किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को तब तक करना मुश्किल होता है जब तक आप अकेले हो, लेकिन किसी के सहयोग और भागीदारी के साथ किया गया कार्य हमेशा पॉजिटिव रिजल्ट ही देता है। यह मुहावरा इस बात में जान डाल देता है कि बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाख की। लक्ष्य हेतु भागीदारी ऐसी चुनौती है जो सतत विकास के अन्य सभी 16 लक्ष्यों के बारे में भारत के द्वारा किए जा रहे प्रयासों को एकजुट करती है। एक सफल सतत् विकास एजेंडा के लिए सरकारों, निजी क्षेत्रों और समाज के बीच भागीदारी आवश्यक है।सतत विकास एजेंडा के लिए महत्वकांक्षी भागीदारी का होना अत्यंत आवश्यक है जो भारत को एक नई उड़ान भरने में सहायता करेगी। भारत सरकार इस नई वैश्विक भागीदारी का एक महत्वपूर्ण अंग है और इस भागीदारी को क्षेत्र के भीतर और दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करने के देश के प्रयासों से शक्ति मिली है। शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स और उसके नए विकास बैंक तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ जैसी संस्थाओं के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र एजेंसीज और विश्वभर में ऐसे कार्यक्रमों में भारत की सदस्यता और नेतृत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस लक्ष्य के अंतर्गत भारत के विकास के लिए धन की व्यवस्था करना, लोगों को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी नेटवर्क के जरिए जोड़ना, इंटरनेशनल ट्रेड फ्लो की व्यवस्था करना और डाटा के कंपाइलेशन तथा एनालिसिस को प्रबल करना शामिल है। इस लक्ष्य में अकेले भारत ही नहीं बल्कि अनेकों देशों का एकजुट होना आवश्यक है जिससे कि कहीं भी किसी भी प्रकार की रुकावट का सामना न करना पड़े।
#2030 का भारत कैसा हो, इस विचार पर कार्य करने के लिए लक्ष्य हेतु भागीदारी विषय शरीर में आत्मा की भूमिका की तरह है, जिसके बिना शरीर प्राणहीन सा है। इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करे, इसके साथ ही विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सहित घरेलू संसाधन जुटाने की व्यवस्था को मजबूत करना जिससे कर और अन्य राजस्व संकलन के लिए देशों की क्षमता में सुधार हो सके, विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार की सुलभता बढ़ाना, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास के लिए नीतियां बनाने और लागू करने हेतु एक-दूसरे देश की नीतिगत क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना, सतत विकास के बारे में प्रगति के ऐसे पैमाने विकसित करने हेतु मौजूदा प्रयासों को आगे बढ़ाना जो सकल घरेलू उत्पाद के पूरक हों और विकासशील देशों में सांख्यिकीय क्षमता निर्माण को समर्थन दें, आदि सम्मिलित हैं।
सतत विकास के लक्ष्यों को दूर करता कोरोना काल
कोरोना महामारी के चलते जहाँ पूरी दुनिया को निरंतर नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वही सतत विकास के लक्ष्यों पर विजय प्राप्ति भी एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। कोरोना ने सतत विकास के लक्ष्यों पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला है। इस वायरस ने दुनिया को बता दिया है कि लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने, धरती बचाने और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए बड़े कदम उठाने की सख्त जरूरत है। जहाँ एक ओर कोरोना काल के दौरान नदियों तथा समुद्रों के प्रदुषण में कमी एवं स्थलीय तथा जलीय जीवों के जीवन स्तर में सुधार आया है, वहीं दूसरी ओर देश की आर्थिक स्थिति के बिगड़ते गरीबी तथा भुखमरी के आसार अत्यधिक बढ़ गए हैं।
गरीबी तथा भुखमरी सबसे बड़ी चुनौतियां
जब आजादी के 73 साल बाद भी देश की 21 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रह रही हो, तो निश्चय ही इसे शून्य पर लाने के लिए देश में काफी ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है। सतत विकास के प्रथम दो लक्ष्यों गरीबी तथा भुखमरी से भारत कई वर्षों से जूझ रहा है। इन लक्ष्यों पर विजय प्राप्त करना भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती रही है। कोरोना महामारी ने भारत की आर्थिक स्थिति को बहुत बुरी तरह से ठप कर दिया है, जिसका असर प्रत्यक्ष तौर से गरीबी तथा भुखमरी पर देखने को मिल रहा है। रोजी-रोटी के नुकसान और भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य तथा अन्य बुनियादी जरूरतों की कमी के कारण कोरोना ने हाशिए के समुदायों को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में न्यूनतम 69 करोड़ लोग भुखमरी की समस्या से जूझते रहे थे। वहीं कोविड-19 के कारण 2020 में न्यूनतम 13 करोड़ से अधिक अन्य लोग भुखमरी की समस्या का सामना करने पर मजबूर हो सकते हैं। जिससे वर्ष 2030 तक ‘शून्य भुखमरी’ लक्ष्य को प्राप्त करने में बड़ी चुनौती पेश हो सकती है।
