IPL में बुधवार को राजस्थान रॉयल्स की ओर से टॉम कोहलर-कैडमोर ने डेब्यू किया। वे डेब्यू मैच में अपने खेल से प्रभावित करने में तो ज्यादा सफल नहीं रहे, लेकिन उनकी गर्दन पर लगे गैजेट ने स्टेडियम में बैठे फैंस से लेकर टीवी पर दर्शकों तक सबको आकर्षित किया।
दरअसल, टॉम ने क्यू कॉलर नाम का डिवाइस पहन रखा था। क्यू कॉलर खिलाड़ियों को सिर पर लगने वाली चोट से बचाता है और उसके असर को कम करता है। आइए जानते हैं कि क्यू कॉलर क्या होता है? वो सब कुछ, जो आपके लिए जानना जरूरी है...
क्यू कॉलर डिवाइस क्या है। कैसे काम करती है?
यह गर्दन में पहनने वाली डिवाइस है। यह गर्दन में एक निश्चित नस को दबाती है। इससे सिर में खून का फ्लो बढ़ता है और वो खून सिर में ही बना रहता है। इसमें खून एक प्रकार की एक्स्ट्रा प्रोटेक्टिव लेयर का काम करता है, जिससे सिर पर लगने वाली चोट का असर कम होता है।
क्यू कॉलर का आइडिया कैसे आया?
अमेरिका के डॉ. डेविड स्मिथ (इंटरनल मेडिसिन) को कठफोड़वा (वुडपेकर) को देखकर क्यू कॉलर का आइडिया आया। वुडपेकर जब अपनी चोंच से पेड़ के तने में छेद करता है, तब उसकी गर्दन प्राकृतिक रूप से सिकुड़ जाती है। इससे पूरे खून का फ्लो गर्दन में रुक जाता है। इससे वुडपेकर की चोंच पर लग रहा झटका सिर पर नहीं पहुंचता। इसे देखकर ही डॉक्टर स्मिथ ने क्यू कॉलर को डिजाइन किया।
क्यू कॉलर खेल के अन्य हेलमेट से कैसे अलग है?
किसी अन्य खेल के परंपरागत हेलमेट सिर को चोट से बचाने पर काम करते हैं। वहीं, क्यू कॉलर डिवाइस सिर पर लगने वाली चोट के असर को कम करने पर केंद्रित होता है।
डॉक्टर्स का क्यू कॉलर को लेकर क्या कहना है?
मनोचिकित्सा की प्रो. मार्था शेनटन और फिजियोलॉजी के प्रो. जेम्स स्मोलिगा का मानना है कि क्यू कॉलर की रिसर्च पूरी तरह से दावों पर खरी नहीं उतरती। जेम्स मानते हैं कि क्यू कॉलर के अप्रमाणित दावों की वजह से खिलाड़ी सिर को बचाने की जगह ज्यादा रिस्क लेकर खेलेंगे, जिससे कन्कशन (सिर की इंजरी) के खतरे बढ़ सकते हैं। डॉक्टर्स के विरोध के बावजूद अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने डिवाइस को मेडिकल डिवाइस के रूप में मान्यता दी है।
किन खेलों में क्यू कॉलर का इस्तेमाल हो रहा है?
दुनियाभर में रग्बी, अमेरिकन फुटबॉल (NFL), वहां के कॉलेज स्पोर्ट्स और यूरोपियन फुटबॉल में क्यू कॉलर का इस्तेमाल बहुत हो रहा है। क्यू कॉलर को बनाने वाली कंपनी का दावा है कि इससे न्यूरॉन्स और एक्सॉन को पहुंचने वाला खतरा 83% कम हो जाता है।