ज्योतिषशास्त्र में शुभ योग है तो अशुभ योग भी है.शुभ योग अपने गुण के अनुसार शुभ फल देते हैं तो अशुभ योग अशुभ फल प्रदान करते हैं.अशुभ योगों में एक योग है विषयोग .यह किस प्रकार बनता है एवं इसका क्या प्रभाव होता है, आइये देखते हैं :
विषयोग की स्थिति: —
कुण्डली में विषयोग का निर्माण शनि और चन्द्र की स्थिति के आधार पर बनता है.शनि और चन्द्र की जब युति होती है तब अशुभ विषयोग बनता है. लग्न में चन्द्र पर शनि की तीसरी,सातवीं अथवा दशवी दृष्टि होने पर यह योग बनता है.कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का परिवर्तन योग हो या फिर चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विषयोग की स्थिति बनती है.सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम में और शनि द्वादश में होने पर भी इस योग का विचार किया जाता है. कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु हो और शनि मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक लग्न में हो तो विषयोग भोगना होता है.विषयोग चंद्र-शनि से बनता है। दांपत्य जीवन तब नष्ट होता है जब सप्तम भाव या सप्तमेश से युति दृष्टि संबंध हो। जैसे सप्तम भाव में धनु राशि हो और सप्तम भाव में शनि हो और लग्न में गुरु-चंद्र हो तब यह दोष लगेगा या शनि-चंद्र सप्तम भाव में हो तब दांपत्य जीवन को प्रभावित करेगा। इसी प्रकार विस्फोटक योग शनि-मंगल से बनता है। यदि शनि-मंगल की युति सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो व मंगल की दृष्टि पड़ती हो तो या शनि सप्तम भाव में बैठे मंगल पर दृष्टिपात करता हो या सप्तमेश शनि-मंगल से पीड़ित हो तो दांपत्य जीवन नष्ट होता है अन्यत्र हो तो दांपत्य जीवन नष्ट नहीं होता।
जन्म पत्रिका में कितने भी शुभ ग्रह हों और इन योगों में से कोई एक भी योग बनता है तो सभी शुभ प्रभावों को खत्म कर देता है। यदि उपरोक्त योग जहाँ बन रहे हैं, उन पर यदि शुभ ग्रह जैसे गुरु की दृष्टि हो तो कुछ अशुभ परिणाम कम कर देता है।
एक उदाहरण कुंडली से जानें कि उच्च का चंद्रमा एक युवती के लग्न में है अतः युवती सुंदर तथा गौर वर्ण तो है लेकिन इसका दांपत्य जीवन खराब है। सप्तमेश शुक्र द्वादश भाव में अग्नि तत्व की राशि मेष में बैठा है अतः दांपत्य जीवन खराब है एवं शनि की दसवीं दृष्टि चंद्रमा पर पड़ रही है, जो विष योग बना रही है अतः इसका सारा जीवन दुख व अभावों में बीतेगा, वहीं इसकी पत्रिका में राहू व केतु मध्य सारे ग्रह होने से कालसर्प योग भी बन रहा है, जो कष्टों को और अधिक प्रभावित कर रहा है। लग्न पर शनि के अलावा किसी शुभ ग्रह की दृष्टि भी नहीं है।
उदाहरण कुंडली से पता चलता है कि किस प्रकार विषयोग जीवन पर प्रभाव डालता है। यदि शनि-मंगल या शनि-चंद्र की युति सप्तम भाव में हो या आपसी दृष्टि संबंध बनता हो तो निश्चित ही दांपत्य जीवन नरक बन जाता है। शनि-मंगल की युति यदि चतुर्थ या दशम भाव में बनती हो तो ऐसा जातक माता सुख से, परिवार से, जनता के बीच आदि कार्यों से हानि पाता है, उसी प्रकार दशम भाव में बनने वाला योग पिता से, राज्य से, नौकरी से, व्यापार से, राजनीति से आदि मामलों से हानि पाता हैं।ऐसा जातक नौकरी में भटकता रहता है, स्थानांतरण होते रहते हैं एवं अपने अधिकारियों से नहीं बनती। यदि शनि-मंगल की युति तृतीय भाव में हो तो भाइयों से नहीं बनती व मित्र भी दगा कर जाते हैं। साझेदारी में किए गए कार्यों में घाटा होता हैं। सूर्य-चंद्र की युति सदैव अमावस्या को ही होती है, इसे अमावस्या योग की संज्ञा दी गई है, यह योग भी जिसकी पत्रिका में जिस भाव में बनेगा, उस भाव को कमजोर कर देगा।
- अगर कोई नदी में कचरा या पूजन सामग्री फेंकता है उसे ज्योतिष के अनुसार विषयोग बनाता है और धन का नुकसान उठाना पड़ता है।
विष योग किस प्रकार बनता है !
