चैत्र नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि -2
Updated on
13-04-2021 12:07 AM
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि - सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें। कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें। नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “। आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। दुर्गा पूजन विधि - सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें- सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥ आवाहन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। र्गादेवीमावाहयामि॥ आसन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥ अर्घ्य👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥ आचमन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पयामि॥स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पयामि॥ स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े। पंचामृत स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥ पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े। गन्धोदक-स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि॥ गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
शुद्धोदक स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥ आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े। वस्त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि ॥ वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मा ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछबड़े सकें।
आरती👉 माँ की आरती करें
आरती के नियम
प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से। आरती की बत्तियाँ 1, 5, 7 अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।