भारत 2023 में तीसरा सबसे खराब हवा वाला देश रहा। स्विस ऑर्गेनाइजेश IQ एयर की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, बांग्लादेश दुनिया में सबसे खराब हवा वाला देश रहा। जबकि 134 देशों की इस सूचि में पाकिस्तान दूसरे नंबर पर रहा।
रिपोर्ट के मुताबिक, नई दिल्ली सबसे खराब हवा वाली राजधानी रही। वहीं बिहार का बेगूसराय दुनिया का सबसे प्रदूषित महानगर बन गया है, जबकि 2022 में इस लिस्ट में बेगूसराय का नाम भी नहीं था। 2022 में प्रदूषित हवा वाले देशों की सूचि में भारत आठवें स्थान पर था।
भारत में 96% लोग 7 गुना खराब हवा में सांस ले रहे
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 1.33 अरब यानी 96% लोग ऐसी हवा में रहते हैं, जिसमें PM 2.5 का स्तर WHO के एनुअल स्टैंडर्ड से 7 गुना ज्यादा है। वहीं देश के 66% शहरों में एनुअल PM 2.5 का स्तर 35 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा रहा।
रिपोर्ट में PM 2.5 कणों के आधार पर देशों, राजधानियों तथा शहरों की रैंकिंग की गई है। यह एक तरह का पार्टिकुलेट मैटर होता है, जिसका डायमीटर (व्यास) 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। यह बेहद छोटे कण होते हैं, जो हवा की गुणवत्ता को खराब करते हैं। भारत में पिछले साल PM 2.5 का औसत स्तर 1 क्यूबिक मीटर में 54.4 माइक्रोग्राम रहा। यह WHO के पैमाने से 10 गुना ज्यादा था।
प्रदूषित हवा से हर साल 70 लाख लोग जान गंवा रहे
WHO के मुताबिक, दुनिया में हर साल प्रदूषित हवा की वजह से 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है। वहीं मरने वाले हर 9 लोगों में से 1 की मौत खराब हवा के कारण हो रही है। IQ एयर ने बताया कि इस साल का डेटा 0,000 से ज्यादा वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों और रिसर्च संस्थानों, विश्वविद्यालयों और सरकारी एजेंसियों के डेटा को इकट्ठा करके जारी किया किया गया है।
राजधानी दिल्ली में पिछले साल PM 2.5 का स्तर 1 क्यूबिक मीटर में 92.7 माइक्रोग्राम रहा। जबकि बेगूसराय में यह 118.9 माइक्रोग्राम रहा। दिल्ली को 2018 से लगातार चार बार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी का दर्जा दिया जा चुका है।
क्या होता है PM 2.5?
PM यानी पार्टिकुलेट मैटर जो हवा में मौजूद छोटे कण होते हैं। ये वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होते हैं, जो नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करके पता लगाया जा सकता है।
PM2.5 के संपर्क में आने से कई बीमारियां हो सकती हैं। इनमें अस्थमा, कैंसर, स्ट्रोक और फेफड़ों की बीमारी शामिल है। वहीं इन सूक्ष्म कणों के ऊंचे स्तर के संपर्क में आने से बच्चों की ग्रोथ पर बुरा असर पड़ता है। उनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है।