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लोगों की बढ़ती उदासीनता कहीं कृत्रिम बुद्धिमत्ता के पतन का प्रारंभ तो नहीं

Updated on 12-07-2023 10:14 AM
दशकों के अनुभव ने हमें यह सिखाया है कि इंटरनेट का प्रचार प्रसार नित नए बदलाव के साथ तब तक होता रहेगा जब तक हम उससे ऊब नहीं जाते। पहले आए आईआरसी, ब्लॉग, फ़ोरम, फेसबुक, मेटावर्स, क्रिप्टोकरेंसी, एनएफटी... और अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता। तकनीक के हर नए अवतार के साथ, हमें उससे ऊबने में लगने वाला समय कम होता जा रहा है। ऑनलाइन ब्लॉग और चैट कुछ वर्षों तक चले,  लेकिन एआई के प्रति शुरुआती गर्मजोशी कब ठंडेपन में बदलने लगी पता भी नहीं चला। अब तो सवाल पूछा जाने लगा है कि एआई जब तक चला, बड़ा अच्छा था, लेकिन आगे क्या। 

यह विचार कुछ दशक पहले की किसी फिल्म की तरह लगता है जिसमें एक रोबोट को दिखाया जाता है जो इंसानों की तरह सोचने और उनके समान रचनात्मक चीजें करने में सक्षम है। लेकिन एक समय के बाद रोबोट को मनुष्य से बेहतर बनते हुए देखकर उसके रचयिता द्वारा उसे उसे एक खलनायक की तरह प्रस्तुत कर उसका अंत कर दिया जाता है या उसका बलिदान दिखाकर विधिवत अंतिम संस्कार कर श्रद्धांजलि अर्पित कर दी जाती है। यानि रोबोट इंसान के लिए एक खिलौने के समान था जिससे खेलकर मन भर जाने के बाद उसे समाप्त कर दिया जाता है। “एंड देन दे लीव हैप्पीली एवर ऑफटर” की तर्ज पर किसी भी कहानी या फिल्म में भी अब तक ऐसा उदाहरण नहीं है जहा रोबोट और इंसानों का खुशहाल सह अस्तित्व बताया गया हो। 

फिर भी,  इस तकनीक को धरातल पर उतारने के विचार को लेकर 2022 के अंत और 2023 की शुरुआत में कुछ लोगों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता को उच्च स्तर पर ले जाने के प्रयास शुरू किए और लोगों को यह बहुत आकर्षक और दिलचस्प भी लगा। उन दिनों मिडजर्नी, चैटजीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे शब्द सर्च इंजनों में पहली पायदान पर होते थे। लेकिन समय के साथ लोग इससे ऊबने लगे, जनवरी 2023 में “चैटजीपीटी” इंटरनेट पर खोजे जाने वाले शब्दों में पहले स्थान पर था जो महज 6 महीनों में ही खिसकर 28वें  स्थान पर या गया।  

समस्या यह है कि हर चीज़ वैसी नहीं होती जैसी बताई जाती है, और जनता की इसे स्वीकारने की एक सीमा होती है। कागज पर, यह सबकुछ बहुत आधुनिक, बहुत भविष्यवादी और बहुत विचारोत्तेजक लगता है, लेकिन जब वास्तविकता की बात आती है, तो परिणाम बहुत सुखद ना होकर बदसूरत दिखता है। सब कुछ अपेक्षा अनुसार नहीं है, एआई के अभ्युदय के चलते कलाकार नौकरियां खो रहे हैं । एआई के परिणाम भी एकदम सही नहीं हैं। टेक दिग्गजों का कहना है कि "भविष्य में परिणाम सटीक होंगे," लेकिन उनकी सत्यता को जांचा कैसे जाएगा यह भी एक समस्या है। मेटावर्स  कुछ वर्षों में और अधिक परिपूर्ण हो जाएगा, लेकिन अगर यह अभी दिलचस्प नहीं है, तो भविष्य में इसके लिए काम करना बहुत मुश्किल होगा। दुनिया भर में प्रकाशन संस्थानों को मुख पृष्ठ पर एआई को जगह देने लिए ऑनलाइन बहिष्कार भी मिल रहा है। 

इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए इसका हैरतअंगेज उपयोग हो सकता है, लेकिन यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कला की दुनिया में एआई के लिए कोई जगह नहीं है। चलन को समझना आसान है, कंपनियां खराब प्रदर्शन कर रही हैं और इसका परिणाम सभी के लिए नकारात्मक होता है। हमने सोचा था कि एआई हमारे लिए काम करेगा जो कुछ हद तक सही भी है लेकिन धरातल पर हम देख रहे हैं कि इसने हमारा काम और बढ़ा दिया है।

अपना कार्य करने के लिए अपना मोबाईल या कंप्यूटर खोलिए उसका लॉक खोलिए,उस कार्य से संबंधित विशिष्ट वेब साईट पर जाईए, लॉग इन कीजिए, अपना यूजर नेम टाइप कीजिए, यूजर नेम भूल गए हैं तो मालूम करने के लिए एक लंबी और उबाऊ प्रक्रिया है। किसी तरह आपने सही यूजर नेम प्राप्त कर लिया तो अब बारी है पासवर्ड की, उसके अपने नियम कायदे हैं और भूल जाने पर नया पासवर्ड बनाना एक श्रम साध्य कार्य है। फिर मोबाईल पर ओटीपी देखिए और टाईप करिए, फिर चश्मा लगाकर वो कपाचा पढ़कर समझ कर सही भरिए, यह सब कर किसी तरह लॉग इन कर लिया तो अब यह बटन दबाईए, वह बटन दबाईए, इसको पकड़कर नीचे खींचीए, ऊपर जाईए, स्टेप को रिपीट कीजिए। नाना प्रकार के झंझट। 

ऊपर से तुर्रा यह कि हर एप्प या वेब साईट जैसे बैंक, रेलवे रिजर्वेशन, ऑफिस, हवाई यात्रा, मोबाईल बिल भुगतान, बिजली बिल भुगतान, नगरीय निकाय, शेयर बाजार, न्यूज पेपर, मूवी, मनोरंजन, गैस बुकिंग, फास्ट टैग, शापिंग वेबसाईटस, ईमेल, बच्चों के स्कूल, टैक्सी बुकिंग, आदि के एआई के अपने अलग अलग संस्करण हैं जो हर थोड़े अंतराल में एक नवीन प्रक्रिया लेकर आते हैं। इस उबाऊ सिस्टम को फालो करते करते आप थकने लगते हैं, बोर होने लगते हैं और अंतत: आप इन सब झंझटों से मुक्ति का मार्ग तलाशने लगते हैं। 
  
हम महीनों से सुनते आ रहे हैं कि एआई बेरहमी से काम में कटौती करेगा और एक नई दुनिया का निर्माण करेगा, लेकिन शायद अब खुद से एक सरल सवाल पूछने का समय आ गया है: हमने खिलौने के साथ बहुत खेल खेला है, आज हमारे पास बहुत कुछ है। और यदि हम और कुछ नहीं चाहते, तो आगे क्या। 

- *राजकुमार जैन, स्वतंत्र लेखक एवं विचारक*

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