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भारत सरकार ने बढ़ाए कदम 2030 के भारत की ओर .. (5)

Updated on 30-06-2023 05:52 PM
13 जलवायु कार्रवाई
जीवन का वरदान देने वाली पृथ्वी का आज स्वयं का जीवन संकट में है। विश्व की बढ़ती जनसँख्या, कटते पेड़, दूषित हवा और जल, प्रदुषण, प्राकृतिक संसाधनों के साथ छेड़छाड़ एवं बिगड़ते वातावरण के साथ पृथ्वी की जलवायु में लगातार बदलाव हो रहे हैं। इसका सीधा असर मनुष्य सहित अनेकों प्राणियों के जीवन स्तर पर पड़ रहा है एवं हमें मौसम के बदलते रूप, समुद्र के चढ़ते जल स्तर और कठोर मौसम का सामना करना पड़ रहा है। इस परिवर्तन में सहायक, इंसानी गतिविधियों से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, आपदाओं को भी बढ़ा रहा है और उसका सामना करना हमारे जीवन की रक्षा और आने वाली पीढ़ियों के जीवन तथा खुशहाली के लिए अत्यंत आवश्यक है।
1880 से 2012 तक दुनिया के तापमान में औसतन 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। इसका असर यह है कि तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि से अनाज की पैदावार करीब 5% गिर जाती है। वैश्विक स्तर पर गर्म होती जलवायु के कारण 1981 और 2002 के बीच मक्का, गेहूं और अन्य प्रमुख फसलों की पैदावार में 40 मेगाटन प्रतिवर्ष की गिरावट देखी गई। 1901 से 2010 तक दुनिया में समुद्री जल के स्तर में औसतन 19 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई क्योंकि गर्म होते तापमान और हिम के पिघलने से महासागरों का विस्तार हुआ। कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक उत्सर्जन 1990 के बाद से लगभग 50% बढ़ा है। सन् 2000 और 2010 के बीच उत्सर्जन में वृद्धि इससे पहले के तीन दशकों में से प्रत्येक की तुलना में अधिक तेज गति से हुई है। यदि हम भारत की बात करें तो भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है और 5.3% वैश्विक उत्सर्जन करता है। इसके बावजूद 2005 और 2010 के बीच भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 12% की कमी आई। भारत ने अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 2020 तक 20-25% कमी का संकल्प लिया है।

#2030 के भारत के इस लक्ष्य के अंतर्गत जलवायु से जुड़े खतरों और प्राकृतिक आपदाओं को सहने तथा उनके अनुरूप ढ़लने की क्षमता मजबूत करना, प्लास्टिक पर रोक लगाकर नदियों और महासागरों के दूषित होने पर रोक लगाना, जलवायु परिवर्तन का असर कम करने, उसके अनुरूप ढ़लने, प्रभाव घटाने और जल्दी चेतावनी देने के लिए शिक्षा और जागरूकता उत्पन्न करने की व्यवस्था में सुधार करना, आदि शामिल हैं। भारत सरकार ने इस समस्या से सीधे निपटने के लिए राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्रवाई योजना और राष्ट्रीय हरित भारत मिशन को अपनाया है। इन राष्ट्रीय योजनाओं के साथ-साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल, ऊर्जा कुशलता बढ़ाने, संवहनीय पर्यावास, जल, हिमालय की पारिस्थितिकी को सहारा देने तथा जलवायु परिवर्तन के बारे में रणनीतिक जानकारी को प्रोत्साहित करने के बारे में अनेक विशेष कार्यक्रम भी अपनाए गए हैं।

14 जलीय जीवों की सुरक्षा
हम बेशक थल पर रहते हैं लेकिन महासागरों के हम पर किए जाने वाले परोपकारों का कर्ज चुकता करने के बारे में सोचना भी हमारे लिए कठिन है। महासागरों पर हमारी निर्भरता कल्पना से परे है। इंसान की पैदा की हुई करीब 30% कार्बन डाइऑक्साइड महासागर ग्रहण कर लेते हैं यानी विश्व की गर्म होती जलवायु का असर कम करते हैं। वे दुनिया में प्रोटीन के सबसे बड़े स्रोत भी हैं। हमारी वर्षा का जल, पेयजल, मौसम, जलवायु, तट रेखाएं, हमारा अधिकतर भोजन और जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसकी ऑक्सीजन भी अंतत: सागर से आती है।

