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मध्यप्रदेश में उमंग ने छेड़ा आदिवासी मुख्यमंत्री का राग

Updated on 08-08-2023 08:04 AM
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना राज्यों की राजनीति में चुनावी फिजा साफ-साफ नजर आने लगी है। जहां एक ओर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश में एक बार फिर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का राग पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने छेड़ दिया है। उधर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मध्यप्रदेश के चुनावी सूत्र व व्यूहरचना पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली है और उन्होंने प्रदेश से जुड़े वरिष्ठ भाजपा नेताओं को दिल्ली बुलाकर देर रात तक चुनावी व्यूहरचना पर विस्तार से चर्चा की। भाजपा की रणनीति कांग्रेस के दिग्गज उम्मीदवारों को उनके ही चुनाव क्षेत्रों में घेरने की बन रही है तो वहीं कांग्रेस भले ही यह बताने की कोशिश कर रही हो कि कमलनाथ कांग्रेस के सर्वमान्य नेता हैं और वही सरकार बनने पर मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन कभी-कभार कुछ ऐसे स्वर भी गूंजते हैं जिससे लगता है कि किसी न किसी बहाने असहमति का राग कोई न कोई अपने स्तर पर छेड़ ही देता है।
       हाल ही में धार जिले के कोद में पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं स्वर्गीय जमुना देवी के भतीजे तथा गंधवानी से कांग्रेस विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे उमंग सिंघार ने फिर से एक बार आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का राग छेड़ दिया है। रविवार 6 अगस्त 2023 को टंट्या मामा भील की प्रतिमा के अनावरण से पहले एक बाइक रैली उमंग सिंघार के नेतृत्व में निकाली गई और ग्राम कोद के कोटेश्वर  में टंट्या मामा की प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का राग छेड़ दिया। हालांकि उमंग सिंघार ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि मुझे मुख्यमंत्री नहीं बनना है लेकिन जब तक प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनता है तब तक घर पर नहीं बैठना। मैं आपके अधिकार की बात करता हूं, इस सीट पर आदिवासियों का शोषण हो रहा है। कांग्रेस से भाजपा में जाकर मंत्री बने राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव का नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि उनके लोग आपको लूट रहे हैं। सिंघार का कहना था कि मछलिया घाट से लेकर बदनावर विधानसभा हमारी है और कहानियां राजा-महाराजाओं की लिखी जाती हैं। इतिहास तो आदिवासी का लिखा जाता है, आपकी ताकत से सरकार हिलने लगी है। 
       इन दिनों प्रदेश की राजनीति में आदिवासी वोट बैंक को अपने-अपने पाले में लाने के लिए भाजपा और कांग्रेस एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए है। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का झुकाव कांग्रेस की ओर अपेक्षाकृत कुछ बढ़ गया था इसलिए उसकी सरकार भी बन गयी थी। मुख्यमंत्री बने कमलनाथ, लेकिन यह भी एक संयोग ही रहा कि 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार लगभग इतने ही महीने चल सकी और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने एवं भाजपा में जाने के बाद फिर से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गये। मध्यप्रदेश में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड शिवराज के खाते में दर्ज हो गया है और उन्हें भरोसा है कि एक फिर से भाजपा की सरकार बनेगी। जबकि कांग्रेसियों का जोश-खरोश भी काफी जोर शोर से उछाल मार रहा है उन्हें लग रहा है कि वे सत्ता में आने ही वाले हैं।
        जहां तक आदिवासी मुख्यमंत्री का सवाल है यह मांग काफी पुरानी है लेकिन अभी तक प्रदेश में पूरी नहीं हुई है। उमंग सिंघार की मांग का समर्थन करते हुए प्रदेश के गृहमंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि अपन तो उमंग सिंघार के कायल हैं वह जिस तरह से ताल ठोक कर अपनी बात करता है वह गजब है। उन्होंने कांग्रेस पर सदैव जनजाति वर्गों की उपेक्षा का आरोप भी लगाया। इतना अवश्य हुआ है कि भाजपा ने 2003 के बाद से अपने तीन मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से ही दिये हैं। उमा भारती लोधी समाज से, बाबूलाल गौर यादव समाज से और शिवराज सिंह चौहान किरार समाज से आते हैं। इस प्रकार पिछड़े वर्ग की तीन बड़ी जातियों के नेताओं को भाजपा ने ही सत्ता शीर्ष पर पहुंचाने का काम किया है। वैसे आदिवासी वर्ग से आने वाले दिग्गज राजनेताओं की कांग्रेस में लम्बी फेहरिस्त रही है लेकिन उनमें से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तथा उपमुख्यमंत्री बनने का मौका तो आदिवासियों व पिछड़े वर्ग के नेताओं को मिल चुका है लेकिन फिलहाल इन वर्गों का कोई नेता मध्यप्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। जहां तक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने का सवाल है अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला ऐसे किसी प्रश्न के उत्तर में यह कहते रहे  हैं कि यह जरुरी नहीं है कि नेता आदिवासी वर्ग का हो बल्कि जरुरी यह है कि नेता ऐसा हो जो आदिवासी वर्ग के समग्र विकास के लिए चिंतित हो व उनका विकास करने के लिए प्रतिबद्ध हो। देखने वाली बात यही होगी कि आदिवासियों को तो दोनों ही दल रिझाने की बात कर रहे हैं लेकिन शायद ही कोई आदिवासी को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन कर पाये। भाजपा ने इतना जरुर किया कि पिछड़े वर्ग के लोगों को मुख्यमंत्री बनने का भरपूर अवसर वह दे रही है।

अरुण पटेल
-लेखक,संपादक
             

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