हमारा जीवन चक्र ग्रहों की गति और चाल पर निर्भर करता है. ज्योतिष शास्त्र इन्हीं ग्रहों के माध्यम से जीवन की स्थितियों का आंकलन करता है और भविष्य फल बताता है. ज्योतिष गणना में योग का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. कुछ योग शुभ स्थिति बताते हैं तो कुछ अशुभता का संकेत देता है. ग्रहण योग भी अशुभ योग की श्रेणी में आता है. ग्रहण योग को अशुभ योगों में बहुत ही खतरनाक और कष्टदायक माना गया है. ज्योतिष की दृष्टि में यह योग काल सर्प योग से भी खतरनाक और अशुभ फलदायी है (कालसर्प) योग में जीवन में उतार चढ़ाव दोनों आते हैं परंतु यह ऐसा योग है जिसमें सब कुछ बुरा ही होता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में हमेशा निराश और हताश रहता है.
ग्रहण योग का प्रभाव जैसे सूर्य को ग्रहण लग जाने पर अंधकार फैल जाता है और चन्द्रमा को ग्रहण लगने पर चांदनी खो जाती है उसी प्रकार जीवन में बनता हुआ हुआ काम अचानक रूक जाता हो तो इसे ग्रहण योग का प्रभाव समझ सकते हैं. हम में से बहुत से लोगों ने महसूस किया होगा कि उनका कोई महत्वपूर्ण काम जब पूरा होने वाला होता है तो बीच में कोई बाधा आ जाती है और काम बनते बनते रह जाता है. इस स्थिति के आने पर अक्सर हम परेशान होते हैं अथवा किसी की नज़र लग गयी है ऐसा सोचते हैं. ज्योतिष शास्त्र की नज़र में यह अशुभ ग्रहण योग का प्रभाव है. ग्रहण योग निर्माण ग्रहण योग उस स्थिति में बनता है जबकि कुण्डली के द्वादश भावों में से किसी भाव में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु व केतु में से कोई एक साथ बैठा हो या फिर सूर्य या चन्द्रमा के घर में राहु केतु में से कोई मौजूद हो. अगर इनमें से किसी प्रकार की स्थिति कुण्डली में बन रही है तो इसे ग्रहण योग कहेंगे. ग्रहण योग जिस भाव में लगता है उस भाव से सम्बन्धित विषय में यह अशुभ प्रभाव डालता है. उदाहरण के तौर पर देखें तो द्वितीय भाव धन का स्थान कहलता है. इस भाव में ग्रहण योग लगने से आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. व्यक्ति को धन की हमेंशा कमी महसूस होती है. इनके पास धन आता भी है तो ठहरता नहीं है. इन्हें अगर धन मिलने की संभावना बनती है तो अचानक स्थिति बदल जाती है और धन संबंधित मामलों बहुत रुकावटें उत्पन्न होने लगती है