भारत की धीमी प्रगति
सतत विकास लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रगति शुरू से ही काफी धीमी रही है। पड़ाेसी देश नेपाल, भूटान तथा श्रीलंका के विकास का प्रदर्शन भारत से बेहतर है। इस महामारी ने भारत के सतत विकास के लक्ष्यों की प्रगति को और धीमा कर दिया है। वर्तमान पलायन और बेरोजगारी को देखते हुए ये लक्ष्य और दूर हो गए हैं। इसने व्यापार और फैक्टरियों को बंद कर दिया है और अनेक श्रमबल की जिंदगियों को प्रभावित किया है। सबसे तेज प्रगति डेनमार्क (85.2), स्वीडन (85.0), फिनलैंड (82.8), फ्रांस (81.5) तथा ऑस्ट्रिया (81.1) देशों ने की है, जबकि भारत का स्थान 115 पर है।
भारत की प्रगति रिपोर्ट
भारत में गरीबी की रेखा का अनुपात 27.4 है जो एक प्रमुख चुनौती है, तथा कुपोषण का अनुपात 14.80 है। उत्तम स्वस्थ्य तथा खुशहाली के अंतर्गत प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मात्रा मृत्यु दर का अनुपात 174 है। साथ ही प्रति एक लाख की आबादी पर टीबी के मामलों का अनुपात 204 है। ये भारत के लिए प्रमुख चुनौतियां हैं। प्रति एक हजार की आबादी पर एचआईवी संक्रमण के खतरे का अनुपात 0.1 है जो एक प्राप्त लक्ष्य है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा में शुद्ध नामांकन का प्रतिशत 92.3 है। इसके साथ ही 15 -24 आयु वर्ग में महिला तथा पुरुषों में साक्षरता का प्रतिशत 86.1 है। लैंगिक समानता के चलते 25 साल से अधिक उम्र की महिलाओं की स्कूली शिक्षा (58.5%), महिलाओं की श्रमबल में भागीदारी (34.2 %) तथा संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व (11.8%) प्रमुख चुनौतियां हैं। स्वच्छ जल तथा स्वच्छता के चलते आबादी द्वारा कम से कम स्वच्छता की मुलभुत सेवाओं का उपयोग (44.2%) प्रमुख चुनौती है तथा कुल नवीनीकरण जल संसाधनों के रूप में ताजे पानी का दोहन (44.5%) शेष चुनौती है। सस्ती तथा प्रदुषण मुक्त ऊर्जा के तहत भोजन पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन तथा तकनीकी तक पहुँच (41%) तथा ईंधन तथा बिजली उत्पादन के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन (1.6%) प्रमुख चुनौतियां हैं। उत्कृष्ट कार्य तथा आर्थिक वृद्धि के चलते समायोजित विकास (1%), कुल श्रमबल की बेरोजगारी दर (3.5%) तथा प्रति एक लाख की आबादी में कार्यस्थल पर बड़ी दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु दर (0.1%) प्राप्त लक्ष्य हैं। उद्योग, नवाचार तथा बुनियादी सुविधाओं के अंतर्गत इंटरनेट का उपयोग करने वाली आबादी (34.5%), प्रति सौ नागरिकों की आबादी पर मोबाइल ब्रॉडबैंड सदस्यता (25.8%) तथा शोध एवं विकास पर खर्च (0.6%) प्रमुख चुनौतियां हैं। इसके साथ ही लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक, यातायात तथा व्यापर सम्बन्धी बुनियादी सुविधाओं की गुणवत्ता (2.9%) शेष चुनौतियां हैं। असमानताओं में कमी के चलते GINI इंडेक्स (45.6%) एक प्रमुख चुनौती है। संवहनीय नगर तथा समुदाय के तहत शहरी क्षेत्रों में प्रति माह 2.5 की वार्षिक सघनता (90.9%) तथा जल स्त्रोतों में सुधार, पाइप के जरिए आपूर्ति (शहरी आबादी की पहुँच का 68.7%) प्रमुख चुनौतियां हैं, साथ ही सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से संतिष्टि (74.4%) प्राप्त चुनौती है। संवहनीय उपभोग तथा उत्पादन के तहत म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (0.3%), ई-कचरा (1.5%), उत्पादन आधारित सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन (6.2%), आयातित सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन (-0.4%) तथा प्रतिक्रियात्मक नाइट्रोजन उत्पादन फुटप्रिंट (-8.7%) प्राप्त चुनौतियां हैं। जलवायु कार्रवाई के चलते ऊर्जा जनित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन (1.7%), तकनीकी समायोजित आयातित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन (0.1%) तथा जीवाश्म ईंधन के निर्यात में सम्मिलित कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन (2.1%) प्राप्त चुनौतियां हैं। साथ ही प्रति एक लाख की आबादी पर जलवायु सम्बन्धी आपदा