कभी सिर्फ खेत-खलिहानों और परंपराओं के लिए पहचाने जाने वाले गांव, अब पर्यटकों की पसंद बनते जा रहे हैं। मध्यप्रदेश पर्यटन स्थापना दिवस पर आज हम बात करेंगे रूलर टूरिज्म की। जहां अब पर्यटन सिर्फ पहाड़ों, मंदिरों और जंगलों तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों की गलियां, कच्चे घर, लोकनृत्य और भुट्टे की कीस भी अब पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं।
प्रदेश के 63 पर्यटन गांवों यानी टूरिज्म विलेज में संचालित 227 होम स्टे में बीते दो साल में 24 हजार से अधिक सैलानी स्थानीय रहन-सहन और खानपान का अनुभव ले चुके हैं। अब सरकार की योजना दो वर्षों में 230 और होम स्टे खोलने की है। जिसके बाद मध्यप्रदेश में होम स्टे की संख्या 450 को पार कर जाएगी। यह पहल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दे रही है, बल्कि महिलाओं, युवाओं और आदिवासी समुदायों को रोज़गार और पहचान भी दे रही है।
सबसे ज्यादा होम स्टे वाले जिले
महिलाएं बनीं होम स्टे की होस्ट
रूरल टूरिज्म ने महिलाओं को रोजगार का नया माध्यम दिया है। अब कई महिलाएं खुद के होम स्टे चला रही हैं, जहां वे खुद खाना बनाती हैं, मेहमानों को गाइड करती हैं और सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल कराती हैं। उदाहरण के लिए बालाघाट जिले के गोंड आदिवासी बहुल गांवों में, महिला समूहों ने मिलकर होम स्टे चलाना शुरू किया, जिससे उन्हें महीने में 15,000 रुपये तक की आय हो रही है। यह प्रोजेक्ट उन जिलों में खास फोकस कर रहा है जहां अभी कम गतिविधियां हैं।
इनका कहना है
ग्रामीण पर्यटन ने जहां विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया है, वहीं जनजातीय समुदायों को भी इस पहल से लाभ मिला है। उनकी कला, संस्कृति, रीति रिवाज पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। मध्य प्रदेश आज पूरे देश में इस सफल प्रयोग का अग्रदूत बन गया है और पर्यटन को नई राह दिखा रहा है। -शिवशेखर शुक्ला, प्रमुख सचिव पर्यटन एवं प्रबंधक संचालक म.प्र. टूरिज्म बोर्ड