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हनुमान जन्मोत्सव विशेष-2

Updated on 27-04-2021 12:37 PM
हनुमानजी के कुछ नाम एवं उनका अर्थ - हनुमानजी को मारुति, बजरंगबली इत्यादि नामोंसे भी जानते हैं।  मरुत शब्द से ही मारुति शब्द की उत्पत्ति हुई है। महाभारत में हनुमानजी का उल्लेख मारुतात्मजके नाम से किया गया है। हनुमानजी का अन्य एक नाम है, बजरंगबली। बजरंगबली यह शब्द व्रजांगबली के अपभ्रंश से बना है। जिनमें वज्र के समान कठोर अस्त्र का सामना करनेकी शक्ति है, वे व्रजांगबली है। जिस प्रकार लक्ष्मण से लखन, कृष्ण से किशन ऐसे सरल नाम लोगों ने अपभ्रंश कर उपयोगमें लाए, उसी प्रकार व्रजांगबली का अपभ्रंश बजरंगबली हो गया।
हनुमानजी की विशेषताएं - अनेक संतोंने समाजमें हनुमानजीकी उपासनाको प्रचलित किया है। ऐसे हनुमान जी के संदर्भ में समर्थ रामदास स्वामी कहते हैं, ‘हनुमानजी हमारे देवता हैं ।’ हनुमानजी शक्ति, युक्ति एवं भक्तिका प्रतीक हैं। इसलिए समर्थ रामदासस्वामी ने हनुमानजी की उपासना की प्रथा आरंभ की। महाराष्ट्र में उनके द्वारा स्थापित ग्यारह मारुति प्रसिद्ध हैं। साथ ही संत तुलसीदास ने उत्तर भारत में मारुति के अनेक मंदिर स्थापित किए तथा उनकी उपासना दृढ की। दक्षिण भारत में मध्वाचार्य को मारुति का अवतार माना जाता है। इनके साथ ही अन्य कई संतों ने अपनी विविध रचनाओं द्वारा समाजके समक्ष मारुतिका आदर्श रखा है।
1.  शक्तिमानता - हनुमानजी सर्वशक्तिमान देवता हैं। जन्म लेते ही हनुमानजी ने सूर्यको निगलनेके लिए उडान भरी। इससे यह स्पष्ट होता है कि, वायुपुत्र अर्थात वायुतत्त्वसे उत्पन्न हनुमानजी, सूर्यपर अर्थात तेजतत्त्वपर विजय प्राप्त करनेमें सक्षम थे। पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश तत्त्वोंमेंसे तेजतत्त्वकी तुलनामें वायुतत्त्व अधिक सूक्ष्म है अर्थात अधिक शक्तिमान है। सर्व देवताओंमें केवल हनुमानजीको ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं। लंकामें लाखों राक्षस थे, तब भी वे हनुमानजीका कुछ नहीं बिगाड पाएं। इससे हम हनुमानजीकी शक्तिका अनुमान लगा सकते हैं।
2. भूतों के स्वामी - हनुमानजी भूतोंके स्वामी माने जाते हैं। किसी को भूत बाधा हो, तो उस व्यक्ति को हनुमानजी के मंदिर ले जाते हैं। साथ ही हनुमानजी से संबंधित स्तोत्र जैसे हनुमत्कवच, भीमरूपी स्तोत्र अथवा हनुमानचालीसाका पाठ करनेके लिए कहते हैं ।
4. भक्ति - साधना में जिज्ञासु, मुमुक्षु, साधक, शिष्य एवं भक्त ऐसे उन्नति के चरण होते हैं। इसमें भक्त यह अंतिम चरण है। भक्त अर्थात वह जो भगवानसे विभक्त नहीं है। हनुमानजी भगवान श्रीराम से पूर्णतया एकरूप हैं। जब भी नवविधा भक्ति में से दास्य भक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना होता है, तब हनुमानजी का उदाहरण दिया जाता है। वे अपने प्रभु राम के लिए प्राण अर्पण करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । प्रभु श्रीराम की सेवा की तुलना में उन्हें सब कुछ कौडी के मोल लगता है। हनुमान सेवक एवं सैनिक का एक सुंदर सम्मिश्रण हैं। स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे, अपने-आपको श्रीरामजीका दास कहलवाते थ। उनकी भावना थी कि उनकी शक्ति भी श्रीरामजी की ही शक्ति है। मान अर्थात शक्ति एवं भक्तिका संगम।
5.  मनोविज्ञानमें निपुण एवं राजनीतिमें कुशल - अनेक प्रसंगों में सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, वरन् राम भी हनुमानजी से परामर्श करते थे। लंका में प्रथम ही भेंट में हनुमानजी ने सीता के मन में अपने प्रति विश्वास निर्माण किया। इन प्रसंगों से हनुमानजी की बुद्धिमानता एवं मनोविज्ञान में निपुणता स्पष्ट होती है। लंकादहन कर हनुमानजी ने रावण की प्रजा में रावणके सामर्थ्य के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया। इस बातसे उनकी राजनीति-कुशलता स्पष्ट होती है।
6.  जितेंद्रिय -  सीता को ढूंढने जब हनुमानजी रावण के अंतःपुर में गए, तो उस समय की उनकी मनः स्थिति थी, उनके उच्च चरित्र का सूचक है। इस संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं,  ‘सर्व रावण पत्नियों को निःशंक लेटे हुए मैंने देखा; परंतु उन्हें देखने से मेरे मनमें विकार उत्पन्न नहीं हुआ।’ 
वाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड 11.42-43 इंद्रियजीत होनेके कारण हनुमानजी रावणपुत्र इंद्रजीत को भी पराजित कर सके। तभी से इंद्रियों पर विजय पाने हेतु हनुमानजी की उपासना बतायी गई।
