विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि चीन को लेकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की नीति हकीकत से अलग थी। जयशंकर के मुताबिक- नरेंद्र मोदी की सरकार चीन के मामले में सरदार पटेल के रास्ते पर चल रही है।
न्यूज एजेंसी ‘एएनआई’ को दिए इंटरव्यू में फॉरेन मिनिस्टर ने कहा- चीन को लेकर सरदार पटेल की पॉलिसी बहुत सोच विचार के बाद तैयार हुई थी और यह भारत के हित के अलावा दुनिया के हालात को देखकर तय की गई थी।
पटेल और नेहरू की नीतियों में फर्क
जयशंकर ने कहा- नेहरू के दौर में चीन को लेकर जो नीति थी, वो हकीकत से दूर थी। वो चीन के साथ आईडियल फ्रेंडशिप चाहते थे। वहीं, सरदार पटेल इस मामले में सच्चाई पसंद थे और ऐसी पॉलिसी पर चलते थे, जो न सिर्फ भारत के हित में हो बल्कि दुनिया के हालात के हिसाब से भी सही हो। दोनों नेताओं की बुनियादी सोच में यही फर्क था।
विदेश मंत्री के मुताबिक- मोदी सरकार नेहरू के बजाए पटेल की सोच के हिसाब से चल रही है, क्योंकि हमें हकीकत का सामना करना है और यही अप्रोच हमें आगे ले जाती है। पटेल और नेहरू की सोच में बुनियादी फर्क भी यही था।
जयशंकर ने आगे कहा- ताली दोनों हाथ से बजती है। अगर आप 75 साल या इससे ज्यादा वक्त की हमारी फॉरेन पॉलिसी पर नजर दौड़ाएं तो हकीकत और रूमानियत में फर्क साफ दिखता है। आदर्शवाद और हकीकत का अंतर दिखता है। और ये पहले दिन से शुरू हो गया था। चीन को लेकर नेहरू और पटेल के विचारों में फर्क था।
UN सिक्योरिटी काउंसिल का मामला
एक सवाल के जवाब में फॉरेन मिनिस्टर ने कहा- हमको UN सिक्योरिटी काउंसिल की सीट का मामला मिसाल के तौर पर देखना चाहिए। मैं ये नहीं कहता कि हमें ये सीट मिलनी ही चाहिए, क्योंकि ये अलग मुद्दा है। लेकिन, क्या ये सच नहीं है कि हमने अपने हाथों से चीन को पहला मौका दिया? उसे वहां सीट दिलाई। हालांकि, आज इस पर टिप्पणी करना अजीब लगता है।
नेहरू की लीडरशिप के शुरुआती दिनों में भारत-चीन के रिश्तों में गर्मजोशी और सहयोग रहा। लेकिन, 1962 की जंग ने हमें नींद से जगा दिया। यही वो वक्त था जब भारत ने चीन नीति पर नए सिरे से विचार शुरू किया। अब देखिए चीन ने हमारी वजह से UN सिक्योरिटी काउंसिल में सीट हासिल कर ली और अब हम इसके लिए कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा- भारत और चीन के रिश्ते तभी बेहतर हो सकते हैं जब हम तीन बुनियादी चीजों पर काम करें। ये हैं- आपसी सम्मान, संवेदनशीलता और दोनों देशों के हित।
क्या हुआ था गलवान घाटी में
अप्रैल-मई 2020 में चीन ने ईस्टर्न लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में एक्सरसाइज के बहाने सैनिकों को जमा किया था। इसके बाद कई जगह पर घुसपैठ की घटनाएं हुई थीं। भारत सरकार ने भी इस इलाके में चीन के बराबर संख्या में सैनिक तैनात कर दिए थे। हालात इतने खराब हो गए कि 4 दशक से ज्यादा वक्त बाद LAC पर गोलियां चलीं। इसी दौरान गलवान घाटी में 15 जून की रात भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। चीन के सैनिकों ने रात के समय कांटेदार तारों से लिपटे रॉड और डंडों से भारतीय सैनिकों पर हमला किया था।
गलवान घाटी संघर्ष में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे। भारत सरकार ने इसकी औपचारिक जानकारी साझा की थी। दूसरी तरफ, चीन ने कभी नहीं बताया कि उसके कितने सैनिक मारे गए थे।
पिछले साल, ऑस्ट्रेलिया की न्यूज वेबसाइट 'द क्लैक्सन' ने अपनी एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में में कहा था- पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष में चीन के 38 सैनिक मारे गए थे।
इस खुलासे के कुछ दिन बाद ही अमेरिकी मैगजीन ‘द न्यूज वीक’ ने भी इस घटना पर रिपोर्ट पब्लिश की थी। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि गलवान घाटी की उस हिंसक झड़प में चीन के 60 सैनिक मारे गए थे।