मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि वनों के प्रबंधन में अब औपनिवेशिक (अंग्रेजों के जमाने) सोच से नहीं चलेगी, इससे मुक्त होकर हमें प्राचीन अरंण्यक संस्कृति का सम्मान भी करना होगा। वन, आजीविका से संबद्ध विषय भी है, जनजातीय क्षेत्र में अपार वन संपदा है, हमें वन प्रबंधन में ध्यान रखना होगा कि जनजातीय वर्ग के हित प्रभावित न हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विरासत से विकास और प्रकृति को जोड़ने का रास्ता दिखाया है। हमें प्रगति और प्रकृति में सामंजस्य बनाकर काम करने की जरूरत है।
शुक्रवार को वन संरक्षण और जलवायु अनुकूल आजीविका पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में सीएम ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि मप्र में जहरीले सांपों की संख्या बढ़ रही है, इसका परिणाम है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में लोगों की सर्पदंश से मौत होती है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए किंग कोबरा (नाग) उसी तरह जंगल में होना जरूरी है, जैसे टाइगर।
कोबरा सांपों को खाता है। सीएम ने कहा कि सांपों की गिनती क्यों नहीं की जाती। मुख्य वक्ता विचारक गिरीश कुबेर ने कहा कि जनजातीय समुदायों के वनों को लेकर ज्ञान पर अध्ययन की पहल होना चाहिए। कार्यशाला के बाद सीएम मोहन यादव ने एनटीसीए के अफसरों के साथ बैठक में कहा कि सरकार प्रदेश में जल्द ही 10 किंग कोबरा लाने पर विचार कर रही है।
सबसे बड़ी समस्या सॉलिड वेस्ट और ई-वेस्ट: यादव केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन भूपेंद्र यादव ने प्रकृति के संरक्षण के लिए समुदाय आधारित योजनाएं तैयार करने की जरूरत बताई। यादव ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सॉलिड वेस्ट और ई-वेस्ट मैनेजमेंट सबसे बड़ी चुनौती हैं। हमें अपनी जीवनशैली में प्लास्टिक का उपयोग घटना बहुत जरूरी है। वनों में रहने वाले लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए समग्र चिंतन की जरूरत है।
वन घटने से पलायन कर रहे हैं आदिवासी : उइके केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने कहा कि मिश्रित वन घटने से आदिवासी पलायन को मजबूर हो रहे हैं। जंगल में सरकारी प्लांटेशन सिर्फ सागौन का होता है। जबकि आजीविका देने वाले पेड़ घट रहे हैं। आदिवासियों की आजीविका आधारित वनों के विकास पर समग्रता में ध्यान देने की जरूरत है। जनजातीय कार्यमंत्री कुंवर विजय शाह ने भी अपने अनुभव कार्यशाला में बताए।