पृथ्वी की सतह के तीन चौथाई हिस्से में महासागर हैं जिनमें पृथ्वी का 97% जल है और जो परिमाण के हिसाब से पृथ्वी पर जीने की 99% जगह घेरे हुए हैं। 3 अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए समुद्री और तटीय जैव विविधता पर निर्भर हैं। बिना निगरानी के मछली की पकड़ के कारण मछली की बहुत सी प्रजातियां तेजी से गायब हो रही हैं और वैश्विक मछली पालन और उससे जुड़े रोजगार को बचाने तथा पुराने रूप में वापस लाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो रही है। दुनिया के लगभग 40% महासागर प्रदूषण, घटती मछलियों तथा तटीय पर्यावास के क्षय सहित इंसानी गतिविधियों से बुरी तरह प्रभावित हैं।

यदि हम भारत की बात करें तो भारत की एक-तिहाई से अधिक यानी 35% जनसंख्या उसकी विशाल तट रेखा पर रहती है और इसमें से करीब आधे तटीय क्षेत्रों का कटाव हो रहा है। समुद्र तट पर स्थित भारत के 3651 गांवों में 10 लाख से अधिक लोग समुद्र से मछली पकड़ने के रोजगार में लगे हैं। भारत दुनिया में मछली का सबसे बड़ा उत्पादक और अंतर-देशीय मछली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत सरकार की सागर माला परियोजना नीली क्रांति भी कहलाती है। इसके अंतर्गत भारत बंदरगाहों और तटवर्ती क्षेत्रों की हालत सुधारने का काम चल रहा है। समुद्री पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए सरकार ने जलीय पारिस्थितिकी संरक्षण की राष्ट्रीय योजना शुरू की है। भारत तटीय और समुद्री जैव विविधता के संरक्षण पर प्रमुखता से ध्यान दे रहा है।

#2030 के भारत के जलीय जीवों की सुरक्षा लक्ष्य का उद्देश्य समुद्री मलबे और पोषक तत्वों के दूषण सहित जमीन पर होने वाली गतिविधियों के कारण हर तरह के समुद्री प्रदूषण की रोकथाम और उसमें उल्लेखनीय कमी करना, मछली की पकड़ और सीमा से अधिक मछली निकालने, अवैध, बिना बताए और बिना किसी नियमन के मछली पकड़ने पर रोक लगाना, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप तथा सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक सूचना के आधार पर कम से कम 10% तटीय और समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण करना तथा महासागरों के अम्लीकरण का प्रभाव कम से कम और दूर करना तथा इसके लिए सभी स्तरों पर वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाना शामिल है।

15 थलीय जीवों की सुरक्षा
धरती पर रहने वाले अरबों-खरबों प्राणियों में केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है जो हर रूप में अन्य से समर्थ, सक्षम, सबल और संपन्न है। जमीन पर मानव तथा अन्य प्राणियों के जीवन के संरक्षण के लिए न सिर्फ थलीय पारिस्थतिकियों का संरक्षण करना बल्कि उन्हें पुनर्जीवित करने तथा भविष्य के लिए उनके संवहनीय उपयोग को बढ़ावा देने हेतु सामूहिक कार्रवाई आवश्यक है। मानवीय गतिविधियों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वृक्षों का कटाव और मरुस्थलीकरण सतत् विकास में एक बड़ी चुनौती है और इसने गरीबी से संघर्ष में लाखों लोगों के जीवन एवं आजीविका पर असर डाला है।
एक प्रजाति के रूप में हमारा भविष्य हमारे सबसे महत्वपूर्ण पर्यावास-जमीन की हालत पर निर्भर करता है। हमारा भविष्य जमीन की पारिस्थतिकी की रक्षा से जुड़ा है फिर भी अब तक 8300 ज्ञात पशु नस्लों में से 8% लुप्त हो चुकी हैं और 22% खोने को हैं। 1.3 हैक्टेयर वन हर वर्ष गायब हो रहे हैं, जबकि खुश्क भूमि के निरंतर विनाश के कारण 3.6 अरब हैक्टेयर इलाका मरुस्थल हो गया है। इस समय 2.6 अरब लोग सीधे तौर पर खेती पर निर्भर हैं, लेकिन 92% खेती की जमीन मिट्टी के विनाश से सामान्य और गंभीर रूप से प्रभावित है।

जमीन और वन सतत विकास के बुनियादी अंग हैं। पृथ्वी की सतह के 30% हिस्से पर वन हैं। ये वन खाद्य सुरक्षा देने के अलावा जलवायु परिवर्तन का सामना करने तथा जैव विविधता की रक्षा करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। जीव-जंतुओं, पशु, पौधों और कीटों की कुल संख्या का 80% से अधिक वनों में निवास करता है। इस समय 1.6 अरब लोग भी अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। इंसान की 80% से अधिक खुराक पौधों से आती है। चावल, मक्का और गेहूं 60% ऊर्जा देते हैं। इसके अलावा विकासशील देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहते 80% से अधिक लोग अपने बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के लिए पारंपरिक औषध वनस्पति पर निर्भर हैं।

