भारत मे मनाए जाने वाले हर पर्व की अपनी महत्ता और प्रसांगिकता है, यहां हर रिश्ते और हर प्रकृति के पर्व है। अन्य देशों में जहां रिश्तों को प्रतीक मानकर दिन मनाए जाते हैं वहीं हमारे देश में बिना रिश्तों के पर्वों की कल्पना ही नहीं कि जा सकती। भारत को पर्वों का देश इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर्व और रिश्ते एक दूसरे के पर्याय ही हैं, गर्व करने वाली बात ये है कि ये परंपराएं सदियों से चली आ रहीं हैं। पर्वों की इस श्रृंखला में भाई बहन के पवित्र रिश्ते के प्रतीक त्यौहार भी साल में तीन बार मनाए जाते हैं, जो सनातन संस्कृति और भाई बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाते हैं। वर्ष में एक बार आने वाला रक्षाबंधन और दो बार आने वाले भाई दूज को देशभर में उत्साह से मनाया जाता है, ये पर्व भारत में भाई बहन के रिश्ते ऐसा शिखर प्रदान करते हैं जहां कोई अन्य मनाए जाने वाला दिन आसपास भी नहीं फटकता। भाई दूज एक ऐसा पर्व है जिसमे बहने अपने भाई को तिलक लगाकर उसके दीर्घायु और मंगलमय जीवन की कामना करतीं हैं, तो वहीं भाई अपनी बहनों के सौभाग्य की रक्षा करने का वचन देते हैं। दरअसल यही सनातन संस्कृति की असल सुंदरता है जहां त्योहारों के बहाने वर्ष में कई बार अपनों से मिलने से लोगों में अपनत्व का भाव जागृत रहता है, और यही अपनापन एक सहज नदी की भांति बहता हुआ वर्तमान पुरानी पीढ़ी से वर्तमान तक और वर्तमान से नई पौध को सींचता है। हालांकि आजकल पर्वो में वो उत्साह देखने को नहीं मिलता जिसके किस्से हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं, किन्तु रिश्तों और पर्वों के प्रति हमारी जिम्मेदारी को हमे समझना ही होगा। अब जीवन की रफ्तार बहुत तेज़ है चीजें भी तेजी से बदलतीं हैं, फिर भी हमारा दायित्व है कि हम रिश्तों और त्योहारों को एक दूसरे का पर्याय बनाये रखें। मेरे मत से ये सिर्फ तभी संभव है जब हम त्योहारों को पूरे जोश के मनाएं और अपने बच्चों को भी हमारी समृद्ध संस्कृति के पर्वों को मनाने के लिए न सिर्फ प्रेरित करें और उन्हें अपने त्योहारों का महत्व जरूर समझाएं...।