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छठ महापर्व का महामात्य,व्रत कथा,विधि

Updated on 10-11-2021 05:05 PM
भोपाल I परिषद के संयोजक सतेन्द्र कुमार ने कहा कि परिषद् के सदस्यों द्वारा सरस्वती मंदिर छठ घाट पर स्वच्छ्ता एवं पवित्रता का सबसे बड़ा पर्व छठ पूजा हेतु सूर्य कुंडों एवं प्रांगण की पवित्रता अक्षुण रखते हुए छठव्रती श्रद्धालु एवं भक्तो की सुविधा हेतु परिषद के कार्यकर्ता लगातार स्वच्छता अभियान चलाया गया. परंपरा अनुसार इस महापर्व में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना होता है जिसमे प्लास्टिक का उपयोग प्रतिबंधित रहता है. केवल वनस्पतियों के बने सामग्री ही उपयोग करते है. बांस के बनाये सूपा, डलिया और दौरा का उपयोग किया जाता है एवं प्रसाद के रूप में अनेक प्रकार के फल, गाजर, मूली, गन्ना, अनाज का ही उपयोग किया जाता है I
छठ महापर्व का महामात्य :-
भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. छठ पूजा या सूर्य षष्ठी एक प्राचीन हिंदू पर्व हैं जिसमे पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए सूर्य भगवान को आभार व्यक्त किया जाता है. सूर्य जिसे अनवरत एवं सतत ऊर्जा और जीवन शक्ति के देवता के रूप में माना जाता है उसकी छठ त्योहार के दौरान भलाई समृद्धि और प्रगति को बढ़ावा देने के लिए पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य की पूजा कुष्ठ रोग सहित विभिन्न प्रकार के बीमारियों के निवारण कर सकती है और परिवार के सदस्यों मित्रों और बुजुर्गों की लंबी उम्र और समृद्धि सुनिश्चित कर सकती है। इस दिन जल्दी उठकर अपने घर के पास एक झील, तालाब या नदी में स्नान किया जाता है. स्नान करने के बाद नदी के किनारे खड़े रह कर सूर्यास्त एवं सूर्योदय के दौरान सूर्य को अर्घ्य देते हुए छठ पूजा की जाती है. शुद्ध घी का दीपक जलाकर और सूर्य को धूप और फूल अर्पण किया जाता है. सात प्रकार के फूल, चावल, चंदन, तिल आदि से युक्त जल को सूर्य को अर्पण कर शीश झुका कर प्रार्थना करते हुए “ओम गृहिणी सूर्यया नमः” या “ओम सूर्यया नमः” 108 बार किया जाता है. भक्त इच्छानुसार पूरे दिन भगवान सूर्य के नाम का जप जारी रख सकते हैं.
छठ व्रत कथा
दिवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जानेवाले इस महाव्रत की सबसे कठिन और साधकों हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है, जिस कारण हिन्दुओं के इस परम पवित्र व्रत का नाम छठ पड़ा. चार दिनों तक मनाया जानेवाला सूर्योपासना का यह अनुपम महापर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही धूमधाम और हर्सोल्लासपूर्वक मनाया जाता है. यूं तो सद्भावना और उपासना के इस पर्व के सन्दर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं, किन्तु पौराणिक शास्त्रों के अनुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा, फलस्वरूप पांडवों को अपना राजपाट मिल गया.
छठ व्रत विधि
कथानुसार छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका आभार करते हुए मां गंगा-यमुना, जलाशय, नदी अथवा जल स्रोत के किनारे इस पूजा को मनाते हैं. इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है, दूसरे दिन खरना का कार्यक्रम होता है, तीसरे दिन भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य (प्रथम अर्घ्य) दिया जाता है और चौथे दिन भक्त उदियमान सूर्य को उषा अर्घ्य (पारण अर्घ्य) देते हैं. मान्यता है कि यदि कोई इस महाव्रत को निष्ठा और विधिपूर्वक संपन्न करता है तो निःसंतानों को संतान की प्राप्ति और प्राणी को सभी प्रकार के दुखों और पापों से मुक्ति मिलती है.

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