जब रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर रणभूमि में भेजने का आदेश दिया ! ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सका था ! विभीषण के गुप्तचरों से समाचार मिलने पर श्रीराम को चिंता हुई कि हम लोग इनसे कब तक लड़ेंगे ? सीता का उद्धार और विभीषण का राज तिलक कैसे होगा?क्योंकि युद्ध कि समाप्ति असंभव है ! श्रीराम कि इस स्थिति से वानरवाहिनी के साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए कि अब क्या होगा ? हम अनंत कल तक युद्ध तो कर सकते हैं पर विजयश्री का वरण नहीं !पूर्वोक्त दोनों कार्य असंभव हैं ! अंजनानंदन हनुमान जी आकर वानर वाहिनी के साथ श्रीराम को चिंतित देखकर बोले –प्रभो ! क्या बात है ? श्रीराम के संकेत से विभीषण जी ने सारी बात बतलाई !अब विजय असंभव है ! पवन पुत्र ने कहा –असम्भव को संभव और संभव को असम्भव कर देने का नाम ही तो हनुमान है !प्रभो! आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए मैं अकेले ही जाकर रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूँगा !कैसे हनुमान ? वे तो अमर हैं ! प्रभो ! इसकी चिंता आप न करें सेवक पर विश्वास करें !उधर रावण ने चलते समय राक्षसों से कहा था कि वहां हनुमान नाम का एक वानर है उससे जरा सावधान रहना ! एकाकी हनुमानजी को रणभूमि में देखकर राक्षसों ने पूछा तुम कौन हो क्या हम लोगों को देखकर भय नहीं लगता जो अकेले रणभूमि में चले आये ! मारुति –क्यों आते समय राक्षस राज रावण ने तुम लोगों को कुछ संकेत नहीं किया था जो मेरे समक्ष निर्भय खड़े हो !निशाचरों को समझते देर न लगी कि ये महाबली हनुमान हैं ! तो भी क्या ? हम अमर हैं हमारा ये क्या बिगाड़ लेंगे ! भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ पवनपुत्र कि मार से राक्षस रणभूमि में ढेर होने लगे चौथाई सेना बची थी कि पीछे से आवाज आई हनुमान हम लोग अमर हैं हमें जीतना असंभव है ! अतः अपने स्वामी के साथ लंका से लौट जावो इसी में तुम सबका कल्याण है ! आंजनेय ने कहा लौटूंगा अवश्य पर तुम्हारे कहने से नहीं !अपितु अपनी इच्छा से !हाँ तुम सब मिलकर आक्रमण करो फिर मेरा बल देखो और रावण को जाकर बताना ! राक्षसों ने जैसे ही एक साथ मिलकर हनुमानजी पर आक्रमण करना चाहां वैसे ही पवनपुत्र ने उन सबको अपनी पूंछ में लपेटकर ऊपर आकाश में फेंक दिया ! वे सब पृथ्वी कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति जहाँ तक है वहां से भी ऊपर चले गए ! चले ही जा रहे हैं
चले मग जात सूखि गए गात - गोस्वामी तुलसीदास !
उनका शरीर सूख गया अमर होने के कारण मर सकते नहीं !
अतः रावण को गाली देते हुए और कष्ट के कारण अपनी अमरता को कोसते हुए अभी भी जा रहे हैं !
इधर हनुमान जी ने आकर प्रभु के चरणों में शीश झुकाया ! श्रीराम बोले –क्या हुआ हनुमान ! प्रभो ! उन्हें ऊपर भेजकर आ रहा हूँ ! राघव –पर वे अमर थे हनुमान! हाँ स्वामी इसलिए उन्हें जीवित ही ऊपर भेज आया हूँ अब वे कभी भी नीचे नहीं आ सकते ? रावण को अब आप शीघ्रातिशीघ्र ऊपर भेजने की कृपा करें जिससे माता जानकी का आपसे मिलन और महाराज विभीषण का राजसिंहासन हो सके ! पवनपुत्र को प्रभु ने उठाकर गले लगा लिया ! वे धन्य हो गए अविरल भक्ति का वर पाकर ! श्रीराम उनके ऋणी बन गए !और बोले –हनुमानजी—आपने जो उपकार किया है वह मेरे अंग अंग में ही जीर्ण शीर्ण हो जाय मैं उसका बदला न चुका सकूँ ,क्योकि उपकार का बदला विपत्तिकाल में ही चुकाया जाता है ! पुत्र ! तुम पर कभी कोई विपत्ति न आये !निहाल हो गए आंजनेय ! हनुमानजी की वीरता के समान साक्षात काल देवराज इन्द्र महाराज कुबेर तथा भगवान विष्णु की भी वीरता नहीं सुनी गयी –ऐसा कथन श्रीराम का है –
न कालस्य न शक्रस्य न विष्णर्वित्तपस्य च !
