आसिफ अली जरदारी रोज एक काली बकरी की कुर्बानी देते हैं। इसका मकसद बुरी नजर और काले जादू को दूर रखना है।
पाकिस्तान के साथ ही पूरी दुनिया में यह खबर वायरल हुई थी। पाकिस्तान में राष्ट्रपति के प्रवक्ता और जरदारी की पार्टी के अहम नेता रह चुके फरहतुल्लाह बाबर ने इसकी पुष्टि की थी।
द गार्जियन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- राष्ट्रपति सादिका करते हैं। सादिका यानी किसी जानवर की बलि चढ़ाकर उसका मांस गरीबों में बांटना। मैंने इसे होते हुए देखा है। हर दिन नहीं, लेकिन वे अक्सर ऐसा करते हैं। 2007 में पाकिस्तान लौटने के बाद बेनजीर ने इसकी शुरुआत की थी। हालांकि बाबर ने कहा कि इसका मकसद अल्लाह को खुश करना है।
बेनजीर भुट्टो की पाक राजनीति में एंट्री के दौरान उनकी मां ने जरदारी को उनके पति के तौर पर चुना था। दोनों के निकाह को बहुत ही असमान्य रिश्ता माना गया था। दरअसल, जरदारी भुट्टो से तीन साल छोटे थे। जहां एक तरफ जरदारी की छवि पोलो खेलने और कठोर जीवन जीने वाले प्लेबॉय की थी, तो वहीं दूसरी तरफ बेनजीर ने ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड से पढ़ाई की थी। वह बेहद होशियार और समझदार छवि वाली नेता थीं।
पाकिस्तान में आम चुनाव के बाद बुधवार को सरकार बनाने के लिए नवाज की PML-N और बिलावल की PPP पार्टी में पावर शेयरिंग फॉर्मुले पर सहमति बन गई। इसके तहत आसिफ अली जरदारी दूसरी बार देश के राष्ट्रपति होंगे। इस स्टोरी में आसिफ के मिस्टर 10% से राष्ट्रपति बनने तक के सफर की पूरी कहानी जानते हैं…
बेनजीर की पार्टी के लिए मजबूरी थे जरदारी
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बेनजीर के सत्ता में आने के बाद जरदारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के लिए एक लायबिलिटी या मजबूरी बन गए थे। यानी ऐसा शख्स जिससे पार्टी को फायदा कम और नुकसान की आशंका ज्यादा थी।
1990 के दशक में बेनजीर के दूसरे कार्यकाल के दौरान उनके कॉमर्स मिनिस्टर अहमद मुख्तार ने कहा था- पाकिस्तान में जरदारी के खिलाफ गलत प्रचार हो रहा है। हमें इससे बदनामी मिल रही है। अगली बार जब आप प्रधानमंत्री बनें तो अपने पति को अर्जेंटीना में पोलो खेलने भेज दीजिएगा।
1970 के दशक में बनी प्लेबॉय की छवि
पाकिस्तानी राजनेता हकीम अली जरदारी के बेटे आसिफ अली जरदारी का जन्म 26 जुलाई, 1955 को सिंध प्रांत के नवाबशाह में हुआ था। वे कराची में पले-बढ़े। उन्होंने सेंट पैट्रिक स्कूल से पढ़ाई की। इसी स्कूल से पाकिस्तान के तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी पढ़ाई की थी।
सिंध के एक ग्रामीण इलाके में जरदारी के साथ हाई स्कूल की पढ़ाई करने वाले अजहर खान के मुताबिक कि जरदारी 1970 के दशक की शुरुआत में एक प्लेबॉय थे। उनके पिता बम्बिनो सिनेमा के मालिक थे, जिसका जरदारी को काफी फायदा भी मिला।
जरदारी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1983 में की थी। उन्होंने नवाबशाह से डिस्ट्रिक्ट काउंसिल की सीट पर चुनाव लड़ा, जहां उन्हें शिकस्त मिली। इसके बाद जरदारी राजनीति छोड़ रियल एस्टेट में काम करने लगे।
जरदारी बने बेनजीर की सरकार गिरने की वजह
1987 में जरदारी ने बेनजीर भुट्टो से शादी कर ली। उस दौरान भुट्टो पाकिस्तान में सत्ता-विरोधी आंदोलन का प्रतीक थीं। जरदारी के करीबी दोस्तों के मुताबिक, वो ये बात जानते थे कि भुट्टो से शादी करने के बाद उनकी छवि दब जाएगी, क्योंकि बेनजीर पाक राजनीति में लगातार आगे बढ़ रही थीं। लेकिन जरदारी ने फिर भी इसे स्वीकार किया।
1988 में एक प्लेन क्रैश में पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल जिया-उल-हक की मौत हो गई। इसके बाद बेनजीर की पार्टी ने आम चुनावों में जीत हासिल की और भुट्टो देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। जरदारी ज्यादातर बेनजीर सरकार से दूर ही रहते थे। हालांकि, इस दौरान सरकार से जुड़े कई मामलों में जरदारी पर घोटाले के आरोप लगने लगे।
