमर्शियल माइनिंग को लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है, लेकिन इसका समर्थन करने वाले कहते हैं कि इससे ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में मदद मिलेगी। दुनियाभर की कई कंपनियों और लोगों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए ई-वाहनों और उनके लिए बैटरियों की मांग में तेजी हो रही है। वहीं, इनको बनाने में इस्तेमाल होने वाले संसाधन दुनियाभर में कम होते जा रहे हैं।
समुद्र की गहराई में पाया जाने वाला लिथियम, तांबा और निकल बैटरी में इस्तेमाल होते हैं। वहीं, इलेक्ट्रिक कारों के लिए जरूरी कोबाल्ट और स्टील इंडस्ट्री के लिए जरूरी मैगनीज भी समुद्र की गहराई में उपलब्ध है।