ऐसे में धीरज साहू 21 वीं सदी में दो नंबर की रकम के हिमालय को घर में रखने वाले रोकड़ा रोही हैं। दिलचस्प बात यह है कि लोगों की रूचि धीरज ने यह पैसा कैसे कमाया और इस कमाई को टैक्स बचाने की खातिर कैसे बचाया, से भी ज्यादा इस बात में है कि इतनी बड़ी भारी रकम उन्होंने सालों तक अल्मारियों में दबा कर क्यों रखी?
बीते पांच दिनों से देश में दो जिज्ञासाएं शिद्दत से तैर रही हैं। एक में उत्सुकता ज्यादा है और दूसरे में हैरानी। तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ पर ‘एक जिज्ञासा और एक शख्स भारी पड़ा है, वो है धीरज साहू। धीरज साहू राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य हैं और पिछले साल उन्होने एक ट्वीट कर जिज्ञासा जताई थी कि लोगों के पास इतने करोड़ रुपये कहां से आते हैं?
इस सवाल के साथ उन्होंने यह जवाब भी दिया था कि देश में भ्रष्टाचार कांग्रेस ही समाप्त कर सकती है। ये बात अलग है कि ताजा छापों के पहले ओवर में 2 करोड़ रुपये की काली कमाई मिलने के बाद धीरज साहू चुप्पी साध गए हैं। हालांकि, उनके अपने सवाल का जवाब भी उन्होंने खुद दे दिया है। यही आत्म ज्ञान है।
इनकम टैक्स और ईडी आदि के छापो में करोड़ो रू. नकद मिलने की खबर अब ज्यादा नहीं चौंकाती, क्योंकि ज्यादातर यह पैसा, नेताओं, कारोबारियों, अफसरों, मुलाजिमों या और दूसरे धंधों में लिप्त लोगों के यहां से बरामद होता है। लिहाजा ‘लखपति’ तो छोडि़ए ‘करोड़पति’ शब्द भी अब बेमानी हो चुका है। क्योंकि दो नंबर का पैसा अब अरबों में मिलने लगा है। इतना कि शहर की कई बैंकों में रोजाना की नकदी से भी ज्यादा। कई एटीएमों में डेली भरी जाने वाली रकम से भी अधिक।
ऐसे में धीरज साहू 21 वीं सदी में दो नंबर की रकम के हिमालय को घर में रखने वाले रोकड़ा रोही हैं। दिलचस्प बात यह है कि लोगों की रूचि धीरज ने यह पैसा कैसे कमाया और इस कमाई को टैक्स बचाने की खातिर कैसे बचाया, से भी ज्यादा इस बात में है कि इतनी बड़ी भारी रकम उन्होंने सालों तक अल्मारियों में दबा कर क्यों रखी? इसका मकसद क्या था? करोड़ों रूपए के नोट नमी खा जाएं तो किसी काम के नहीं रहते, क्या धीरज को यह पता नहीं होगा? तो क्या उनके लिए नोटों के यह ढेर महज कूड़ा रहे होंगे? अगर ऐसा भी था तो इसके पीछे वजह क्या रही होगी? अवैध लेन देन से अरबों कमाकर भी उसके प्रति यह इतना ‘वैराग्य भाव’ क्यों कर?
धीरज साहू शराब कारोबारी हैं और शराब के धंधे में जितनी एक नंबर की शराब होती है, उतना ही दो नंबर का पानी भी होता है। कहा जाता है कि उनका परिवार आजादी के आंदोलन के समय से कांग्रेस और स्वतंत्रता सेनानियो से जुड़ा हुआ है। इससे लगता है कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के नैतिक मूल्यों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। बताते हैं कि शराब की बोतलों से पैसे उलीचकर पहले आजादी की लड़ाई में लगाया और बाद में नियम कानूनों से आजादी की चाहत में अपने गोदामों में भरा।
वैसे भी आजकल लक्ष्मी का वाहन आजकल उल्लू के बजाए सियासत हो गया है। सियासत में कदम रखते ही तमाम पाप साफ और माफ हो जाते हैं। धीरज साहू ने ओडिशा में वही किया। कहते हैं कांग्रेस ने उन्हें दो बार लोकसभा का टिकट दिया था। लेकिन धीरज दोनों बार हारे। शायद इस काम में लक्ष्मी उनके काम नहीं आई। बाद में इसी नकद नारायण के भरोसे उन्होंने कांग्रेस से राज्यसभा का टिकट लिया। धीरज का कार्यकाल अगले साल खत्म होने वाला है। उसके पहले ही ये चोट हो गई। वरना धीरज अगली टर्म का टिकट भी ले लेते।
धीरज साहू ने ये पैसा कैसे कमाया, इस तरह अल्मारियों में छुपाकर क्यों रखा? क्यों नहीं इस राशि पर टैक्स देकर उसे एक नंबर में कन्वर्ट करने की कोशिश की? क्यों उन्होंने यह ट्रक भर रकम गरीबों को बांटकर या मंदिरों में सोने का पत्रा आदि चढ़वाकर दानवीर बनने की कोशिश नहीं की, क्या वे इतनी रकम अपनी अल्मारियों में सजाकर अरबों की नकदी की सार्वजनिक प्रदर्शनी लगाना चाहते थे, इन तमाम सवालों के जवाब अभी मिलना है। लेकिन टीवी के माध्यम से लाखों लोग जो देख रहे हैं, वह सचमुच आंखे चुंधियाने वाला और दिमाग को चकरा देने वाला है। यह तो सुना था कि मानसिक रोगी कई बार मृत देह को जिंदा मानकर अपने घरों में रखे रहते हैं, लेकिन धीरज ने चलतू नोट इतनी बड़ी तादाद में डंप कर पटके हुए थे कि मानों कबाड़खाने में करीने से रखी रद्दी हो।