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विषयोग तब बनता है जब वार और तिथि के मध्य विशेष योग बनता है।
जेसे—
–जब रविवार के दिन चतुर्थी तिथि पड़े तब इस योग का निर्माण होता है।
– सोमवार का दिन हो और षष्टी तिथि पड़े तब यह अशुभ योग बनता है।
—मंगलवार का दिन हो और तिथि हो सप्तमी, इस बार और तिथि के संयोग से भी विष योग बनता है।
—द्वितीया तिथि जब बुधवार के दिन पड़े तब विष योग का निर्माण होता है।
—अष्टमी तिथि हो और दिन हो गुरूवार का तो इस संयोग का फल विष योग होता है।
—शुक्रवार के दिन जब कभी नवमी तिथि पड़ जाती है तब भी विष योग बनाता है।
—शनिवार के दिन जब सप्तमी तिथि हो तब आपको कोई शुभ काम करने की इज़ाजत नहीं दी जाती है क्योंकि यह अशुभ विष योग का निर्माण करती है।
विषयोग में शनि चन्द्र की युति का फल: –
प्रथम स्थान- जिनकी कुण्डली में शनि और चन्द्र की युति प्रथम भाव में होती है वह व्यक्ति विषयोग के प्रभाव से अक्सर बीमार रहता है.व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में भी परेशानी आती रहती है.ये शंकालु और वहमी प्रकृति के होते हैं I
द्वितीय स्थान - जिस व्यक्ति की कुण्डली में द्वितीय भाव में यह योग बनता है पैतृक सम्पत्ति से सुख नहीं मिलता है.कुटुम्बजनों के साथ इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते.गले के ऊपरी भागों में इन्हें परेशानी होती है.नौकरी एवं कारोबार में रूकावट और बाधाओं का सामना करना होता है.
तृतीय स्थान—तृतीय भाव में विषयोग सहोदरो के लिए अशुभ होता है.इन्हें श्वास सम्बन्धी तकलीफ का सामना करना होता है.
चतुर्थ स्थान—चतुर्थभाव का विषयोग माता के लिए कष्टकारी होता है.अगर यह योग किसी स्त्री की कुण्डली में हो तो स्तन सम्बन्धी रोग होने की संभावना रहती है.जहरीले कीड़े मकोड़ों का भय रहता है एवं गृह सुख में कमी आती है.
पंचम स्थान - पंचम भाव में यह संतान के लिए पीड़ादायक होता है.शिक्षा पर भी इस योग का विपरीत असर होता है.
षष्टम स्थान - षष्टम भाव में यह योग मातृ पक्ष से असहयोग का संकेत होता है.चोरी एवं गुप्त शत्रुओं का भय भी इस भाव में रहता है.
सप्तम स्थान —कुण्डली में विवाह एवं दाम्पत्य जीवन का घर होता है . इस भाव मे विषयोग दाम्पत्य जीवन में उलझन और परेशानी खड़ा कर देता है.पति पत्नी में से कोई एक अधिकांशत: बीमार रहता है.ससुराल पक्ष से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते.साझेदारी में व्यवसाय एवं कारोबार नुकसान देता है.
अष्टम स्थान -अष्टम भाव में चन्द्र और शनि की युति मृत्यु के समय कष्ट का सकेत माना जाता है.इस भाव में विषयोग होने पर दुर्घटना की संभावना बनी रहती है.
नवम स्थान - नवम भाव का विषयोग त्वचा सम्बन्धी रोग देता है.यह भाग्य में अवरोधक और कार्यों में असफलता दिलाता है.
दशम स्थान - दशम भाव में यह पिता के पक्ष से अनुकूल नहीं होता.सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद करवाता है.नौकरी में परेशानी और अधिकारियों का भय रहता है I
एकादश स्थान- एकादश भाव में अंतिम समय कष्टमय रहता है और संतान से सुख नहीं मिलता है.कामयाबी और सच्चे दोस्त से व्यक्ति वंचित रहता है I
द्वादशस्थान- द्वादश भाव में यह निराशा, बुरी आदतों का शिकार और विलासी एवं कामी बनाता है.
विषयोग के उपाय :
–भगवान नीलकंठ महादेव की पूजा एवं महामृत्युजय मंत्र जप से विष योग में लाभ मिलता है. शनि देव एवं चन्द्रमा की पूजा भी कल्यणकारी होती है.
—आप अगर किसी नई परियोजना पर कार्य करने की सोच रहे हैं तो विषयोग और हुताशन योग से परहेज रखें। इस योग में अपनी योजना की शुरूआत नहीं करें। इस योग में घर की नींव न डालें, मकान या दुकान न खरीदें। अगर आप किसी शुभ कार्य के सम्बन्ध में यात्रा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं तो इस योग के गुजर जाने के बाद ही यात्रा पर जाएं तो अच्छा रहेगा क्योंकि यह योग यात्रा के संदभ शुभ फलदायी नहीं कहा गया है।