से प्रभावित लोगों की संख्या 2359.60 है, जो एक प्रमुख चुनौती है। जलीय जीवों की सुरक्षा के चलते महासागर स्वस्थ्य सूचकांक लक्ष्य "स्वच्छ जल" (22.7%) प्रमुख चुनौती है। इस लक्ष्य में जैव विविधता के लिहाज से महत्वपूर्ण संरक्षित समुद्री क्षेत्रों का औसत (29.0%) महत्वपूर्ण चुनौती है, साथ ही महाजाल से मछली पकड़ना (10.2%) शेष चुनौती है तथा मछली स्टॉक का अतिदोहन अथवा विशेष आर्थिक जोन (12.4%) प्राप्त चुनौती है। थलीय जीवों की सुरक्षा के चलते प्रजातियों के अस्तित्व से जुड़ा रेड लिस्ट इंडेक्स (0.7%) प्रमुख चुनौती, जैव विविधता के लिहाज से महत्वपूर्ण संरक्षित स्थलों का औसत (26.1%) तथा ताजे पानी के स्थलों का औसत (15.2%) महत्वपूर्ण चुनौती और पेड़ों की स्थाई कटाई (5 साल का सालाना औसत 0%) तथा प्रति दस लाख आबादी पर जैव विविधता के आयातित खतरे (0.3%) प्राप्त चुनौतियां हैं। शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाओं के चलते प्रति एक लाख की आबादी पर गैर सजा प्राप्त कैदियों की जनसँख्या (0.7%), 5 साल से काम उम्र के बच्चों का सिविल प्राधिकरण द्वारा पंजीकरण (71.9%) तथा 5-14 आयु वर्ग के बच्चे जो बालश्रम में संलिप्त हैं (11.8%), प्रमुख चुनौतियां हैं। प्रति एक लाख की आबादी पर मानव हत्या (3.2%), भ्रष्टाचार अनुभव सूचकांक (41) तथा प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (43.2) महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। इसके साथ ही रात में घूमते के दौरान सुरक्षित महसूस करना (73.1%) तथा संपत्ति का अधिकार (4.4) शेष चुनौतियां और 1990 US डॉलर मिलियन प्रति एक लाख आबादी पर प्रमुख पारम्परिक हथियारों का निर्यात (0) प्राप्त चुनौती है। लक्ष्य हेतु भागीदारी के चलते शिक्षा तथा स्वस्थ्य पर सरकारी व्यय (4.7%) प्रमुख चुनौती तथा टेक्स हेवन स्कोर (0) प्राप्त चुनौती है।
सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राज्यों की प्रगति
2030 के भारत के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए देश का प्रत्येक राज्य अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, जिनमें से 100 अंकों में से केरल (70), हिमाचल प्रदेश (69) तथा चंडीगढ़ (70) का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, वहीं दूसरी और जम्मू और कश्मीर (59), झारखण्ड (53) तथा बिहार (50) का सबसे खराब प्रदर्शन है। यदि हम सभी लक्ष्यों की अलग-अलग बात करें तो गरीबी के अंत को लेकर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तमिलनाडु (72) तथा त्रिपुरा (70) का है एवं झारखण्ड (28) तथा बिहार (33) का सबसे खराब प्रदर्शन है। इस लक्ष्य हेतु भारत का एवरेज 50 है। भूख के अंत को लेकर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन गोवा (76) तथा मिजोरम (74) का है और सबसे खराब प्रदर्शन झारखण्ड (22) तथा दमन एवं दीव (12) का है। इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 35 है। उत्तम स्वस्थ्य तथा खुशहाली के चलते सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन केरल (82) तथा तमिलनाडु (76), आँध्रप्रदेश (76) एवं महाराष्ट्र (76) का है और सबसे खराब प्रदर्शन नागालैंड (24) तथा उत्तर प्रदेश (34) का है। साथ ही भारत का औसत 61 है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विजय प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हिमाचल प्रदेश (81) तथा केरल (74) का है, वहीं दूसरी और सबसे खराब प्रदर्शन बिहार (19) तथा ओडिशा (40) का है। इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 58 है। लैंगिक समानता लक्ष्य हेतु हिमाचल प्रदेश (52) तथा केरल (51) का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, साथ ही तेलंगाना (26) तथा अरुणाचल प्रदेश (33) का सबसे खराब प्रदर्शन है। इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 42 है। स्वच्छ जल तथा स्वच्छता के चलते सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन चंडीगढ़ (100) तथा आंध्र प्रदेश (96) का है, वहीं दूसरी और सबसे खराब प्रदर्शन दिल्ली (61) तथा त्रिपुरा (69) का है। साथ इस इस लक्ष्य हेतु भारत का औसत 88 है। सस्ती तथा प्रदुषण मिक्त ऊर्जा लक्ष्य के चलते सिक्किम (97), पुडुचेरी (97) तथा गोवा (95) का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ है एवं लक्षद्वीप (43), ओडिशा (50) तथा झारखण्ड (50) का प्रदर्शन सबसे खराब है। इसके साथ ही भारत का एवरेज 70 है।
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