‘जीतू‘ की राह आसान करती कांग्रेस और कमलनाथ पर उठते सवाल
Updated on
03-01-2024 10:53 AM
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अन्दर पीढ़ी परिवर्तन के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की राह को कांग्रेस हाईकमान आसान कर रहा है और उन्हें पुरानी पीढ़ी को साधने और नई पीढ़ी को साथ रखने की दुविधा से उबार कर सीधे-सीधे परिवर्तन की राह पर चलने का संकेत दे रहा है, तो वहीं चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की भूमिका को लेकर कांग्रेस के भीतर से ही सवाल उठने लगे हैं और उन पर यह संदेह किया जा रहा है कि कहीं उनकी भाजपा से सांठगांठ तो नहीं हो गई थी। विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के पूर्व तक जो कांग्रेसी जय-जय कमलनाथ और कमलनाथ के नेतृत्व में ही पूर्ण विश्वास व्यक्त करते हुए उन्हें भावी मुख्यमंत्री मान कर चल रहे थे वहीं अब कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद कमलनाथ की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं और कांग्रेस के अन्दर से ही भाजपा के साथ सांठगांठ के आरोप लगना शुरु हो गये हैं।
हालांकि अभी आरोप दबी जुबान में लग रहे हैं, पर इस बीच जिस अंदाज से जीतू पटवारी की ताजपोशी हुई है उससे लगता है कि मध्यप्रदेश में अब कांग्रेस में पीढ़ी परिवर्तन का दौर शुरु होगा। जीतू पटवारी अपने पुराने युवकोचित ऊर्जा से लबरेज तेवर के चलते वरिष्ठों के बीच में अपनी राह कैसे बनायें उसमें उलझते हुए नजर आ रहे थे, उसे कांग्रेस आलाकमान ने एक झटके में ही सुलझा दिया है।
जीतू को मुकद्दर का सिकन्दर माना जा सकता है क्योंकि चुनाव हारने के बाद भी राहुल गांधी ने उन पूरा भरोसा जताते हुए उन्हें कांग्रेस के लिए उर्वरा जमीन तैयार करने का काम सौंप दिया। वास्तव में कमलनाथ के स्थान पर हाईकमान ने जीतू को इसलिए पसंद किया क्योंकि वह नये सिरे से प्रदेश में कांग्रेस की नई जमीन तैयार करने का काम उनसे कराना चाहती है ताकि लोकसभा चुनाव में उसके हालात कुछ बेहतर हो सकें। कांग्रेस की हार के कारण जानने के लिए जो बैठक बुलाई गई थी उसमें कुछ कांग्रेसजनों ने प्रदेश कांग्रेस के तौर-तरीकों और रणनीति पर सवाल उठाये जो अपरोक्ष रुप से कमलनाथ की घेराबंदी का प्रयास माना जा सकता है।
जीतू ने पद संभालने के साथ ही प्रदेश कांग्रेस और जिला कांग्रेस, ब्लाक कांग्रेस तक की टीमें बहाल रखने का कहकर खुद को उदार दिखाने और सबको साथ लेकर चलने का संकेत दिया था और शायद पटवारी परिवर्तन की हाईकमान की उस इच्छा से दूर हो रहे थे जो उनके जरिये साधने की कवायद की गई। पटवारी यह संकेत देना चाहते थे कि किसी पुराने आग्रह या दुराग्रह से वह नया काम नहीं करना चाहते। इससे कुछ क्षणों के लिए कमलनाथ की भारी-भरकम कार्यकारिणी के लोगों ने राहत महसूस की थी लेकिन वह ज्यादा समय तक नहीं चली। साढ़े पांच साल का मप्र कांग्रेस का सफर धीरे-धीरे जो कारपोरेट कल्चर में तब्दील हो गया था, अब वह ‘‘मैं नहीं हम‘‘ तक पहुंच गया है। यह ‘मैं नहीं हम‘ का मंत्र प्रदेश कांग्रेस के नये नवेले प्रभारी जीतेंद्र सिंह ने दिया है। जीतेन्द्र सिंह के आने पर जो बैठक हुई उसका नजारा भी बदला हुआ था और वह फिर से मंच और कुर्सियों से अलग हटकर गाव-तकियों व पारंपरिक तौर-तरीकों तक वापस पहुंच गया। मंच और कुर्सियों की जगह यह बैठक पुराने अंदाज में हुई।
एक जमाना था जब मध्यप्रदेश कांग्रेस की बैठकें इसी अंदाज में होती थीं। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस के अंदर कारपोरेट कल्चर बढ़ता गया और पुरानी पद्यति गायब हो गई। कांग्रेस के गुटों और नेताओं से कटे लेकिन कांग्रेस से हमेशा जुड़े रहे नेता दबी जुबान से कहने लगे हैं कि कमलनाथ के कार्यकाल में एकतरफा संवाद की स्थिति थी और पूरी टीम एक-दूसरे के प्रति संदेह प्रकट करती थी। हर पदाधिकारी अपने दूसरे समकक्ष के प्रति सशंकित रहता था और प्रदेश कांग्रेस कमेटी में अबोला जैसा माहौल हो गया था। फिलहाल तो जीतू पटवारी का दूरगामी नजरिया क्या होगा इस पर ही उत्सुकतापूर्ण नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि उन्हें कांग्रेस की करारी हार की गहन समीक्षा करना है और बागियों तथा भीतरघातियों की जो शिकायतें हैं उनका निराकरण करना है। हारे हुए और बमुश्किल किसी तरह जीते उम्मीदवार भी बहुत-कुछ कहना चाहते हैं, तथा इसके बीच से ही प्रदेश में कांग्रेस को पूरे पांच साल का सफर चौकन्ना रहकर खुली हुई सतर्क निगाह से तय करना है। फिलहाल तो दूर-दूर तक उसके सामने रात का घुप अंधेरा है। लोकसभा का चुनाव तो एक महज पड़ाव की तरह होगा, क्योंकि विधानसभा चुनाव में जो कांगेस की हालत हो गई है उससे वह उबरती है या नहीं यह देखने वाली बात होगी। एक पूर्व पदाधिकारी की यह टिप्पणी जो उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में की थी कि ‘नया घोड़ा नया दाम‘, इस पर दूसरे नेता ने कहा कि ‘घोड़ा बादाम खाई पीछे देखे मार खाई‘ यानी अब बिना पीछे देखे जीतू को पूरी मुस्तैदी से आगे बढ़ना है और कांग्रेस को आगे बढ़ाना है।
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