शुक्र के शुभ प्रभाव से वैवाहिक जीवन होता है मधुर आर्थिक,भौतिक सुख सुविधाओंकी होती है प्राप्ति
Updated on
09-11-2021 04:47 PM
कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित (अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक अभावों का सामना करना पड़ता है। इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी माना गया है इसलिए दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्र की महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन करते हैं। अगर शक्तिशाली शुक्र (स्वराशि, उच्च राशि का मूल त्रिकोण) केंद्र में स्थित हो और किसी भी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो तो जन्म कुंडली के समस्त दुष्प्रभावों (अनिष्ट) को दूर करने की सामर्थ्य रखता है। शुक्र लग्र द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव में स्थित हो तो धन, सम्पत्ति और सुखों के लिए अत्यंत शुभ फलदायक है। शुक्र और चंद्र सशक्त होकर केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हों तो सम्मान या राजकीय सुख प्राप्त करते हैं। शुक्र और बुध पंचम या नवम भाव में स्थित हो तो जातक को धन, सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। शुक्र की केंद्र में स्वराशि अथवा उच्चराशि में स्थिति हो तो मालव्य योग होता है। यह योग जातक को सुंदरता, स्वास्थ्य, विद्वता, धन-दाम्पत्य सुख, सौभाग्य और सम्मानदायक है। अशुभ ग्रह के योग से यह योग भंग हो जाता है। अगर यह ग्रह जन्म कुंडली में शुभ एवं सशक्त प्रधान है तो जातक का जीवन सफल एवं सुखमय माना जाता है किंतु शुक्र के निर्बल या अशुभ होने पर जातक की अनैतिक कार्यों में प्रवृत्ति होती है, समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता तथा अनेक सुखों का अभाव रहता है।