कारूं के अकूत खजाने की तरह धीरज साहू के घर से रोज मिल रहे करोड़ों के कर्रे नोट, उन्हें गिनती करने वाली मशीनों का दम तोड़ना, मशीने परेट कर उन नोटों के बंडल बनाने वाले पचासों हाथों का थकना, गिने हुए नोटों को भरने के लिए लाए गए बोरों का टोटा पड़ जाना, जिस बैंक में इन नोटों को रखा गया है, वहां के कर्मचारियो की आंखें भी इतने नोट देखकर फटी की फटी रह जाना और वो करोड़ों जनता जिनके लिए जेब में पांच सौ का नोट भी भी बड़ी अमानत की तरह होता है, का इतने रूपए एक साथ देखकर हतप्रभ रह जाना सब कुछ परीकथा सा है। ऐसी परी कथा जो अपने आप में एक बोध कथा भी है, जिसकी कल्पना हमारे पूर्वजों ने भी शायद नहीं की होगी।
Rs 351 crore seized from Congress leader Dhiraj Prasad Sahu house
आयकर की छापेमारी में मिले करोड़ों रुपये कैश। - फोटो : सोशल मीडिया
धन के देवता कुबेर भी स्वर्ग में सारा काम छोड़कर नोटों की इस मनोरंजक गिनती को देख रहे होंगे तो पाप पुण्य का हिसाब रखने वाले चित्रगुप्त के लिए यह केस अबूझ पहेली बन गया होगा कि इस रकम को और उसे अर्जित करने वाले आदम को किस खाते में डालें। उधर हर दिन बैंक के सूत्रों से यह खबर आती है कि बरामद नोटों की गिनती अभी खत्म नहीं हैं। फाइनल फिगर का सस्पेंस अभी बाकी है। अभी तक 350 करोड़ ही गिने जा सके हैं,अंतिम आंकड़ा कहां जाकर ठहरेगा, यह उतना ही उत्सुकता से भरा है, जब भाला फेंक की किसी भी वैश्विक स्पर्द्धा में कौतुहल रहता है कि नीरज चोपड़ा का भाला कितनी लंबी दूरी पर जा धंसेगा, लेकिन यहां नीरज और धीरज में बुनियादी अंतर है।
नीरज जिद और दृढ़ संकल्प को रिकॉर्ड में बदलने वाले खिलाड़ी हैं तो धीरज गैर कानूनी तरीके से अर्जित माल को दबाने का रिकॉर्ड बनाने वाले खिलाड़ी हैं। धीरज की इस बेहिसाब नकदी ने राजनेताओं के धनार्जन और धनाधारित राजनीति को नया मोड़ दे दिया है। कल तक भाजपा को भ्रष्टाचार पर घेरने और मप्र में 50 फीसदी कमीशन का आरोप लगाने वाली कांग्रेस इस धीरज पुराण पर चुप है।
जबकि, खुद भ्रष्टाचार का आरोप झेल रही भाजपा अब इस नकद नारायण कांड को उछाल कर कांग्रेस के मुखौटे के पीछे लगी कालिख को बेनकाब करने में जुटी है। इस बेहिसाबी रकम के विस्फोट के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर कांग्रेस से जवाब मांगा तो कांग्रेस तथा इंडिया गठबंधन की इस नकद चैप्टर के पन्ने खुलने के बाद बोलती ही बंद हो गई। क्योंकि यह पैसा आया कहां से, किस स्रोत से आया और इसे अब तक छुपाया क्यों गया, काली कमाई करने वाला यह शख्स इतनी आसानी से राज्य सभा का टिकट कैसे पा गया, ये तमाम सवाल खुद कांग्रेस को असहज करने वाले हैं।
यूं तो इस देश में भ्रष्टाचार और काली कमाई के हमाम में सभी नंगे हैं। राजनीति और भ्रष्टाचार दोनो सगी बहने हैं, यह भी जनता ने मान लिया है। लेकिन दो नंबर की कमाई भी किसी न किसी जरिए वापस अर्थ व्यवस्था में लौट आती है। धीरज का मामला शायद अपने ढंग का पहला है, जब काला पैसा मानो किसी आर्थिक ब्लैकहोल में जा रहा था।
अगर धीरज यह रकम गरीबों को नकदी भी बांट देते तो उन्हें दुआएं मिलतीं। लेकिन वह भी करना सही नहीं समझा गया। तो फिर इतनी बड़ी रकम का पहाड़ रचने जाने का असली मकसद क्या था? यह जानते हुए भी आखिरी सांस के साथ धन दौलत तो दूर इंसान के कपड़े भी साथ नहीं जाते, धीरज ये नोटों का संसार भीतर क्यों छुपा रखा था? कहते हैं धन और ज्ञान बांटने से बढ़ते हैं। लेकिन धीरज की रकम तो डंपिंग मोड में ही चौगुनी होती जा रही थी। इसे क्या कहा जाए।
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