यदि हम भारत की बात करें तो भारत में वनाच्छादित क्षेत्र अब 21% है और देश के कुल थलीय क्षेत्र का करीब 5% संरक्षित क्षेत्र है। दुनिया की 8% जैव विविधता भारत में है जिसमें अनेक प्रजातियां ऐसी हैं जो दुनिया में कहीं और नहीं मिलती हैं। #2030 के भारत के थलीय जीवों की सुरक्षा लक्ष्य में प्राकृतिक पर्यावास का विनाश रोकने, पशुओं की चोरी और तस्करी समाप्त करने तथा पारिस्थतिकी और जैव विविधता मूल्यों को स्थानीय नियोजन एवं विकास प्रक्रियाओं में शामिल करने के लिए तत्काल कार्रवाई करना सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही इस लक्ष्य में वृक्ष कटाव को रोकना, मरुस्थलीकरण रोकना, मरुस्थलीकरण से क्षतिग्रस्त भूमि सहित क्षतिग्रस्त जमीन और मिट्टी को फिर से उपयोग लायक बनाना तथा ऐसे विश्व की रचना करना जहाँ भूमि का क्षय न हो, शामिल किया गया है। भारत का राष्ट्रीय वृक्षारोपण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय समन्वित वन्य जीव पर्यावास ऐसे मूल प्रोजेक्ट्स हैं जिनका उद्देश्य जमीन की पारिस्थितिकी का संरक्षण करना है। इसके साथ ही सरकार द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट नाम की दो अलग-अलग योजनाएँ संचालित की गई हैं जिनका उद्देश्य देश के दो सबसे भव्य पशुओं का संरक्षण करना है।

16 शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाएँ
अहिंसा सभी धर्मों से बड़ा धर्म है, ऐसा माना जाता है। जी हाँ, मैंने कहा ऐसा माना जाता है, लेकिन क्या सच में हम इसे मानते हैं ? नहीं, हम इसे नहीं मानते हैं, यह कड़वा है पर सच है। आज न जाने कितने ही लोग किसी न किसी रूप में हिंसा के शिकार होते हैं। हिंसा दुनियाभर में देशों के विकास, वृद्धि, खुशहाली और अस्तित्व के लिए सबसे विनाशकारी चुनौती है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, शोषण, चोरी और कर वंचना आदि ऐसे कितने ही विषय हैं जो चिंताजनक हैं और किसी न किसी रूप में जनहानि तथा मानहानि को जन्म देते हैं। इंसान को इस जानलेवा बीमारी ने इस कदर जकड़ रखा है कि इनका जड़ से विनाश करना मानव कल्पना से परे है।
दुनियाभर में होने वाली कुल हत्याओं में से 43% में 10 से 29 वर्ष की आयु के युवा शामिल होते हैं। यदि हम गौर करें तो सहारा के दक्षिण अफ्रीकी देशों में 2010-2012 में मानव तस्करी के 70% शिकार बच्चे थे। गैर-जवाबदेह कानूनी और न्यायिक प्रणालियों की संस्थागत हिंसा और लोगों को उनके मानव अधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं से वंचित करना भी हिंसा और अन्याय के ही रूप हैं।
यदि हम भारत की बात करें तो भारत में न्यायपालिका पर विचाराधीन मुकदमों का बोझ गतवर्षों में कुछ हल्का हुआ है, जो 2014 में 41.5 लाख से घटकर 2015 में 38.5 लाख रह गया। हमारा देश सरकार के अनेक प्रयासों के बल पर न्यायपालिका को सशक्त करने को प्राथमिकता दे रहा है। इनमें जनशिकायत समाधान प्रणाली का प्रगति प्लेटफॉर्म और गाँवों में ग्राम न्यायालयों सहित न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास जैसे प्रयास शामिल हैं।

#2030 के भारत के इस लक्ष्य के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया गया है कि देश में शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाएँ स्थापित हों। इस लक्ष्य में बच्चों को यातना और उनके साथ हिंसा के सभी रूपों, दुराचार, शोषण और तस्करी को खत्म करना, सभी स्थानों पर हिंसा के सभी रूपों और सम्बद्ध मृत्यु दरों में उल्लेखनीय कमी करना, धन और हथियारों के अवैध प्रवाह में उल्लेखनीय कमी करना, चोरी हुई परिसम्पत्तियों को खोज निकालने और लौटाने की व्यवस्था सशक्त करना और हर प्रकार के संगठित अपराधों का सामना करना, भेदभाव-विहीन कानूनों और नीतियों को लागू और प्रोत्साहित करना, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के सभी रूपों का खात्मा करना, जन्म पंजीकरण सहित सबके लिए कानूनी पहचान देना, सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और पारदर्शी संस्थाओं को विकसित करना, सभी स्तरों पर माँग के अनुरूप, समावेशी, भागीदार और प्रतिनिधित्वपूर्ण निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं।



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