महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित यह दोहा हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो दान देने में विश्वास तो रखते हैं, लेकिन यह सोचते हैं कि उनके पास से धन या कोई वस्तु कम न हो जाए।
दान करने से धन कम होता है, इस विचार को गलत सिद्ध करते हुए कविवर तुलसीदास जी ने हमें यही बताया है कि नदी से पक्षी के पानी पी लेने से कभी-भी नदी का पानी कम नहीं हो जाता। यहाँ तक कि सिर्फ पक्षी ही नहीं, बल्कि अनगिनत जानवर एवं इंसान भी प्रतिदिन नदी से पानी लेते हैं, लेकिन क्या कभी नदी का पानी कम होता है? नहीं न! ठीक इसी प्रकार दान देने से कभी-भी धन नहीं घटता। दान करना हर एक धर्म में सबसे बड़ा धर्म है, जिससे व्यक्ति को ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
पुराणों में वर्णन होने और कई महात्माओं के बताने के बावजूद दान की परिभाषा को इंसान कभी समझ ही नहीं पाया। इंसान की मानसिकता की वजह से दान जैसा महान शब्द अहंकार को जन्म देता है और दाता स्वयं को सबसे महान समझने लगता है। यह इंसान की मूर्खता से अधिक कुछ भी नहीं है, जो आपके दान के उद्देश्य और अर्थ दोनों को ही गलत दिशा में मोड़ देता है। फिर दान, दान नहीं रह जाता, महज़ सहायता का विषय जान पड़ता है।
महाभारत काल से हम सुनते चले आ रहे हैं कि कर्ण सबसे बड़े दानवीर थे, क्योंकि कर्ण प्रतिदिन दान करते थे। जो भी उनके द्वार पर आता था, वे कभी-भी उसे खाली हाथ नहीं भेजते थे, फिर चाहे वह उनसे कुछ भी माँग ले। वे हमेशा दान देने के लिए तत्पर रहते थे, इसलिए महारथी कर्ण को दानवीर कहा गया।
लेकिन लोग इसका असली अर्थ ही नहीं समझते हैं। वे समझते हैं कि दान सिर्फ धन का दान करने तक ही सीमित है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है, दान कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे- अन्नदान: भूखे को भोजन कराना; ज्ञानदान: जरूरतमंद को शिक्षा देना; वस्त्रदान: जरुरतमंद को कपड़े देना; किसी व्यक्ति की बीमारी में और मानव कल्याण की भावना से रक्तदान, अंगदान या देहदान करना; अभयदान: निरीह प्राणियों की रक्षा करना; और क्षमादान: यह सबसे बड़ा दान माना गया है। अपनी गलतियों को मान लेना और दूसरों को उनकी गलतियों के लिए क्षमा कर देना। और अंत में जरूरत पड़ने पर किसी को अपना समय देना भी दान की ही श्रेणी में आता है।
इसी विषय पर मुझे हाल ही की एक बात याद आ रही है। अभी कुछ ही समय पहले मैं मथुरा वृन्दावन गया था। वहाँ मैंने एक वृद्ध माताजी को देखा। अगल-बगल वालों से पूछने पर पता चला कि वे पिछले 30 वर्षों से श्री बाँके बिहारी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के जूते-चप्पलों की रखवाली करती हैं। उनका नाम यशोदा है और उन्होंने श्रद्धालुओं के जूते-चप्पलों की रखवाली करके पैसे इकट्ठा किए। इन पैसों से उन्होंने एक गौशाला का निर्माण करवाया। यशोदा माता ने न सिर्फ समयदान देकर परमार्थ का कार्य किया, बल्कि उससे मिले पैसों से धर्म का भी कार्य किया।
हमने कई जगह पढ़ा है कि आप जो भी दोगे, वही आपके पास लौटकर आएगा। तो क्यों न किसी के काम आया जाए? फिर यह भी कहीं न कहीं सुना भी होगा कि ईश्वर देता उसे ही है, जो बाँटना जानता है। तो क्यों न इसका अनुभव भी किया जाए? जिस दिन आप बाँटना सीख जाएँगे, उस दिन आप सही मायने में कभी खाली नहीं होंगे। यह इस जगत का नियम है। जो तुम देते हो, वही लौट आता है- घृणा तो घृणा, प्रेम तो प्रेम, अपमान तो अपमान और सम्मान तो सम्मान। तुम्हें हजार गुना होकर वही मिलता है, जो तुम देते हो।
दान देने से कभी-भी कुछ घटता नहीं है, बल्कि बढ़ता ही है। हम मानते हैं कि जो भी हमारे पास हो, उसे बाँटने की आदत यदि हम कच्ची उम्र से ही बच्चों में विकसित कर दें, तो बड़े होकर किसी भी इंसान को किसी के काम आने या मदद करने के लिए अलग से कोई प्रयास नहीं करना पड़ेगा।
पाकिस्तान को हमेशा गद्दारी करने पर भी भारत ने बड़ा हृदय रखकर क्षमादान परंतु पाकिस्तान हमेशा विश्वास घाट पर आतंकवादी षड्यंत्र किए पाकिस्तान ने हमारी सहनशक्ति के अंतिम पड़ाव पर…
12 सबसे बेहतरीन विरासतें..1. बुद्धिमत्ता (Wisdom)बुद्धिमत्ता स्कूलों में नहीं सिखाई जाती, यह जीवन के अनुभवों से प्राप्त होती है। माता-पिता ही सबसे अच्छे शिक्षक होते हैं। अपने बच्चों को मार्गदर्शन…
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल में विधानसभाअों द्वारा पारित विधेयको को सम्बन्धित राज्यपालों द्वारा अनंत काल तक रोक कर ‘पाॅकेट वीटो’ करने की प्रवृत्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय…
रायपुर I छत्तीसगढ़ ने वित्तीय वर्ष 2025 में औद्योगिक निवेश के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। प्रोजेक्ट टूडे सर्वे द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 218 नई…
भारतीय संविधान के शिल्पी डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन से जुड़ा एक रोचक प्रसंग याद आता है जब एक बार विदेशी पत्रकारों का प्रतिनिधि मंडल भारत भ्रमण पर आया। यह प्रतिनिधि…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों यानी इंडिया ब्लाक पर हमला करते हुए कहा है कि विपक्ष का एकमेव लक्ष्य परिवार का साथ और परिवार का विकास है। मध्यप्रदेश के…
महात्मा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था। ज्योतिबा फुले बचपन से ही सामाजिक समदर्शी तथा होनहार मेधावी छात्र थे, आर्थिक कठिनाइयों के कारण …
मप्र के छतरपुर जिले के गढ़ा ग्राम स्थित बागेश्वर धाम के स्वयंभू पीठाधीश पं.धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने अपने इलाके में ‘पहला हिंदू ग्राम’ बसाने का ऐलान कर नई बहस को…
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दावा किया है कि बीते वित्तीय वर्ष में उनकी सरकार ने आठ साल पुरानी देनदारियां चुकाई हैं। उनका कहना है कि यह सब…