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देवता और असुरों के भाई-बंधुओं की जानकारी - 1

Updated on 29-04-2021 03:09 PM
किस देवता के है कितने और कौन-से पुत्र  - हिन्दू धर्म में प्राचीनकाल के मानवों में देव (सुर) और दैत्य (असुर) दो तरह के भेद के अलावा  और भी कई तरह के भेद थे। जैसे दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर, वानर, नाग, किरात, विद्याधर, चारण, ऋक्ष, भल्ल, वसु, सिद्ध, पिशाच, मरुद्गण, भाट आदि। हिन्दुओं के प्रारंभिक इतिहास में उपरोक्त सभी जातियों के लोगों ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ज्ञान, विज्ञान, ज्योतिष आदि की स्थापना की और जिनके कारण कई तरह की घटनाओं का जन्म हुआ।  हिन्दुओं के प्रमुख वंश, अपने पूर्वजों के हजारों वर्षों के इतिहास कालक्रम के चलते ये सभी लोग अब मिथकीय माने जाते हैं, लेकिन इस पर अच्छे से शोध करेंगे तो पता चलेगा कि अपने-अपने वंश को आगे बढ़ाने, भूमि पर साम्राज्य स्थापित करने और अपने रक्त की शुद्धता बनाने रखने की एक जिद थी जिसके चलते संघर्ष का जन्म हुआ I
और इसी संघर्ष से नई-नई जातियों और प्रजातियों का जन्म होता गया। खैर...! अब जानते हैं प्रारंभिक काल के इन देवताओं और लोगों के पुत्रों के बारे में...

ब्रह्मा के पुत्र :ब्रह्मा के पुत्रों की संख्‍या पुराणों में निश्चित नहीं है। ब्रह्मा की तीन पत्नियां के नाम मिलते हैं। सावित्री, गायत्री और सरस्वती। ब्रह्मा के प्रमुख रूप से मानस पुत्रों की चर्चा ही अधिक होती है।  
ये पुत्र हैं👉  1.मारिचि, 2.अत्रि, 3.अंगिरस, 4.पुलस्त्य, 5.पुलह, 6.कृतु, 7.भृगु, 8.वशिष्ठ, 9.दक्ष, 10.कंदर्भ, 11.नारद, 12.इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार, 13.स्वायंभुव मनु और शतरुपा, 14.चित्रगुप्त।

इस तरह विष्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, 14 मनु, 11 रुद्र, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, अंगिरा, रुचि, भृगु, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, नारद, मरिचि, अपान्तरतमा, वशिष्‍ट, प्रचेता, हंस, यति आदि। 
उपरोक्त सभी पुत्रों के ही वंशज आज भारत में निवास करते हैं।...मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ-ये सात ब्रह्माजी के पुत्र उत्तर दिशा में स्थित है, जो स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं।

विष्णु के पुत्र: 👉  कहते हैं कि विष्णु के अप्सराओं से जन्में 100 पुत्र थे। कामदेव को भी भगवान विष्णु के पुत्र माना जाता है। हालांकि विष्णु की पत्नी लक्ष्मी से प्रमुख रूप से 4 पुत्र  आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत थे। इसके अलावा भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र वर्ग कहे गए हैं- देवसखाय, चिक्लीताय, आनन्दाय, कर्दमाय, श्रीप्रदाय, जातवेदाय, अनुरागाय, सम्वादाय, विजयाय, वल्लभाय, मदाय, हर्षाय, बलाय, तेजसे, दमकाय, सलिलाय, गुग्गुलाय, कुरुण्टकाय। 

 शिव के पुत्र👉  गणेश, कार्तिकेय, हनुमान, जलंधर, सुकेश, अयप्पा स्वामी आदि के अलावा भी शिव के और भी पुत्र हैं। उक्त सभी के जन्म का वर्णन पढ़ें...हनुमानजी को शंकर सुवन कहा गया है। हनुमानजी के जन्म की कथा सभी जानते हैं। हालांकि हनुमानजी को कुछ विद्वान शिव का अंशावतार कहते हैं। 

दक्षिण भारत में अयप्पा स्वामी को भी भगवना शिव का पुत्र माना जाता है। भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको 'हरिहरपुत्र' भी कहा जाता है।

