नए साल (2024) के पहले दिन जापान में भूकंप आया और 64 लोग मारे गए। इसके जख्म बिल्कुल ताजा थे कि टोक्यो इंटरनेशनल एयरपोर्ट (या हनेडा एयरपोर्ट) पर जापान एयरलाइंस (JAL) का प्लेन कोस्ट गार्ड के छोटे एयरक्राफ्ट से टकराकर आग के गोले में तब्दील हो गया।
कोस्टगार्ड के एयरक्राफ्ट में मौजूद सभी 6 लोग मारे गए, लेकिन हैरतअंगेज तौर पर JAL के पैसेंजर प्लेन में मौजूद 367 पैसेंजर और 12 क्रू मेंबर्स हिफाजत के साथ ‘बर्निंग प्लेन’ से बाहर आ गए।
सिंगापुर की न्यूज वेबसाइट ‘सीएनए’ और ब्रिटिश मीडिया हाउस ‘द गार्डियन’ ने एक्सपर्ट के जरिए सभी पैसेंजर्स को महज 90 सेकेंड में इवैक्यूएट (निकालने) करने के बारे में बताया है।
दो घंटे पहले पैसेंजर ने देखा था सेफ्टी वीडियो
इस हादसे का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। हनेडा एयरपोर्ट के कर्मचारियों को एयरक्राफ्ट की आग बुझाने में 6 घंटे लगे। बहरहाल, इस क्रैश के करीब दो घंटे पहले ही तमाम पैसेंजर्स को JAL के क्रू मेंबर्स ने सेफ्टी वीडियो दिखाया था। इसमें बताया गया था कि इमरजेंसी में उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है। हालांकि JAL लंबी दूरी की फ्लाइट्स में इस तरह के वीडियो दिखाता ही है।
इस वीडियो में फ्लाइट अटेंडेंट कहता है- जब आपकी जान खतरे में हो तो सबसे पहले खुद को बचाइए, लगेज की फिक्र छोड़ दें। यह वीडियो एनिमेशन फॉर्म में है और इसमें बताया गया है कि बैग्स और हाई हील शूज की वजह से आग ज्यादा तेजी से फैलती है और इवैक्यूएशन स्लाइड्स से गिरकर घायल होने या जान गंवाने का खतरा भी रहता है।
अब एक्सपर्ट की सुनिए
ब्रिटेन की एक एयर सेफ्टी और एविएशन एजेंसी के एक्सपर्ट पॉल हाएस कहते हैं- केबिन क्रू ने लाजवाब काम किया। उन्हें सैल्यूट। यह किसी चमत्कार से कम नहीं कि सभी पैसेंजर और क्रू सही-सलामत हैं। किसी को गंभीर चोट तक नहीं आई।
पूर्व ट्रैफिक कंट्रोलर माइकल रॉब्सन ने चैनल 4 न्यूज से कहा- इतने खतरनाक हालात में भी सभी को बचा लेना...। मैं तो चमत्कार ही मानूंगा।
पायलट और US बेस्ड एविएशन सेफ्टी कंसल्टेंसी के चीफ जॉन कॉक्स के मुताबिक क्रू ने जबरदस्त काम किया। ये बताता है कि उनकी ट्रेनिंग कितनी शानदार है। अगर आप इवैक्यूएशन वीडियो को ध्यान से देखें तो कोई पैसेंजर किसी तरह का सामान लेकर बाहर नहीं आया। वो सिर्फ जान बचा रहे थे। याद कीजिए इसी JAL का एयरक्राफ्ट 12 अगस्त 1985 को टोक्यो और ओसाका के बीच क्रैश हुआ था। 524 में से 520 पैसेंजर मारे गए थे।
तो 90 सेकेंड में सभी की जान बची कैसे
एक्सपर्ट इसका क्रेडिट क्रू और एयरक्राफ्ट के इमरजेंसी एग्जिट सिस्टम को देते हैं। कॉक्स कहते हैं- पैसेंजर्स को पता था कि उन्हें हर हाल में क्रू की बात ही माननी है। इस एयरक्राफ्ट की तीन एग्जिट स्लाइड्स और 10 में से पांच एग्जिट गेट इस्तेमाल किए गए। केबिन और एयरक्राफ्ट में हल्का धुआं था। लिहाजा, पैसेंजर्स को सांस लेने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई और वो बेहोश होने से पहले ही प्लेन से बाहर आ गए।
ओहियो यूनिवर्सिटी में एविएशन सेफ्टी के प्रोफेसर शॉन प्रुचिंस्की कहते हैं- लोगों की समझदारी को भी सलाम करते हैं। कई बार लोग अपने लगेज बैग्स निकालने की कोशिश में वक्त गंवा देते हैं, और ये भारी पड़ता है। मैं तो कहता हूं कि पूरी दुनिया में इवैक्यूएशन टाइम 90 सेकेंड या इससे कम तय किया जाना चाहिए। इसमें ये नहीं देखना चाहिए कि वो एयरबस है या कोई दूसरा एयरक्राफ्ट।
‘एयरलाइनरेटिंग’ वेबसाइट के एडिटर इन चीफ ज्यॉफ्री थॉमस के मुताबिक एयरक्राफ्ट में 6 इमरजेंसी एग्जिट स्लाइड थीं। क्रू ने सिर्फ तीन का इस्तेमाल किया और देखिए नतीजा। एग्जिट गेट 10 थे। उन्होंने सिर्फ पांच इस्तेमाल किए।
हल्का धुआं भी काम आ गया
एक एक्सपर्ट कहते हैं- आजकल एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग में ऐसे मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे आग और खासकर जहरीला धुआं ज्यादा न फैले। खासतौर पर सीटें तैयार करने में इसका ध्यान रखा जाता है। आप देखेंगे कि एयरक्राफ्ट खाक होने के बाद भी कई सीटें ठीक नजर आती हैं। इसके लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी को क्रेडिट दिया जाना चाहिए।
मसलन, इस मामले में आप देखेंगे कि बाहर से आग भले ही बेहद खतरनाक दिख रही हो, लेकिन अंदर धुआं हल्का और न के बराबर जहरीला था। लोग जानते थे कि खतरा बहुत ज्यादा है, इसलिए धुआं बढ़ने के पहले ही वो स्लाइड्स और गेट्स की तरफ भागे। फ्लोर कार्पेट भी ऐसा था कि आग ज्यादा और तेजी से नहीं फैल सकी।
थॉमस कहते हैं- अंत भला तो सब भला....लेकिन जांच इस बात की होनी चाहिए कि ये हादसा हुआ कैसे? मुझे लगता है कि पायलट और कंट्रोलर के बीच कम्युनिकेशन गैप इसका जिम्मेदार है।