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नलखेड़ा : माँ बगलामुखी विशेष

Updated on 16-03-2021 03:22 PM
भोपाल/नलखेड़ा I  माँ बगलामुखी जो कि माँ पीताम्बरा नाम से विश्व विख्यात है भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं, जो कि दतिया (मप्र), कांगड़ा (हिमाचल) एवं नलखेड़ा जिला आगर (मप्र) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। मप्र में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का एकमात्र यह मंदिर आगर जिले की तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है।
आइए जानते है नलखेड़ा स्थित  माँ बगलामुखी के इस मंदिर के बारे में 
मध्यप्रदेश के आगर-मालवा जिले की नलखेड़ा तहसील में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है, एक ऐसा मंदिर जहां शक्ति के जागृत दर्शन होते हैं। यह पहले शाजपुर जिले में आता था। अब आगर-मालवा जिला बन गया है। माता बगलामुखी के मंदिर में आकर भक्त के केवल कष्ट ही दूर नहीं होते बल्कि उसके शत्रुओं का नाश हो जाता है। माता के दरबार में बड़ी संख्या में  श्रद्धालु पहुंचते हैं। जहां आम दर्शनार्थी अपनी मनोकामना लेकर आते हैं वहीं नेता-अभिनेता और अन्य हस्तियां मुकदमों, महत्वपूर्ण मसलों और चुनावों में जीत की कामना लेकर यहां आते है I 
कैसे पहुंचे माता बगलामुखी (नलखेड़ा)-
वायु मार्ग - नलखेड़ा के माँ बगलामुखी मंदिर स्थल के सबसे निकटतम इंदौर का एयरपोर्ट है। यहां से सड़क मार्ग से जाना होगा जिसकी दूरी करीब 165 किलोमीटर है वहीँ आप उज्जैन होते हुए भी जा सकते है लेकिन उज्जैन होते हुए ये दुरी बढ़ कर लगभग 200 किलोमीटर हो जाएगी I वहीँ भोपाल एयरपोर्ट से भी लगभग 190 किलोमीटर की दुरी सड़क मार्ग से तय  करना होगी I
रेल मार्ग - भोपाल, इंदौर एवं उज्जैन से ट्रेन द्वारा देवास या मक्सी रेलवे स्टेशन पहुँचकर सड़क मार्ग द्वारा शाजापुर जिले के गाँव नलखेड़ा पहुँच सकते हैं। 
सड़क मार्ग द्वारा: भोपाल, इंदौर से उज्जैन, देवास या मक्सी पहुँच कर वहां से सीधे नलखेड़ा मार्ग मिलेगा। 
माता बगलामुखी की मूर्ति स्वयंभू है -  मंदिर के पुजारी हरी ॐ गुरु 
ऐसा कहा जाता है कि माता का ये मंदिर द्वापर युग के पहले से है, महाभारतकाल में भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों के खिलाफ युद्ध में जीत के लिए पांडवों को पूजा करने का आदेश दिया था। जिसके बाद पांडवों ने यहां तपस्या की, फलस्वरूप यहां देवी शक्ति का प्राकट्य हुआ। माता ने पांडवों को कौरवों पर जीत का आशीर्वाद दिया था। पांडवों में बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने माता का आशीर्वाद पाने के बाद यहां मंदिर का निर्माण किया। मंदिर के पुजारी हरी ॐ गुरु ने बताया कि माता बगलामुखी माता कि यह मूर्ति स्वयं भू /स्वयं प्रकट हुई है दस महाविद्याएं होती है I इन  दस महाविद्याओं  में काली,तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला आदि शामिल है।  माता बगलामुखी आठवे नंबर पर आती है इन्हे तंत्र कि देवी माना जाता है I मंदिर के पीछे लक्ष्मना नदी बहती है जो कि प्राचीन नाम था , अब इसे लखुंदर नदी कहा जाता है  I मंदिर का  सभागार लगभग 1815 में दक्षिणी कारीगरों द्वारा बनाया गया था लगभग ईस्वी सन् 1816 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
माता बगलामुखी की पूजा विधि  
माता बगलामुखी का पूजन यूं तो सभी करते हैं, लेकिन माता की विशेष साधना तांत्रिक विधि से होती है। जिसके लिए नियमों में रहकर पूजन किया जाना जरूरी है। माता को पीले रंग से प्रसन्न किया जाता है। बगलामुखी के साधक विशेषकर पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। माता का पूजन करने के लिए पीले फूल, पीली मिठाई और पीले रंग की खाद्य सामग्री का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा चुनरी, मिठाई आदि पीले रंग की पूजन सामग्री भी भक्त चढ़ाते हैं। मां बगलामुखी शत्रु स्तंभन और शत्रु नाश की देवी मानी गई हैं। माता का पूजन हल्दी की गांठ की माला के माध्यम से भी किया जाता है। माता पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं, इस कारण उन्हें  माँ पीतांबरा भी कहा जाता है।
क्यों पड़ा माँ का नाम बगुलामुखी 
बताया जाता है कि माता का यह नाम उनके मुख के कारण पड़ा है। माता का मुख तेजस्वी है। माता बगलमुखी बीच में है दाएं माता  महालक्ष्मी और बाए माता सरस्वती है  I माता बगुले के समान मुखवाली और भक्तों को अभय देने वाली हैं। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत, तांत्रिक सहित देश-विदेश के कई श्रद्धालु पूजन अनुष्ठान करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, सरस्वती, देवी चामुंडा, भगवान श्रीकृष्ण, श्री हनुमान, श्रीकाल भैरव एवं शिव परिवार भी विराजमान हैं। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक हैं बगलामुखी।


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