कुंडली में स्थित ग्रह दाम्पत्य जीवन को सुखद और कलहपूर्ण बनाते हैं।लेकिन वैवाहिक लग्न का विचार सही से किया जाए तो विवाह के बाद दांपत्य जीवन में आने वाली परेशानियां काफी हद तक कम हो सकती है और जीवन मधुर हो जाता है। जाकत की कुंडली में सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दांपत्य जीवन बहुत ही मधुर होता है। यदि आपकी कुंडली में आगे पीछे ग्रहों से घिरे केंद्र में गज केसरी योग हो तथा आठवें कोई भी ग्रह नहीं हो तो जातक का वैवाहिक जीवन बहुत ही मधुर होता है।भले ही कुंडली मांगलिक हो, यदि पंच महापुरुष योग बनाते हुए शुक्र अथवा गुरु से किसी कोण में सूर्य हो तो दांपत्य जीवन उच्च स्तरीय होता है।भले ही कुंडली मांगलिक हो, यदि सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करें तो दांपत्य जीवन सुखी होता है। भले गुरु नीच का सातवें भाव में तथा नीच का मंगल लग्न में हो, यदि छठे, आठवें तथा बारहवें कोई ग्रह न हों, तथा किसी भी ग्रह के द्वारा पंच महापुरुष योग बनता हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है। शुक्र और चंद्र, शु्क्र और सूर्य की युति सप्तम स्थान में हो व मंगल, शनि की युति लग्न में हो तो विवाह सुख नहीं होता। अष्टम स्थान में बुध-शनि की युति वाले पुरुष विवाह सुख नहीं पाते या होता भी है तो बहुत कम होता है। पंचम स्थान में मंगल, लाभ स्थान में शनि तथा पापकर्तरी में शुक्र होने से विवाह सुख में अल्पता आती है। लग्नेश, पचमेश, सप्तमेश तथा भाग्येश छठे, आठवें या 12वें स्थान में युति करें और इन ग्रहों पर शनि का प्रभाव हो पति-पत्नि के बीच सामंजस्य कम होता है। पंचमेश अस्त, शत्रु क्षेत्री या नीच का होकर छठे, आठवें या 12वें स्थान में हो वैवाहिक सुख अल्प होता है।
कुंडली में वैवाहिक योग
बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति होना भी विवाह का कारक है। यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुद्ध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।