1990 में भुट्टो की सरकार गिर गई। मीडिया रिपोर्ट्स में जरदारी को इसकी एक अहम वजह बताया गया। सरकार गिरने के बाद बेनजीर-जरदारी के देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके बाद पाकिस्तान के केयरटेकर PM बने गुलाम मुस्तफा जटोई ने जरदारी पर भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई शुरू कर दी।
हाईजैकर्स ने प्लेन छोड़ने के बदले जरदारी की रिहाई की मांग की
जटोई ने जरदारी पर आरोप लगाया कि वो अपनी पत्नी के प्रधानमंत्री होने का फायदा उठाते थे। वे किसी भी प्रोजेक्ट की शुरुआत या सरकार से लोन की इजाजत दिलवाने के बदलने 10% के कमीशन की मांग करते थे। यहीं से जरदारी को मिस्टर 10% कहा जाने लगा।
इसके बाद जरदारी के ऊपर भ्रष्टाचार, किडनैपिंग, बैंक फ्रॉड और हत्या की साजिश जैसे कई आरोप लगे। जरदारी जेल भी गए। 25 मार्च 1991 में सिंगापुर एयरलाइन्स की एक फ्लाइट हाईजैक हो गई। विमान को छोड़ने के बदले हाईजैकर्स ने जरदारी को रिहा करने की मांग की। हालांकि, इन्हें सिंगापुर के कमांडोज ने मार गिराया।
भुट्टो की सत्ता में वापसी के साथ ही जरदारी पहली बार बतौर इनवेस्टमेंट मिनिस्टर उनकी कैबिनेट का हिस्सा बने। 1996 में बेनजीर के भाई मुर्तजा भुट्टो की हत्या के आरोप में वो गिरफ्तार हो गए।
जरदारी को भ्रष्टाचार से लेकर हत्या तक के आरोप में 1997 से 2004 तक जेल में रखा गया। उन्हें नवंबर 2004 में जमानत दे दी गई। हालांकि, हत्या के मुकदमे की सुनवाई में शामिल न होने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। बेनजीर और जरदारी को एक स्विस कंपनी से जुड़े मामले में रिश्वत लेने का दोषी ठहराया गया। भुट्टो परिवार ने हमेशा इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया।
भुट्टो और जरदारी पर पाकिस्तान ही नहीं बल्कि स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और स्पेन में मुकदमे चल रहे थे। दूसरी तरफ पाकिस्तान में अमेरिका और ब्रिटेन के सपोर्ट से मुशर्रफ देश के राष्ट्रपति बन चुके थे। अफगानिस्तान के साथ लड़ाई में अमेरिका का साथ देने के बाद वे उनके चहेते थे।
मुशर्रफ की लोकप्रियता घटने पर पाकिस्तान लौटीं बेनजीर
साल 2007 में मुशर्रफ की लोकप्रियता घटने लगी। पाकिस्तान में हिंसा बढ़ने के बाद लोग उनके खिलाफ सड़कों पर उतरने लगे। ऐसे में पाकिस्तान की आंतरिक समस्याओं को दूर करने के लिए अमेरिका की नजर एक बार फिर भुट्टो पर पड़ी।
5 अक्टूबर 2007 को मुशर्रफ ने पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश को पास कर दिया। इसके तहत 1986 से 1999 तक जिस भी पाकिस्तानी राजनेता या राजनीतिक कार्यकर्ता पर भ्रष्टाचार, हत्या, मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे थे, उन्हें माफी दे दी गई।
माना जाता है कि इस अध्यादेश का लक्ष्य बेनजीर की पाकिस्तान में वापसी का रास्ता साफ करना था। इसके लागू होने के 13 दिन बाद 18 अक्टूबर को बेनजीर पाकिस्तान लौट आईं। हालांकि, इस दौरान जरदारी दुबई में ही रहे।
भुट्टो की वापसी के बाद उन्हें पाकिस्तान के अगले PM के तौर पर देखा जाने लगा, लेकिन उनकी लोकप्रियता उतनी नहीं बढ़ सकी। ओपिनियन पोल में नवाज और उनकी पार्टी को ज्यादा सीटें मिलती दिखाई दीं। इसके बाद मुशर्रफ ने भुट्टो से वापस जाने के लिए कह दिया
बेनजीर की मौत के बाद पाकिस्तान लौटे जरदारी
नवंबर में जैसे ही बेनजीर अपने परिवार से मिलने दुबई गईं, मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी लगा दी। चेतावनियों के बावजूद भुट्टो पाकिस्तान लौट आईं, जहां उन्हें हाउस अरेस्ट में रखा गया। इसके बाद बेनजीर से समझौते के तहत मुशर्रफ फौज से रिटायर हो गए और उन्हें तानाशाह के बजाय आधिकारिक राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया।