7. भक्तों की इच्छा पूर्ण करने वाले - हनुमानजी को इच्छा पूर्ण करने वाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत रखने वाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमानजी की मूर्तिकी श्रद्धापूर्वक निर्धारित परिक्रमा करते हैं। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्या का विवाह निश्चित न हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानजी की उपासना करने के लिए कहा जाता है। वास्तवमें अत्युच्च स्तर के देवताओं में ‘ब्रह्मचारी’ या ‘विवाहित’ जैसा कोई भेद नहीं होता। ऐसा अंतर मानव-निर्मित है। मनोविज्ञान के आधार पर कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि, सुंदर, बलवान पुरुष से विवाह की कामना से कन्याएं हनुमानजी की उपासना करती हैं। परंतु वास्तविक कारण कुछ इस प्रकार है। लगभग ३० प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह भूतबाधा, जादू-टोना इत्यादि अनिष्ट शक्तियों के प्रभावके कारण नहीं हो पाता। हनुमानजी की उपासना करने से ये कष्ट दूर हो जाते हैं एवं उनका विवाह संभव हो जाता है।
8. हनुमान जन्मोत्सव कैसे मनाया जाता है ? -  हनुमान जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में विविध स्थानों पर धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रात: 4 बजे से ही भक्तजन स्नान कर हनुमान जी के देवालयों में दर्शन के लिए आने लगते हैं। प्रात: 5 बजे से देवालयों में पूजा विधि आरंभ होती हैं । हनुमानजी की मूर्ति को पंचामृत स्नान करवा कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है।  सुबह 6 बजे तक अर्थात हनुमान जन्म के समय तक हनुमान जन्म की कथा, भजन, कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति को हिंडोले में रख हिंडोला गीत गाया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति हाथ में लेकर देवालय की परिक्रमा करते हैं। हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में कुछ जगह यज्ञ का आयोजन भी करते हैं।  तत्पश्चात हनुमानजी की आरती उतारी जाती है।  आरती के उपरांत कुछ स्थानों पर सौंठ अर्थात सूखे अदरक का चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियल का चूरा मिलाकर उस मिश्रण को या कुछ स्थानों पर छुहारा, बादाम, काजू, सूखा अंगूर एवं मिश्री, इस पंचखाद्य को प्रसाद के रूप में बांटते हैं । कुछ स्थानों पर पोहे तथा चने की भीगी हुई दाल में दही, शक्कर, मिर्ची के टुकडे, निम्ब का अचार मिलाकर गोपाल काला बनाकर प्रसादके रूपमें बाटते है। कुछ जगह महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है।
हनुमान जी को चोला चढ़ाने की विधि और लाभ -  हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लाभ
श्री हनुमान जी को चोला चढाने से साधक को श्री हनुमान जी कृपा प्राप्त होती हैं ! ऐसा करने से श्री हनुमान जी प्रसन्न होते हैं ! हनुमान जी को चोला चढ़ाने से जातक के उपाय चल रही शनि की साढ़े साती, ढैया, दशा या अंतरदशा या राहू या केतु की दशा या अंतरदशा में हो रहे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। साथ ही  साधक के संकट और रोग दूर हो जाते हैं ! जातक की दीर्घायु होती है। यह तो आप सब जानते है की भगवान श्री हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार हैं ! हमारे हिन्दू धर्म में सिंदूर का महत्व बताया गया हैं ! ऐसे ही हमारे हिन्दू धर्म में की भी मान्यता हैं ! साधक श्री हनुमान जी को ख़ास कर सिंदूर का चोला चढाने से श्री राम जी की भी कृपा प्राप्त  होती हैं यह आपको रामायण में वर्णित मिल जायेगा।
इस लेख को पढ़ने के बाद  आप हनुमान जी चोला चढ़ाने में आगे से कोई भी गलती नही होगी। 
हनुमान जी को चोला चढ़ाने की सामग्री 
हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लिए श्री हनुमान जी वाला सिंदूर, गाय का घी या चमेली का तेल, शुद्ध गंगाजल मिश्रित जल, चांदी या सोने का वर्क या माली पन्ना (चमकीला कागज), धुप व् दीप , श्री हनुमान चालीसा।
चोला चढ़ाने की विधि
हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराना चोला उतारकर साफ़ गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये। स्नान के बाद प्रतिमा को साफ कपड़े से पोछ न के बाद सिंदूर में घी या चमेली का तेल मिलाकर गाढ़ा लेप बना ले इसके बाद सीधे हाथ से हनुमान जी के सम्पूर्ण शरीर पर लेपन करें।
सावधानियां
श्री हनुमान जी को चोला मंगलवार, शनिवार या विशेष पर्व जैसे की श्री हनुमान जंयती, रामनवमी, दीपवाली, व् होली के दिन चढ़ा सकते है ! इसके अलावा अन्य दिन चढ़ाना निषेध माना गया हैं !
