इसके लिए उन्हें परंपरागत कृषि के साथ उद्यानिकी और पशुपालन से जोड़ना होगा। केंद्र और राज्य की सरकार भी इस दिशा में प्रयास कर रही हैं पर इसकी गति धीमी है। न तो खाद्य प्रसंस्करण की सुविधा का विस्तार हो पाया है और न ही पशुपालन की ओर किसान आकर्षित हुए हैं।
मध्य प्रदेश में तेजी से कृषि क्षेत्र का विकास हुआ है, इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता है। लगातार सात बार कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदेश को मिल चुके हैं। अलग कृषि बजट बनाने के साथ जैविक व प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। लगातार खेती का क्षेत्र भी बढ़ रहा है। 150 लाख हेक्टेयर में खरीफ और रबी की फसलें ली जा रही हैं।
सिंचाई क्षमता में 45 लाख हेक्टेयर से अधिक पहुंच गई है। इससे 2013-14 की तुलना में अकेले गेहूं का उत्पादन 2022-23 में 353 लाख टन पहुंच गया। इसी अवधि में धान का उत्पादन 53 लाख टन से बढ़कर 131 लाख टन हो गया। उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ खेती की लागत में भी वृद्धि हुई है। खाद, बीज, खेत तैयार करने के साथ मजदूरी की लागत बढ़ी है, जिसके कारण लाभकारी मूल्य किसानों को नहीं मिल पा रहा है।
यही कारण है कि किसान समर्थन मूल्य बढ़ाने की बात करते हैं और आंदोलन भी होते हैं। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने समर्थन मूल्य समेत धान के प्रति क्विंटल 3,100 और गेहूं के 2,700 रुपये देने का वादा किया। कांग्रेस ने भी दोनों उपजों की कीमत बढ़ाकर देने की घोषणा की थी। मोहन सरकार 125 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं उपार्जन पर बोनस देने का निर्णय लिया है। हालांकि, किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उन्हें अभी भी लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है।
यह तब तक संभव नहीं होगा, जब तक किसान परंपरागत कृषि के साथ-साथ उद्यानिकी से नहीं जुड़ेंगे। इसके लिए सरकार के स्तर पर प्रयास भी हो रहे हैं पर ये नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। न तो किसानों को समुचित प्रशिक्षण मिल पा रहा है और न ही बाजार। रतलाम, मंदसौर, पांढुर्णा, सौंसर, बुरहानपुर, खंडवा समेत अन्य जिलों के किसानों ने अमरूद, संतरा, केला, अंगूर, लहसुन, प्याज, आलू, टमाटर, मिर्च सहित अन्य फसलों की खेती प्रारंभ की तो उन्हें लाभ भी हुआ। हालांकि, बाजार की अनुपलब्धता और प्रसंस्करण की सुविधा का अभाव बड़ी समस्या है।
कस्टम प्रोसेसिंग सेंटर खोलने की योजना सरकार ने बनाई थी पर यह फलीभूत नहीं हुई। कृषि अधोसंरचना निधि के माध्यम से केंद्र सरकार ने राज्यों को विकल्प उपलब्ध कराया है पर इसका भी सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। सहकारी समितियों के माध्यम से कुछ काम प्रारंभ हुआ पर यह नाकाफी है। यही कारण है कि किसान को बिचौलियों के माध्यम से ही उपज को बेचना पड़ता है।
विकेंद्रीकृत उपार्जन व्यवस्था में मध्य प्रदेश का देश में महत्वपूर्ण स्थान है। किसानों को बीते पांच वर्षों में समर्थन मूल्य पर उपार्जन कर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान हो चुका है। 2018-19 से 2022-23 तक गेहूं उत्पादक किसानों को 84 हजार 236 और धान उत्पादक किसानों को 25 हजार 668 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।
मध्य प्रदेश में लगभग 67 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है। ये अपनी आवश्यकताओं के लिए स्थानीय व्यापारियों के भरोसे रहते हैं। बोवनी के लिए खेत तैयार करने से लेकर खाद-बीज आदि के लिए इन्हीं से राशि उधार लेते हैं और उपज आने पर सबसे पहले उधारी चुकाता करते हैं। ये व्यापारी ही निर्धारित करते हैं कि उपज का कितना मूल्य देना है। इससे किसानों को आर्थिक हानि होती है।
उद्यानिकी और पशुपालन से आमदनी बढ़ेगी
पूर्व कृषि संचालक जीएस कौशल का कहना है कि किसान की आमदनी तब तक नहीं बढ़ेगा, जब तक वह परंपरागत खेती के साथ उद्यानिकी और पशुपालन को नहीं अपनाएगा। खेती में लागत बढ़ती जा रही है और इसकी भरपाई केवल समर्थन मूल्य से नहीं हो सकती है। किसान को यह भी समझना होगा कि कौन सी फसल उसके लिए आर्थिक तौर पर लाभकारी है। सरकार को भी अपनी योजनाओं को ईमानदारी के साथ विस्तार देना पड़ेगा। उद्यानिकी को बढ़ावा देने की बात होती है पर न तो समय पर बीज उपलब्ध हो पाते हैं और न ही विपणन की कोई व्यवस्था है। किसान को बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देना होगा, इससे किसान अपनी उपज का प्रसंस्करण कराकर बेचेगा, जिससे जो लाभ व्यापारी कमाते हैं, वह उसे मिलेगा। इसी तरह पशुपालन संबंधी योजनाओं का क्रियान्वयन भी आवश्यक है।