27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी में रैली से लौटते वक्त वो जनता का अभिवादन करने अपनी कार से बाहर निकलीं। तभी एक शख्स ने उन पर 3 गोलियां चलाईं। इसके बाद वहां फिदायीन हमला हुआ। इसमें बेनजीर भुट्टो की मौत हो गई।
बेनजीर की मौत की खबर मिलते ही जरदारी पाकिस्तान लौट आए। भुट्टो ने अपनी राजनीतिक वसीयत में जरदारी को पार्टी नेता के रूप में अपना उत्तराधिकारी नामित किया था। हालांकि, जरदारी ने अपने बेटे बिलावल भुट्टो को PPP का चेयरमैन बनाया। 2008 के चुनाव में नवाज की PML-N और जरदारी की PPP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरीं।
मुशर्रफ को हटाने के लिए साथ आए जरदारी-शरीफ
अगस्त 2008 में PPP और PML-N ने मिलकर मुशर्रफ को पाकिस्तान की राष्ट्रपति की कुर्सी से हटाने का फैसला किया। उन्होंने आधिकारिक तौर पर मुशर्रफ को महाभियोग की चेतावनी देते हुए कुर्सी छोड़ने को कहा। मुशर्रफ ने इनकार कर दिया।
इसके बाद एक आरोप पत्र का मसौदा तैयार किया गया जिसे संसद में पेश किया जाना था। इसमें नवाज की सरकार को हटाकर मुशर्रफ के पहली बार सत्ता पर कब्जा करने से लेकर दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए पाकिस्तान में इमरजेंसी घोषित करने तक की बात थी। अगस्त 2008 में मुशर्रफ ने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की। इसके बाद 6 सितंबर 2008 को जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने।
मुंबई हमलों पर जरदारी बोले- अमेरिका ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया, भारत का दर्द समझता हूं
26 नवंबर 2008, ये वो दिन था जब भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाने वाला मुंबई आतंकी हमलों से दहल उठा। मुंबई के ताज होटल पर आतंकी हमला हुआ। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान को इसका जिम्मेदार ठहराया।
हमले के कुछ दिन बाद दिसंबर में राष्ट्रपति जरदारी ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक आर्टिकल लिखा। उन्होंने कहा- भारत को गुस्से में आकर आरोप लगाने से पहले एक बार विचार करने की जरूरत है। मैं भारतीयों के दर्द को समझ सकता हूं। मेरी पत्नी भी ऐसे ही एक आतंकी हमले में मारी गई थीं। आज भी मैं जब अपने बच्चों की तरफ देखता हूं, मैं उसी दर्द को महसूस करता हूं।
जरदारी ने आगे लिखा- भारत, पाकिस्तान और पूरी दुनिया को आतंक के खिलाफ साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। पाकिस्तान में अचानक किसी आतंकी का जन्म नहीं हुआ। देश के सबसे कट्टर उग्रवादियों को अमेरिका और उसके सहयोगियों ने शीत युद्ध के दौरान अफगानिस्तान में सोवियत सेना से लड़ने के लिए सशक्त किया था।
कुछ खतरनाक ताकतें भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाने और जंग करवाने की कोशिश कर रही हैं। हमें मिलकर इनका सामना करना होगा। इसके लिए सुलह और दोस्ती ही इकलौता रास्ता है।
जरदारी ने कहा- पाकिस्तान कभी भी परमाणु हमले की शुरुआत नहीं करेगा
साल 2018 में हिन्दुस्तान टाइम्स के लीडरशिप समिट में जरदारी ने कहा था कि पाकिस्तान कभी भी परमाणु हमले की शुरुआत नहीं करेगा। दरअसल, पाकिस्तान के कई नेता/अधिकारी अलग-अलग मंचों पर भारत को परमाणु हमले की धमकी दे चुके थे। हालांकि, यह पहला मौका था जब किसी पाकिस्तानी नेता ने परमाणु हमले की पहल नहीं करने की बात की।
जरदारी ने आगे कहा- मेरा मानना है कि हर पाकिस्तानी के अंदर भारत का कुछ अंश मौजूद है। ठीक इसी तरह हर भारतीय के अंदर भी पाकिस्तान का अंश है। हमें भारत से खतरा महसूस नहीं होता है। भारत को भी हमसे कोई खतरा नहीं होना चाहिए। भारत हमसे बहुत बड़ा देश है। हम बदलाव और सुलह चाहते हैं। इसका रास्ता ट्रेड और द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत करके ही निकाला जा सकता है।