श्री हनुमान जी के लिए लगाने वाला सिंदूर सवा के हिसाब से लगाना चाहिए ! जैसे की सवा पाव ,सवा किलो आदि ।
सिंदूर में मंगलवार के दिन देसी गाय का घी एवं शनिवार के दिन केवल चमेली के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए। 
हनुमान जी को चोला चढ़ाने के  समय साधक को पवित्र यानी साफ़ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए !
श्री हनुमान जी चोला चढाते समय सिंदूर में गाय का घी या चमेली का तेल ही मिलाना चाहिए !
हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराने छोले को उतारा जरुर चाहिए और उसके बाद उस चोले को बहते हुए जल में बहा देना चाहिए !
श्री हनुमान जी की प्रतिमा पर चोला का लेपन अच्‍छी तरह मलकर, रगड़कर चढ़ाना चाहिए उसके बाद चांदी या सोने का वर्क चढ़ाना चाहिए !
चोला चढ़ाते समय दिए गये मंत्र का जाप करते रहना चाहिए ! 
हनुमान जी को चोला चढ़ाने का मन्त्र 
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये । भक्तयां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम ।।
श्री हनुमान जी को स्त्री द्वारा चोला नही चढ़ाना चाहिए और ना ही चोला चढ़ाते समय स्त्री मंदिर में होनी चाहिए !
हनुमान जी को चोला चढ़ाने के समय साधक की श्वास प्रतिमा पर नही लगनी चाहिए !
श्री हनुमान जी को चोला सृष्टि क्रम ( पैरों से मस्तक तक चढ़ाने में देवता सौम्य रहते हैं ) में चढ़ाना चाहिए ! संहार क्रम ( मस्तक से पैरों तक चढ़ाने में देवता उग्र हो जाते हैं ) ! यदि आपको कोई मनोकामना पूरी करनी है तो पहले उग्र क्रम से चढ़ाये मनोकामना पूरी होने के बाद सोम्य क्रम में चढ़ाये !
हनुमान जी को चोला चढ़ाने के बाद श्री हनुमान जी सामने घी या चमेली के तेल का दीपक जलाकर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए !
हनुमान पूजन (सरलतम विधि)
हनुमानजी का पूजन करते समय सबसे पहले कंबल या ऊन के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं इसके पश्चातहाथ में चावल व फूल लें व इस मंत्र से 
हनुमानजी का ध्यान करें-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
इसके बाद हाथ में लिया हुआ चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें।
आवाह्न
हाथ में फूल लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी का आवाह्न करें एवं उन फूलों को हनुमानजी को अर्पित कर दें।
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्।
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।
विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।
ऊँ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
आसन
नीचेलिखे मंत्र से हनुमानजी को आसन अर्पित करें(आसन के लिए कमल अथवा गुलाब का फूल अर्पित करें।) अथवा चावल या पत्ते आदि का भी उपयोग हो सकता है |
तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
इसके बाद इन मंत्रों का उच्चारण करते हुएहनुमान जी के सामने किसी बर्तन अथवा  भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें।
अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
इसके बाद केले के पत्ते पर या किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर प्रसाद रखें और हनुमानजी को अर्पित कर दें तत्पश्चात ऋतुफल अर्पित करें। (प्रसाद में चूरमा,भीगे  हुए चने या गुड़ चढ़ाना उत्तम रहता है।)
इसके बाद एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
हनुमान जी की आरती
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आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥१
जाके बल से गिरिवर काँपै। रोग-दोष जाके निकट न झाँपै॥२
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥३
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये॥४
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥५
लंका जारि असुर सँहारे। सियारामजी के काज सँवारे॥६
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि सजीवन प्रान उबारे॥७
पैठि पताल तोरि जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे॥८
बायें भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे॥९
सुर नर मुनि आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे॥१०
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई॥११
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसि बैकुण्ठ परमपद पावै॥१२



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