कर्माणि तानि श्रूयन्ते यानि युद्धे हनूमतः !
जिसके लिए सूर्य मात्र एक फल था :- और सौ योजन समुद्र एक तालाब
एक भक्त का अपने इष्टदेव के साथ याद किया जाना किसी भी सच्चे भक्त के लिए सबसे बडा वरदान है ! शायद इस सुची मे सबसे उपर राम भक्त हनुमान आते है ! जितना भगवान राम का नाम माता सीता के साथ लिया जाता है उतना ही हनुमान जी भी श्री राम के साथ याद किए जाते है !
हमारे पौराणीक ग्रंथो मे ऐसे न जाने कितने किस्से है जो हनुमान जी की बेहद ही नटखट और
लुभावने व्यवहार की बाते करते है ! तो आइये आज हम आपको सुनाते है हनुमान जी की बाल्यावस्था की वो कहानी जब उन्होने सूरज को एक फल समझ कर खाना चाहा था !
कथा :--
" बाल समय रवि भक्ष लियो तव तिनो ही लोक भयो अंधियारो "
एक समय की बात है जब हनुमान जी अपनी बाल्यावस्था मे थे, ये एक ऐसा काल था जब हनुमान जी का अपनी शक्तियो पर वश नही था ! वो बहुत ही उत्पाति बालको की श्रेणी मे आते थे ! उनकी माता अंजना उनके इस व्यवहार से रोज परेशान रहती थी !
एक बार माता अंजना किसी कार्य से महल के बाहर थी, काफी समय से बाहर होने की वजह से हनुमान जी को किसी ने खाना नही खिलाया ! भुख से व्याकुल हनुमान बेचैन होकर अपनी अटारी पर आ जाते है ! वहां से सूर्य को आकाश मे चमकते देखते है, उन्हे वो एक फल जैसा लगता है ! वो तुरन्त ही उड पडते सूर्य को निगलने के लिए ! हनुमान को उडते देख वायुदेव और तेजी से बहने लगते है, ताकी हनुमान जी जल्दी से जल्दी सूर्य तक पहुंचे ! हनुमान को अपने पास आते देख सूर्यदेव अपने तेज को कम कर लेते है, ताकी हनुमान जी जलें ना ! जिस समय हनुमान सूर्य को निगलने के लिए बढ रहे थे, उसी समय राहु भी सूर्य देव पर ग्रहण लगाने के लिए बढ रहां था ! हनुमान ने सूर्यदेव को निगल लिया ! ये देखते ही राहु भयभीत होकर इंद्र के पास गया , उसने इंद्र को सारी बात बताई !
भगवान इंद्र गुस्से मे आये और उन्होने हनुमान जी की ठुड्डी पर बज्र से प्रहार किया ! प्रहार के फलस्वरुप सूर्यदेव हनुमान जी के मुख से मुक्त हो गये, पर हनुमान जी मुर्छित होकर पर्वत पर जा गिरें ! ये देखकर वायुदेव को क्रोध आ गया, उन्होने धरती पर अपना प्रवाह ही रोक दिया ! इस वजह से धरती पर सभी को सांस लेने मे परेशानी होने लगी ! तब भगवान इंद्रदेव ने वायुदेव से विनती की और ब्राह्मा जी ने हनुमान जी को वापस होश मे लाने मे मदद की ! ये देखकर वायुदेव शांत हुए, और पुनः अपने पुराने वेग मे बहने लगे ! तब इंद्र ने हनुमान जी को वरदान दिये की इस बालक का शरीर वज्र जितना मजबुत हो जायेगा ! और इसके शरीर को कोई भी अस्त्र भेद नही पायेगा !