जापान में शादी के बाद एक ही सरनेम रखने का कानून है। इस कानून के खिलाफ छह जोड़ों ने सरकार पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया है।
कानून के कारण जोड़ों को होने वाली परेशानी और असफलताओं के बारे में जागरूकता बढ़ने से बदलाव की मांग और ज्यादा तेज हो गई है।
इस कानून से खासकर महिलाओं के लिए करियर में आगे बढ़ने और व्यक्तिगत तौर पर मुश्किलें बढ़ रही हैं।
महिलाओं का परेशानियां ज्यादा बढ़ीं
जापान में यह कानून पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए अपनाया गया था। इस कारण शादी के बाद जो महिलाएं अपने उपनाम का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें अलग-अलग कानूनी और व्यावसायिक नामों के कारण कई मूलभूत सेवाओं, सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
तलाक होने पर यह कानून महिलाओं को बच्चों की कस्टडी मिलने में भी रुकावटें खड़ी करता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट दो बार इस कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर चुकी है। लेकिन इस बार कई बड़ी कंपनियों के ज्यादा से ज्यादा पुरुष मैनेजर भी कानून में बदलाव की जरूरत का समर्थन कर रहे हैं। वे ऐसी प्रणाली की मांग कर रहे हैं, जिसमें विवाहित जोड़ों के पास कोई अलग-अलग नाम रखने का विकल्प उपलब्ध रहे।
शादी के बाद एक उपनाम रखने की प्रणाली 1898 से चल रही
रूढ़िवादी रुख के लिए पहचाने जाने वाला जापान के शक्तिशाली बिजनेस लॉबी समूह कीडैनरेन ने भी अलग-अलग उपनाम प्रणाली लागू करने के लिए समर्थन व्यक्त किया है। कीडैनरेन ने इस मुद्दे पर सरकार को एक सिफारिश पत्र सौंपने की योजना भी बनाई है।
जापान में शादी के बाद एक उपनाम रखने की प्रणाली 1898 से चल रही है। कानून में पत्नियों को अपने पतियों का उपनाम अपनाने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन वास्तव में, 95% से अधिक विवाहित महिलाएं ऐसा करती हैं।