भूमि पुत्र मंगल भी शिव का पुत्र था जिसे भूमा कहा जाता था। एक समय जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में ध्यान लगाए बैठे थे, उस समय उनके ललाट से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया, जिसके चार भुजाएं थीं और वय रक्त वर्ण का था। इस पुत्र को पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया। 
माना जाता है कि भगवान शिव की पहली पत्नीं सती, दूसरी पार्वती, तीसरी काली और चौथी उमादेवी थी। सती तो यज्ञ में दाह हो गई थी। माता पार्वती से कार्तिकेय का जन्म हुआ।  भगवान गणेश की उत्पत्ति पार्वतीजी ने की थी। सुकेश नाम के एक नवजात को उन्होंने गोद लिया था। सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के 3 पुत्र हुए- 1.माल्यवान, 2.सुमाली और 3.माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई। शिव का चौथा पुत्र जलंधर था। जलंधर भी शिव का अंश ही था।

अन्य देवताओं के पुत्रों का वर्णन
स्वायंभुव मनु👉 14 मन्वन्तर के 14 मनु कहे गए हैं। अब तक 7 मनु हुए हैं और 7 होना बाकी है। प्रथम स्वायम्भुव मनु, दूसरे स्वरोचिष, तीसरे उत्तम, चौथे तामस, पांचवें रैवत, छठे चाक्षुष तथा सातवें वैवस्वत मनु कहलाते हैं। वैवस्वत मनु ही वर्तमान कल्प के मनु है। इसके बाद सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, .रौच्य या देव सावर्णि और भौत या इन्द्र सावर्णि नाम से मनु होंगे।

प्रथम मन्वन्तर के मनु स्वायंभुव मनु को प्रथम मानव कहा गया है। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई है। इनकी पत्नीं का नाम शतरूपा था। स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पांच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएं आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ-ये सात ब्रह्माजी के पुत्र उत्तर दिशा में स्थित है, जो स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं।

आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्प‍न्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। 

हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई। प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी। 

स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि, वसु, ज्योतिष्मान, द्युतिमान, हव्य, सबल और पुत्र आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो अपने नामवाले मनवंतरों के अधिपति हुए। 

महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों मे से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।
 स्वारोचिष मनु👉 द्वितिय स्वारोचिष मन्वन्तर में प्राण, बृहस्पति, दत्तात्रेय, अत्रि, च्यवन, वायुप्रोक्त तथा महाव्रत ये सात सप्तर्षि थे। इसी काल में तुषित नाम वाले देवता थे और हविर्घ्न, सुकृति, ज्योति, आप, मूर्ति, प्रतीत, नभस्य, नभ तथा ऊर्ज-ये महात्मा स्वारोचिष मनु के पुत्र बताए गए हैं, जो महान बलवान और पराकर्मी थे।
 उत्तम या औत्तमी मनु👉  वशिष्ठ के सात पुत्र तथा हिरण्यगर्भ के तेजस्वी पुत्र ऊर्ज, तनूर्ज मधु, माधव, शुचि, शुक्र, सह, नभस्य तथा नभ– ये सभी उत्तम मनु के पराक्रमी पुत्र थे। इस मन्वन्तर में भानु नाम वाले देवता थे। 
 तामस मनु👉 काव्य, पृथु, अग्नि, जह्नु, धाता कप्वां और अकपीवान- ये सात उस काल के सप्तर्षि थे। इस काल में सत्य नाम वाले देवता थे। द्युति, तपस्य, सुतपा, तपोभूत, सनातन, तपोरति, अकल्माष, तन्वी, धन्वी और परंतप- ये दस तामस मनु के पुत्र कहे गए हैं। 
 रैवत मनु👉 उसमें देवबाहु, यदुघ्र, वेदशिरा, हिरण्यरोमा, पर्जन्य, सोमनंदन, ऊघर्वबाहु तथा अत्रिकुमार सत्यनेत्र- ये सप्तर्षि थे। अभूतरजा और प्रकृति नाम वाले देवता थे। धृतिमान, अव्यय, युक्त, तत्त्वदर्शी, निरुत्सुक, आरण्य, प्रकाश, निर्मोह, सत्यवाक्, और कृती- ये रैवत मनु के पुत्र थे।
 चाक्षुक मनु👉 उसमें भृगु, नभ, विवस्वान, सुधामा, विरजा, अतिनामा और सहिष्णु- ये ही सप्तर्षि थे। लेख नाम वाले पांच देवता थे। नाड़्वलेय नाम से प्रसिद्द रुरु आदि चाक्षुष मनु के दस पुत्र बतलाए जाते हैं।
 वैवस्वत मनु👉 अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र तथा जमदग्नि- ये इस वर्तमान मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं जिनके नाम पर वर्तमान में एक सप्तऋषि तारामंडल है। साध्य, रूद्र, विश्वेदेव, वसु, मरुद्गण, आदित्य और अश्वनीकुमार – ये इस मन्वन्तर के देवता माने गए हैं। वैवस्वत मनु के इक्ष्वाकु आदि दस पुत्र हुए।
 

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