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चैत्र नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि- 1

Updated on 12-04-2021 11:51 PM
प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक चैत्र नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस वर्ष 2021 में चैत्र नवरात्रों का आरंभ 13 अप्रैल (मंगलवार) से होगा और 21 अप्रैल तक व्रत उपासना का पर्व मनाया जाएगा तथा 22 अप्रैल दशमी के दिन श्रीदुर्गा विसर्जन किया जाएगा। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को 13 अप्रैल (मंगलवार) के दिन की जाएगी। इस बार नवरात्रि महासंयोग लेकर आ रही है। इस बार नवरात्रों में शुभ योग बन रहा है। नवरात्र में सर्वार्थसिद्धि और अमृत सिद्धि योग एक साथ बन रहे हैं। इस बार मां का आगमन (अश्व) घोड़े पर हो रहा है। देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं। आगमन वाहन - "शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥" देवीभाग्वत पुराण के इस श्लोक में बताया गया है कि माता का वाहन क्या होगा यह दिन के अनुसार तय होता है। अगर नवरात्र का आरंभ सोमवार या रविवार को हो रहा है तो माता का आगमन हाथी पर होगा। शनिवार और मंगलवार को माता का आगमन होने पर उनका वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार और शुक्रवार को आगमन होने पर माता डोली में आती हैं जबकि बुधवार को नवरात्र का आरंभ होने पर माता का वाहन नाव होता है।
प्रस्थान वाहन - देवीभाग्वत पुराण में बताया गया है कि  "शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा, शनि भौमदिने यदि सा विजया  चरणायुध यानि करी विकला ।  बुध शुक्र दिने यदि सा विजया  गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥ इस श्लोक से स्पष्ट है कि इस वर्ष माता नर वाहन पर जा रही हैं। साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये अत्यंत साधरण लौकिन मंत्रो से पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।
घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त - नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
नवरात्री की पहली तिथि पर सभी भक्त अपने घर के मंदिर में कलश स्थापना करते हैं। इस कलश स्थापना की भी अपनी एक विधि, एक मुहूर्त होता है। परंतु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा स्वयं सिद्ध साढ़े तीन मुहूर्त में से प्रथम है इसलिये इस दिन किसी भी प्रकार के मुहूर्त देखने की आवश्यकता नही होती फिर भी संभव हो तो इस वर्ष घट स्थापना 06 बजकर 01 मिनट से लेकर 07 बजकर 15 मिनट तक कर लें। इसके पश्चात अभिजित मुहुर्त में 11:55 से 12:45 तक स्थापना की जा सकती है। इसके पश्चात केवल राहुकाल के समय 15:30 से 17:06 तक के समय को छोड़कर अपनी सुविधानुसार दिन में कभी भी घटस्थापना की जा सकती है।
नवरात्र तिथि -  शारदीय नवरात्रि 2021 की महत्वपूर्ण तारीखें
१.  13 अप्रैल मंगलवार - प्रतिपदा - पहला दिन, घट या कलश स्थापना। इस दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होगी। २.  14 अप्रैल बुधवार- द्वितीया - दूसरा दिन। इस दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। ३. 15 अप्रैल गुरुवार- तृतीया - तीसरा दिन। इस दिन दुर्गा जी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाएगी। ४. 16 अप्रैल शुक्रवार- चतुर्थी - चौथा दिन। माता दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा-अर्चना होगी। ५. 17 अप्रैल शनिवार- पंचमी - पांचवां दिन- इस दिन मां भगवती के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। ६. 18 अप्रैल रविवार- षष्ठी- छठा दिन- इस दिन माता दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है। ७. 19 अप्रैल सोमवार- सप्तमी- सातवां दिन- इस दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की आराधना की जाती है। ८. 20 अप्रैल मंगलवार- अष्टमी - आठवां दिन- दुर्गा अष्टमी, नवमी पूजन। इस दिन माता दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। ९. 21 अप्रैल बुधवार- नवमी - नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण।
१०. 22 अप्रैल गुरुवार- दशमी के दिन जिन लोगों ने माता दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना की होगी, वे विधि विधान से माता का विसर्जन करेंगे। 
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री 
👉 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है। 👉 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो। 👉 पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है ) 👉 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है ) 👉 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल 👉 नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल 👉 रोली , मौली 👉 इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है ) 👉 पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती ) 👉 पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है ) 👉 कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का ) 👉 ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल 👉 नारियल, लाल कपडा, फूल माला ,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती I दुर्गा पूजन सामग्री - पंचमेवा पंच​मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला। भगवती मंडल स्थापना विधि - जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी〰️गणेश जी का पुजन करें। भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें। मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें -  "ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥" इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें - ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-  ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-  चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।  दुर्गा पूजन हेतु संकल्प - पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य  ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2078, तमेऽब्दे राक्षस नाम संवत्सरे उत्तरायने बसंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे चैत्र मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ मंगल वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।  गणपति पूजन विधि - किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है. हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें। गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर  आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।  तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें। हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि, अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि, आचमनीय-स्नानीयं (आचमन और स्नान)  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि वस्त्र - वस्त्र लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि, जनेऊ - यज्ञोपवीत-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि, आचमन - पुनराचमनीयम्, ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः  चंदन - रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, श्रीखंड चंदन - इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं - "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं. पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र- शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च,आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें- ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पया​मि, अब दक्षिणा चढ़ाए. ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य द​क्षिणां समर्पया​मि,अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अ​र्पित करें,  ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें। 

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